क्या हुआ था, जब गुरू नानक देव को पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश नहीं मिला ?


जगन्नाथ मंदिर संग्रहालय में ताड़ के पत्तों पर लिखी एक पाण्डुलिपि है | जब जीएनडीयू में गुरु नानक अध्ययन विभाग के प्राध्यापक श्री रघुवीर सिंह टाक ने उड़िया में लिखे गए इस ऐतिहासिक दस्तावेज का अध्ययन किया तो हैरत में आ गए | इस दुर्लभ पांडुलिपि में चैतन्य महाप्रभु और गुरु नानक देव की पुरी यात्रा का अद्भुत संस्मरण लिखा हुआ था | 

जगन्नाथ मंदिर संग्रहालय, जगन्नाथ पुरी में संरक्षित इस ताड़पत्र उड़िया पांडुलिपि का शीर्षक है भक्त पंचक अर्थात पांच भक्त । संग्रहालय के क्यूरेटर श्री सदा शिव रथ शर्मा के अनुसार यह पांडुलिपि 1504 से 1534 ईस्वी के बीच सिसु मठ पुरी के जसोबंत दास द्वारा लिखी गई थी । उस समय पुरी के शासक राजा प्रताप रुद्र देव थे |

पांडुलिपि में जिन पांच संतों के पुरी प्रवास का वर्णन है, वे हैं - चैतन्य महाप्रभु, जगन नाथ दास, अच्युता नंद दास, नानक देव और सिसुंत दास । पांडुलिपि के प्रत्येक पृष्ठ पर कविता की पाँच पंक्तियाँ हैं | पांडुलिपि के पृष्ठ क्रमांक 14 पर गुरु नानक का वर्णन इस प्रकार है:

पुरी के राजा प्रताप रुद्र देव के शासनकाल के 13 वें वर्ष में गुरु नानक देव, मर्दाना और चौदह अन्य संन्यासियों के साथ भादों शुक्ला एकादशी साल 924 (उड़िया वर्ष) के दौरान भगवान् जगन्नाथ के दर्शन करने जगन्नाथ मंदिर पहुंचे | उनकी पोशाक से गुरु नानक को एक खलीफा (खलीफा) समझ लिया गया और उन्हें मंदिर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई । गुरु नानक संन्यासियों के साथ समुंदर के किनारे पर चले गए और वहीं से उन्होंने भजन करना शुरू कर दिया।

उस रात पुरी के राजा को स्वप्न में भगवान् जगन्नाथ ने आदेश दिया कि मंदिर में नियमित होने वाली आरती बंद कर दी जाएँ, क्योंकि मैं उस समय वहां नहीं होता, समुद्र किनारे गुरू नानक के भजन सुन रहा होता हूँ | आश्चर्यचकित राजा समुद्र किनारे पहुंचे और देखा कि गुरू नानक भजन गा रहे हैं और भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा, वहां खड़े हैं | राजा ने गुरु नानक से क्षमा याचना की, उन्हें कपड़े और गहने अर्पित किये तथा गाजे बाजे के साथ शाही जुलूस में उन्हें भगवान जगन्नाथ के मंदिर लेकर पहुंचे ।

मंदिर के दर्शनों के बाद नानक देव मंदिर के सामने स्थित एक बरगद के पेड़ के पास बैठकर धर्मोपदेश देने लगे | उस स्थान पर आज मंगू मठ स्थित है जिसके लाल झंडे पर उनकी स्मृति में सफेद हथेली का प्रतीक चिन्ह है । गुरु नानक 24 दिन पुरी रुके | जब वे विदा हुए, तब भी राजा ने उन्हें पुरी से लगभग 23 मील की दूरी पर स्थित चंडी नाला तक जाकर प्रभावशाली विदाई दी ।

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