उत्कृष्टता के लिए प्रतिबद्धता, हमारे जीवन को उत्कृष्ट कृति बनाती हैं: प्रस्तुत कर्ता - कामना चतुर्वेदी सक्सेना



अगर हम कहीं जाना चाहैं, लेकिन रास्ता नहीं मालूम हो तो क्या करेंगे ? स्वाभाविक ही नक्शा देखेंगे या किसी वेव साईट पर अपने गंतव्य तक पहुँचने के उपाय जानने की कोशिश करेंगे । लेकिन दुर्भाग्य से हम जीवन पथ पर अपने लक्ष्य के साथ ऐसा नहीं करते । किसी वेबसाइट में भी जीवन लक्ष्य को पाने के किसी उपाय को नहीं सुझाया जाता !

अधिकांश युवाओं एक ही लक्ष्य होता है। वे स्वस्थ, सुखी और सफल जीवन जीना चाहते हैं, प्यार पाना चाहते हैं । और हाँ अमीर होना तो उनकी प्राथमिकता होता ही है ! लेकिन यहाँ एक विकट समस्या है। जैसे ही हम अपने लक्ष्य की ओर यात्रा प्रारम्भ करते हैं, हम अपने आप को एक दोराहे पर पाते है । शोर्टकट वाला एक रास्ता अपेक्षाकृत आसान प्रतीत होता है, जिस पर हम जल्दी मंजिल तक पहुँच सकते हैं | जबकि दूसरा ऊबड़खाबड़ सड़क जैसा चुनौतीपूर्ण और कठिन । इस रास्ते में अक्सर बाधाओं के साथ एक लंबी मुश्किल सड़क दिखाई देती है। और स्वाभाविक ही हम सबसे आसान रास्ता चुनते हैं!

और फिर यह हमारी आदत में शुमार हो जाता है। हम हर समय शोर्टकट ढूँढते रहते हैं । और इसके लिए हम समझौते भी करते हैं । हम सफल होने के स्थान पर असफल न होने को अपना उद्देश्य मान लेते हैं । हम जीतने के लिए नहीं खेलते बल्कि सिर्फ हार से बचना चाहते हैं।

और इसीलिए हम इस तरह की टिप्स पसंद करते हैं - " यदि आप इन तीन वर्गों का अध्ययन कर लें तो 35 अंक प्राप्त कर सकते हैं" । या फिर आप अगर सप्ताह में दो बार कक्षाओं में भाग ले लेते हैं, तो आपको काली सूची में नहीं डाला जाएगा । दुर्भाग्य से यही रवैया हमारे जीवन में व्याप्त होकर धीरे धीरे आदत में शुमार हो जाता है । हम परिपूर्ण और सक्षम बनने का प्रयत्न छोड़ देते हैं, और उसके स्थान पर "चलता है" यही हमारे जीवन का आदर्श घोष वाक्य बन जाता है। शायद किसी ने सही ही कहा है कि 'अच्छा महानता का दुश्मन है' ‘Good is the enemy of Great’।

किसी छोटे से शहर में एक मूर्तिकार रहां करता था । वह स्थानीय मंदिर के लिए देवी की एक विशाल मूर्ति बना रहा था, कि तभी एक नौजवान उसके कार्यस्थल पर आया । युवक ने बन रही मूर्ति के नजदीक ही एक दूसरी मूर्ति जमीन पर देखी जो हूबहू बन रही मूर्ति जैसी ही थी | उसने हैरत से मूर्तिकार से पूछा कि आपको दो मूर्तियों की क्या आवश्यकता है ? मूर्तिकार ने जबाब दिया, "नहीं केवल एक की जरूरत है। लेकिन फिनिशिंग करते समय पहली मूर्ति कुछ क्षतिग्रस्त हो गई। इसलिए मैं इसे दोबारा बना रहा हूँ। "

युवक ने जमीन पर रखी दूसरी मूर्ति को बारीकी से देखा। लेकिन उसे क्षति के कोई लक्षण नहीं दिखाई दिए । उसने फिर पूछा, " इसमें दोष कहां है?" 

मूर्तिकार ने कहा, "ध्यान से देखो, आपको बाईं आंख के नीचे एक खरोंच दिखाई देगी ।
युवक ने पूछा "यह मूर्ति कहां स्थापित की जायेगी ?"

मूर्तिकार ने समझाया, मंदिर के अंदर पंद्रह फुट ऊंचे एक मंच पर । 

युवक ने हंसकर कहा, इतनी दूरी से किसी को क्या पता चलेगा कि मूर्ति की आँख के नीचे खरोंच है ? क्यों आप बेकार परिश्रम कर रहे हो | 

मूर्तिकार मुस्कराए और बोले, "मुझे तो पता हैना, इसलिए मैं तो त्रुटिहीन ही बनाउंगा ।"

उत्कृष्टता का यह दृष्टिकोण बाहर से नहीं, अंदर से आता है। हम सभी को जागकर इसे अपनाना चाहिए ।

हर समय सर्वश्रेष्ठ करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए । कभी, समझौता न करें, जो भी करें शत प्रतिशत के लिए करें । हमारा लक्ष्य सर्वश्रेष्ठ बनना होना चाहिए । और यह करने के लिए कोई कह रहा है, इसलिए करना है, इसके स्थान पर यह मेरी अपनी इच्छा है, इस मानसिकता की आवश्यकता है ।

और इसलिए हमेशा, हमेशा सही काम करना सुनिश्चित करें। यह न सोचें कि किसी को पता नहीं चलेगा, इसलिए ठीक है । याद रखें, कि कोई है, जो हर समय हमें देख रहा है। और वह कोई, और कोई नहीं, आप स्वयं हैं । आपका चरित्र वह नहीं है, जो दूसरे आपको समझते हैं, आपका चरित्र वह है, जो आप उस समय होते हैं, जब कोई न देख रहा हो ।

यदि आप खरोंच युक्त मूर्ति बनाते हैं, और यह समझते हैं कि किसी को पता नहीं चलेगा, तो आपके काम में एक के बाद दूसरी खरोंच आती रहेगी और आपका पूरा समय खरोंच छुपाने में ही व्यतीत हो जायेगा । और आप एक श्रेष्ठ मूर्तिकार बनने के स्थान पर चलताऊ कलाकार बन कर रह जायेंगे । “क्या फर्क पड़ता है” इसे कौशल नहीं कहते । हमेशा यही दृष्टिकोण अपनाना चाहिए ।

मूर्तिकार का रवैया, उत्कृष्टता के लिए प्रतिबद्धता, हमारे जीवन को उत्कृष्ट कृति बनाती हैं।

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