आमिर खान और सहिष्णुता !


आज जब आमिरखान ने भी तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवियों के गर्दभ राग में अपना स्वर भी मिलाया तो मुझे जरा भी हैरत नहीं हुई | बल्कि अचम्भा इस बात पर हुआ कि उन्हें इतनी देर कैसे हो गई ? उन्होंने बड़ी चतुरता से अपनी पत्नी के कंधे पर बन्दूक रख कर देश छोड़ने का राग अलापा | शायद वे यह जताना चाहते थे कि हिन्दू कुल में जन्मी उनकी पत्नी किरण राव उनके रंग में कितना रंग चुकी हैं | 

रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस पत्रकारिता पुरस्कार के दौरान उन्होंने कहा कि जब मैं अखबारों में पढ़ता हूँ कि देश के विभिन्न भागों में क्या कुछ चल रहा है, तो एक व्यक्ति और एक नागरिक के रूप में निश्चित रूप से चिंतित होता हूँ । आमिर खान ने पुरष्कार वापिस करने वालों का भी यह कहकर समर्थन किया कि यह रचनात्मक लोगों के विरोध प्रदर्शन का एक तरीका है | 

आमिर खान के अनुसार देश में असुरक्षा और भय की भावना पिछले छह या आठ महीनों में बढी है । और उसी की अभिव्यक्ति उनकी पत्नी किरण राव ने घर पर चर्चा के दौरान देश छोड़ने की बात कहकर की | किरण अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित थी, हमारे आसपास के माहौल से सशंकित थी । बढ़ती बेचैनी अलार्मिंग है, इससे संकेत मिलता है कि लोगों में हताशा बढ़ रही है। यही भावना मुझमें भी मौजूद है आमिर ने कहा। किसी भी समाज के लिए, सुरक्षा और न्याय की भावना महत्वपूर्ण होती है।

आमिर के उक्त बयान से क्या सन्देश मिलता है ? कितने आश्चर्य की बात है कि एक ऐसा अभिनेता जिसकी फ़िल्में हिन्दू देवी देवताओं व सांस्कृतिक जीवन मूल्यों पर प्रहार के बाद भी लगातार बोक्स ऑफिस पर सफल होती हैं, इस प्रकार का बक्तव्य दे रहा है | अगर समाज में असहिष्णुता होती तो क्या यह संभव होता ?

आमिर खान के बयान से अगर कुछ स्पष्ट होता है तो केवल यह कि देश में कुछ लोग हैं जो रणनीति के तहत महज राजनैतिक मकसद से असहिष्णुता के मुद्दे को येन केन प्रकारेण ज़िंदा रखना चाहते है | पहले अवार्ड वापिसी के माध्यम से इस मुद्दे को हवा दी गई, और जब यह देखा गया कि समाज में अवार्ड वापिसी एक मजाक बनकर रह गया तो अब योजनाबद्ध रूप से आमिर खान जैसे लोगों के द्वारा बयानबाजी करवाकर इस मुद्दे को जिन्दा रखा जा रहा है | 

वस्तुतः तो इन लोगों को नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना हजम नहीं हुआ, और ये असहिष्णु लोग अब देश में वर्गसंघर्ष उत्पन्न कर अस्थिरता और अराजकता का माहौल बनाना चाहते हैं, ताकि प्रधानमंत्री मोदी देश को विकास के मार्ग पर न ले जा पायें | अगर मोदी जी के प्रयत्न सफल हो गए, तो इन लोगों की राजनैतिक दुकानदारी तो सदा सर्वदा के लिए बंद जो हो जायेगी | आमिर खान या तथाकथित बुद्धिजीवी तो महज मोहरा है, परदे के पीछे से उनकी डोर विरोधी राजनेताओं के हाथ में ही है | आखिर उन्होंने अपने शासनकाल में बड़ी मेहनत से छुटभईयों को इनाम इकरारों से उपकृत जो किया है | अब वे वापड़े बदला पटा रहे हैं | 

असहिष्णुता की पराकाष्ठा तो देखिये - भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी साहब फरमा रहे हैं कि न तो आमिर साहब कहीं जा रहे हैं, और न हम उन्हें जाने देंगे | संभवतः यह चित्र भी असहिष्णुता की जीती जागती मिसाल है 


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