चेन्नई की बाढ़ विभीषिका : भविष्य के बड़े संकट की पूर्व सूचना


चेन्नई जैसे ठहर सी गई है | मर्माहत करने वाली गगनभेदी चीख पुकार और मदद के लिए रुदन । रुदन के ऐसे ही कुछ स्वर सिर्फ दो वर्ष पूर्व उत्तराखंड में गूंजे थे, और उसके भी कुछ वर्ष पूर्व मुंबई में । पिछले 14 वर्षों में भारत 131 बाढ़ की विभीषिकाओं का सामना कर चुका है, चक्रवात के 51 उदाहरण सामने आये हैं तो तेज गर्मी और कडाके की ठण्ड ने अनेकों जिंदगियां निगली हैं | 21 बार भीषण सूखे का भी भारत ने सामना किया है ।

यह वास्तविकता है कि जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। हाल ही में आईआईएम अहमदाबाद, आईआईटी गांधीनगर और कौंसिल ओन एनर्जी एनवायरमेंट एंड वाटर (CEEW) आदि भारत की अग्रणी ऊर्जा विचारक संस्थानों की प्रकाशित हुई रिपोर्ट में इसकी चेतावनी भी दी गई है । जलवायु मॉडल के उच्च स्तरीय अध्ययन और नासा के सांख्यकीय दृष्टिकोण के आधार पर रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में भारत को और अधिक अनिश्चित मानसून का सामना करना पड़ सकता है ।

जहाँ एक ओर भारत के पूर्वी भागों में वर्षा की अधिकता जन जीवन को प्रभावित कर सकती है, तो दूसरी ओर भारत के मध्य भाग को भविष्य में सूखे के खतरे का सामना करना पड़ सकता है । अगले 30 वर्षों में रात के औसत तापमान में 1-1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना है। रात और दिन के तापमान में वृद्धि, और लगातार अनियमित वर्षा के कारण भोजन और पानी की कमी के साथ साथ और स्वास्थ्य प्रणाली पर भी प्रभाव डाल सकती है, इसकी आशंका रिपोर्ट में दर्शाई गई है । 

इस सबसे भी बढ़कर जो बात ध्यान देने योग्य है, वह यह कि वर्तमान में अर्थव्यवस्था की जो कमजोर स्थिति है, वह पर्यावरण परिवर्तन के चलते भविष्य में और अधिक दयनीय हो सकती है | भारत के लिए इसका सामना करना सबसे बड़ी चुनौती सिद्ध होगा ।

हालांकि ध्यान देने योग्य बात यह है कि भारत में प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन की दर सबसे अधिक नहीं है । किन्तु इसके बाद भी भारत जलवायु परिवर्तन के सर्वाधिक प्रभावित देशों में से एक है | इसलिए पेरिस में हो रहे COP21 देशों का सम्मेलन उसके लिए अत्याधिक महत्वपूर्ण है | चेन्नई विभीषिका तो महज भविष्य के बड़े संकट की पूर्व सूचना भर है ।

अब सवाल उठता है कि इसका सामना कैसे किया जा सकता है ? चेयर रेस छोड़कर क्या भारत के राजनेता एक साथ बैठकर समस्या का हल ढूंढेंगे ? वर्षा के जल का संग्रहण, लगातार बढ़ते चौपहिया वाहनों की संख्या पर अंकुश, जनसंख्या नियंत्रण की प्रभावी व सभी नागरिकों के लिए समान नीति के द्वारा, इस संकट को कम किया जा सकता हैं, पर यह कौन और कैसे करेगा ? क्या हम आत्महत्या की दिशा में नहीं बढ़ रहे हैं ?

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