अटल जी के जन्म दिवस पर विशेष आलेख !

(मानवीय संवेदना के कुशल चितेरे अटल जी की नज़रों में कोई विरोधी नही ! जिन नेहरूजी ने आजीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कुचलने में कोई कसार नहीं छोड़ी, उनके अवसान पर  संघ के आदर्श स्वयंसेवक अटलजी द्वारा दिया गया श्रद्धांजलि भाषण राजनीति में सहिष्णुता की अनुपम गाथा है ! 
जिसने सीखा नही विखंडन, केवल जोड़ बढाई शक्ति,
गांवों को सडकों से जोड़ा, नदी जोड़ने की थी वृत्ति !
संघ शक्ति के प्रवल पुरोधा, सबके मन में है अनुरक्ति,
अटल सत्य है नेता जन के, मूर्तिमंत हैं भारत भक्ती !!
अन्धकार के घटाटोप में, जिसने अनथक दीप जलाया
राजनीति की कीचड़ में भी, जिसने सुरभित कमल खिलाया !
आज उन्ही की प्रेरक छवि से, भ्रष्ट तंत्र से युद्ध करें
जन्म दिवस की पावनता को, आओ मिल अभिवृद्ध करें !!
जन नायक अटल जी के जन्म दिवस २५ दिसंबर पर उनके कुछ अनुपम संस्मरण  !)

संस्मरण 
-स्व. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) पूर्व सरसंघचालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 

एक बार अटलजी अंतरविश्वविद्यालयीन वादविवाद प्रतियोगिता में भाग लेने विक्टोरिया कोलेज ग्वालियर के प्रतिनिधि बनकर प्रयाग पहुंचे | गाड़ी विलम्ब से होने के कारण, जब तक पहुंचे प्रतियोगिता समाप्त हो चुकी थी तथा निर्णय सुनाये जाने की तैयारी चल रही थी | यात्रा की थकान होने के बाबजूद इनकी टीम ने आग्रह किया, कि हममें से कमसेकम एक को तो बोलने का अवसर दिया जाए | अनुमति मिलाने पर जब अटल जी का धाराप्रवाह ओजस्वी भाषण हुआ तो निर्णायकों के सारे निर्णय बदल गए, अटल जी को ही प्रथम पुरष्कार मिला | 

अटलजी ने कानपुर के डीएव्ही कोलेज से स्नातकोत्तर किया | वे अपने समय के लोकप्रिय छात्र नेता रहे | 1946 में श्री बालकृष्ण शर्मा त्रिपाठी को कानपुर में एक विशाल सभा को संबोधित करना था | जैसा कि प्रचलन में है, मुख्य वक्ता के पूर्व कुछ युवा भी भाषण देते हैं, अटल जी का भी भाषण हुआ | अटलजी का भाषण इतना प्रभावशाली और जबरदस्त था कि त्रिपाठी जी ने निर्णय लिया कि वे भाषण नहीं देंगे | उन्होंने केवल इतना कहा कि इस युवक ने बह सब कह डाला है, जो मैं कहना चाहता था | मैंने ऐसा भाषण पहले कभी नहीं सुना |

एम.ए. करने के बाद अटलजी संघ के प्रचारक बन गए | उन्हें लखनऊ के नजदीक संडोला भेजा गया | संघ कार्य के साथ साथ उनका कविता लेखन भी चलता रहा | 1947 में संघ की विचारधारा लोगों तक पहुँचाने के लिए मासिक पत्रिका “राष्ट्रधर्म” प्रारम्भ हुई | पंडित दीनदयाल उपाध्याय उसके मार्गदर्शक व अटल जी संपादक नियुक्त हुए | 

1953 में विजया लक्ष्मी पंडित सोवियत संघ की राजदूत नियुक्त हो गई, तथा उनकी लोकसभा सीट लखनऊ रिक्त हो गई | मध्यावधि चुनाव में अटलजी को जनसंघ उम्मीदवार बनाया गया | यहीं से अटलजी का राजनैतिक जीवन प्रारम्भ हुआ | उन्होंने 150 से अधिक सभाओं को संबोधित किया तथा ख्याति अर्जित की | यद्यपि विजय कांग्रेस प्रत्यासी की ही हुई | किन्तु अटलजी दूसरे नंबर पर रहे, जो कि जनसंघ के प्रारम्भिक दौर में बड़ी बात थी | 1957 में अटलजी ने बलरामपुर से चुनाव लड़ा तथा विजई हुए | 

संसद में उन्होंने नेहरू जी की नीतियों का मुखर विरोध किया, पर नेहरूजी ने हमेशा उनकी सराहना की | एक बार ब्रितानी प्रधानमंत्री भारत यात्रा पर आये | जवाहर ला जी ने उनका अटलजी से परिचय कराते हुए कहा कि विपक्ष का यह युवा नेता हमेशा मेरी आलोचना करता है, किन्तु मुझे इसमें भारत के उज्वल भविष्य की झलक दिखाई देती है | 

अपने विरोधियों के प्रति भी अटल जी का व्यवहार अत्यंत गरिमापूर्ण रहा | चाहे नेहरू जी के अवसान के बाद का उनका उद्बोधन हो, अथवा 1971 में बांगलादेश विजय के पश्चात् की गई इंदिरा जी की प्रशंसा, उनके विशाल ह्रदय के ही दर्शन होते हैं | 

अटल जी के व्यक्तित्व के तीनों रूप, स्वयंसेवक, कवि और राजनेता, समान रूप से आकर्षक और महत्वपूर्ण हैं |

श्री लालकृष्ण आडवाणी 

1957 के संसदीय चुनावों में जनसंघ ने अटल जी को एक साथ तीन स्थानों से खड़ा किया – मथुरा, लखनऊ और बलरामपुर | लखनऊ में वे चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई, किन्तु बलरामपुर से भारी बहुमत से जीते और लोकसभा में जनसंघ की चार सदस्यीय टीम के नेता बने | 

दरअसल अटल जी को तीन स्थानों से लड़ाने की योजना दीनदयाल जी की थी | दीनदयाल जी की हार्दिक इच्छा थी कि अटलजी संसद में अवश्य पहुंचे | उनका स्पष्ट तौर पर मानना था कि डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की शहादत से उत्पन्न शून्य को अटलजी ही भर सकते हैं | इसके बाद की भारतीय राजीति में अटल जी के योगदान को देखकर कोई भी प. दीनदयाल उपाध्याय की दूरदर्शिता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता | 

जब 1977 में अटल जी को विदेश मंत्री बनाया जा रहा था, तब जनता पार्टी के कुछ सदस्यों ने तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरार जी को सतर्क करते हुए कहा था कि आखिरकार यह संघ का आदमी है, पाकिस्तान के साथ हमारे सम्बन्ध बहुत बिगड़ जायेंगे | किन्तु श्री देसाई ने उनकी बिन मांगी सलाहों को दरकिनार कर अटल जी को अपनी सरकार में विदेश मंत्री बनाया |

1991 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधान मंत्री नवाज शरीफ श्री राजीव गांधी के अंतिम संस्कार में शामिल होने नई दिल्ली आये | उनके आमंत्रण पर अटल जी व मैं उनसे मिलने अशोक होटल गए | उनकी प्रतिक्रया थी :

वाजपेई जी, मैं आपसे पहले कभी नहीं मिला, लेकिन मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आप जब विदेश मंत्री थे, तो उस समय जैसे दोनों देशों के मधुर एवं सौहार्द्र पूर्ण सम्बन्ध फिर कभी नहीं हुए |

1980 में जनता पार्टी में दोहरी सदस्यता का मुद्दा उछला और जनसंघ से आये लोगों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बन्ध तोड़ने का दबाब बनाया गया | जनता पार्टी संसदीय दल की बैठक में अटलजी गुस्से से फट पड़े | उन्होंने कहा – हम जनता पार्टी में केवल तीन वर्ष पूर्व आये हैं | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ हमारा सम्बन्ध बचपन से है | और आप चाहते हैं कि हम संघ से नाता तोड़ लें | आपको मालूम है, आप क्या कह रहे हैं ?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व उसकी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विचारधारा के प्रति अटलजी का समर्पण हमेशा अटूट रहा | लेकिन वे इस तथ्य से भी भलीभांति परिचित रहे कि भारत जैसे वृहद और विविधता वाले देश में पार्टी को विचारधारा से आदर्श और मूल्यों का मार्गदर्शन तो मिलना चाहिए किन्तु इससे राजनैतिक व सरकारी निर्णयों में संकोच नहीं होना चाहिए |

नेहरू जी की मृत्यु पर अटल जी की श्रद्धांजलि –

एक सपना था जो अधूरा रह गया, 

एक गीत था जो गूंगा हो गया, 

एक लौ थी जो अनंत में विलीन हो गई | 

सपना था एक ऐसे संसार का, 

जो भय और भूख से रहित होगा, 

गीत था एक ऐसे महाकाव्य का, 

जिसमें गीता की गूँज और गुलाब की गंध थी, 

लौ थी एक ऐसे दीपक की, 

जो रात भर जलता रहा, 

हर अँधेरे से लडता रहा, 

और हमें रास्ता दिखाकर, 

एक प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गया | 

मृत्यु ध्रुव है, शरीर नश्वर है | कल कंचन की जिस काया को हम चन्दन की चिता पर चढ़ाकर आये, उसका नाश निश्चित था | लेकिन क्या यह जरूरी था कि मौत इतनी चोरी छिपे आती | जब संगी साथी सोये पड़े थे, जन पहरेदार बेखबर थे, हमारे जीवन की अमूल्य निधि लुट गई | 

भारत माता आज शोक मग्न है – उसका सबसे लाडला राजकुमार खो गया | 

मानवता आज खिन्न बदना है – उसका पुजारी सो गया | 

शान्ति आज अशांत है – उसका रक्षक चला गया | 

दलितों का सहारा छूट गया, जन जन की आँख का तारा टूट गया | 

यवनिका पात हो गया, विश्व के रंगमंच का प्रमुख अभिनेता, अपना अंतिम अभिनय दिखाकर अंतर्ध्यान हो गया |

महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में भगवान् राम के सम्बन्ध में कहा था कि वे असंभवों के समन्वय थे | पंडित जी के जीवन में महाकवि के उसी कथन की एक झलक दिखाई देती है | वह शान्ति के पुजारी, किन्तु क्रान्ति के अग्रदूत थे | वे अहिंसा के उपासक थे, किन्तु स्वाधीनता और सम्मान की रक्षा के लिए हर हथियार से लड़ने के हिमायती थे | 

वे व्यक्तिगत स्वाधीनता के समर्थक थे, किन्तु आर्थिक स्वाधीनता लाने के लिए प्रतिबद्ध थे | उन्होंने किसी से समझौता करने में भय नहीं खाया, किन्तु किसी से भयभीत होकर समझौता नहीं किया | चीन और पाकिस्तान के प्रति उनकी नीति, इसी अद्भुत सम्मिश्रण का प्रतीक थी | जिसमें उदारता भी थी, दृढ़ता भी थी | यह दुर्भाग्य है कि इस उदारता को दुर्बलता समझा गया, कुछ लोगों ने उनकी दृढ़ता को हठवादिता समझा |

जिस स्वतंत्रता के वे सेनानी थे, आज वह स्वतंत्रता संकटापन्न है | सम्पूर्ण शक्ति के साथ हमें उसकी रक्षा करना होगी | जिस राष्ट्रीय एकता और अखंडता के वे उपासक थे, आज वह भी विपदग्रस्त है | हर मूल्य चुकाकर हमें उसे कायम रखना होगा | नेता चला गया, अनुयाई रह गए | सूर्य अस्त हो गया, तारों की छाया में हमें अपना मार्ग ढूँढना है | यह एक महान परीक्षा का काल है | यदि हम अपने को समर्पित कर सके, एक ऐसे महान उद्देश्य के लिए, जिसके अंतर्गत भारत सशक्त हो, समर्थ हो, समृद्ध हो और स्वाभिमान के साथ विश्वशान्ति की चिरस्थापना में अपना योग दे सकें, तो हम उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने में सफल होंगे |

संसद में उनका अभाव कभी नहीं भरेगा | शायद तीन मूर्ति को उन जैसे व्यक्ति कभी भी अपने अस्तित्व से सार्थक नही करेगा | वह व्यक्तित्व, वह जिन्दादिली, विरोधी को भी साथ लेकर चलने की वह भावना, वह सज्जनता, वह महानता, शायद निकर भविष्य में देखने को नहीं मिलेगी | मतभेद होते हुए भी, उनके महान आदर्शों के प्रति, उनकी देशभक्ति के प्रति, उनके अटूट साहस और दुर्दम्य धैर्य के प्रति हमारे हृदयों में, आदर के अतिरिक्त कुछ नहीं है |

अटल जी की कालजई कवितायें 

कौरव कौन, कौन पांडव, टेढा सवाल है,

दोनों ओर, शकुनि का फैला, कूटजाल है !

धर्मराज ने छोडी नहीं, जुए की लत है,

हर पंचायत में पांचाली, अपमानित है !

बिना कृष्ण के आज महाभारत होना है,

कोई राजा बने, रंक को तो रोना है !! 

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ठन गई !

मौत से ठन गई !

जूझने का मेरा कोई इरादा न था, 

मोड़ पर मिलेंगे, इसका वादा न था,

रास्ता रोककर वह खडी हो गई,

यों लगा जिन्दगी से बड़ी हो गई,

मौत की उम्र क्या ? दो पल भी नहीं,

जिन्दगी सिलसिला, आजकल की नहीं,

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,

लौट कर आउंगा, कूच से क्यूं डरूं ?

तू दबे पाँव, चोरी छिपे से न आ,

सामने वार कर, फिर मुझे आजमा |

मौत से बेखबर, जिन्दगी का सफ़र,

शाम हर सुरमुई, रात बंशी का स्वर,

बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं,

दर्द अपने पराये कुछ कम भी नहीं,

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,

न सगों से रहा कोई बाक़ी गिला,

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,

आँधियों में जलाए हैं, बुझते दिए,

आज झकझोरता तेज तूफ़ान है,

नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है,

पार पाने का कायम मगर होंसला,

देख तूफां का तेवर, तरी तन गई,

मौत से ठन गई, मौत से ठन गई || 

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