आशुतोष की दुनाली से -
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सुरा सुन्दरी, अर्थ योजना, केवल जिनको भाती हो,
सीमा पार के षडयंत्रों की, आग जलानी आती हो,
आस्तीन के सांप आज, ललकार रहे खुद्दारों को,
सहनशीलता की परिभाषा, सिखला दो मक्कारों को |
कैसे कैसे खलनायक भी, नायक क्यूं बन जाते हैं,
इनके पीछे छुपी हुई, जो साजिश हम बतलाते हैं,
पाकिस्तान की दम पर देखो, दाऊद जो बेईमान है,
उसकी काली दुनिया सच में, बोलिबुड सुलतान है |
इसी तरह राजनेता जब, कुर्सीपरस्त हो जाते हैं,
बलिदानों को भूल सियासी हथकंडे अपनाते हैं |
भारत की तस्वीर नहीं यह, स्वारथ की है यह माया,
देशभक्ति को भूल सदा, इनने तो चारा ही खाया |
वो जो केवल नाप रहे हैं, सहनशीलता गहराई,
उनके पीछे छुपी हुई है, आतंकी काली परछाईं |
लेकिन उनको भान नहीं है, भारत के इतिहास का,
भारत के सत्पुत्रों का प्रतिउत्तर हर संत्रास का |
आओ उनको याद दिलादें, राणा की तलवारों की,
जिनके काल प्रहार गुंजाते, दुश्मन की चीत्कारों की,
सिंहगर्जना करके जिस दिन, भारत वासी जागेंगे,
देश में जितने बचे हुए सब, रंगे सियार भागेंगे |
आतंकी हमलों में सैनिक जो शहीद हो जाते हैं,
अपने घर पर वापस वे जब, ओढ़ तिरंगा आते हैं |
वो मासूम सिसकियों सुनकर, किसका गला नहीं रूंधता,
बलिदानी सिलसिला अमर है, सफ़र नहीं यह रुक सकता |
भारत की बुनियादी ताकत, देशभक्ति की है ज्वाला,
याद हमें अब्दुल कलाम और, वह हमीद सा रखवाला |
अमर शहीदों के बच्चे ही, आशाओं के दीपक हैं,
नेता के नालायक बच्चे, देश चाटते दीमक हैं |
Tags :
काव्य सुधा
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