वाह रे कांग्रेसी सूरमाओ, पैसे बनाने में कितने उस्ताद हो भाईजान !



मुंबई के प्रमुख उपनगरीय इलाके में नेहरू स्मारक पुस्तकालय और अनुसंधान केंद्र निर्माण के नाम पर 1983 में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को महाराष्ट्र सरकार द्वारा एक भूखंड आबंटित किया गया | 3478 वर्ग मीटर की यह भूमि वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे के किनारे, बांद्रा में स्थित है। तीन दशकों तक यह भूभाग खाली पड़ा रहा, उसके बाद अब इस पर एक 11 मंजिला व्यवसायिक इमारत तन रही है ।

स्व. जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रारम्भ किये गए नेशनल हेराल्ड और कौमी आवाज नामक अखबार को संचालित करने वाली इस कम्पनी को बृहन्मुंबई नगर निगम द्वारा दी गई भवन अनुमतियों के अनुसार, इस व्यावसायिक परियोजना में बेसमेंट है, दो स्तरीय पार्किंग हैं, भूतल सहित ग्यारह मंजिलों पर कार्यालयों का निर्माण किया जा रहा है ।

और मजे की बात यह कि नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी का तो प्रस्तावित भवन अनुज्ञा दस्तावेजों में कहीं उल्लेख भी नहीं है। आपाधापी की इस कहानी का छोर इतना भर नहीं है | यह भूमि पहले अनुसूचित जाति के छात्रों के छात्रावास के लिए आरक्षित थी, जिसे साजिश कर हड़प लिया गया । 

अगस्त 1983 में जारी एक आदेश के द्वारा महाराष्ट्र सरकार ने "दैनिक समाचार पत्र के प्रकाशन और नेहरू पुस्तकालय-सह-अनुसंधान संस्थान की स्थापना के लिए" अधिभोग मूल्य के भुगतान पर एसोसिएटेड जर्नल्स (मुंबई) लिमिटेड को यह जमीन आवंटित की।

अतिरिक्त कलेक्टर ने भूमि आबंटन के समय शर्त लगाई थी कि जिस उद्देश्य के लिए भूमि दी गई है, उसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भवन निर्माण कर उसका इस्तेमाल किया जाएगा |

उसके बाद तीन दशक तक भूमि खाली पडी रही | तभी कांग्रेस नेता राजीव चव्हाण का दिल उस जमीन पर आ गया और उनकी हाउसिंग सोसायटी को इस जमीन का बड़ा हिस्सा सोंप दिया गया | मुंबई के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह भी उक्त सोसायटी के सदस्य थे | 

इसी बीच जब बीएमसी सीवेज पम्पिंग स्टेशन के लिए इस भूखंड पर अतिक्रमण हटाने और अपनी सीमाओं में परिवर्तन के लिए सक्रिय थी, तभी एसोसिएटेड जर्नल्स ने भी भूखंड पर निर्माण कार्य पूरा करने के लिए समय सीमा बढ़ाने की अनुमति प्राप्त कर ली ।

वर्ष 2012 के प्रारम्भ में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के अध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने कंपनी को आवंटित भूखंड पर निर्माण के लिए अनुमति लेने का प्रयत्न शुरू किया । निर्माण के संबंध में एसोसिएटेड जर्नल्स ने बीएमसी को जो आवेदन लगाए, उन सभी में "प्रस्तावित व्यावसायिक कार्यालय भवन" के रूप में इस परियोजना को दर्शाया गया । जून 2013 में प्रस्तावित "वाणिज्यिक निर्माण" प्रारम्भ करने के लिए अनुमति प्रदान कर दी गई ।

2012 में मुंबई के एक आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को पत्र लिख कर मांग की कि चूंकि विगत 30 वर्षों से आबंटित भूमि पर कोई निर्माण कार्य प्रारम्भ नहीं हुआ है, अतः सरकार वह भूमि बापस ले | हालांकि यह काम अब भी हो सकता है, क्योंकि आवंटन शर्तों का पालन नहीं किया गया है ।

निर्माणाधीन इमारत में न तो कोई प्रेस है और नाही कोई नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी के लिए कोई प्रस्ताव | यह स्वतः सिद्ध है कि सरकारी जमीन का ढंग से इस्तेमाल नहीं किया गया। गलगली का कहना है कि वह इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी पत्र लिखेंगे ।

उपनगरीय कलेक्टर ने 2010 में एसोसिएटेड जर्नल्स को पट्टे की बकाया राशि भुगतान करने के लिए पत्र भी लिखा था | 2006 में आबंटन आदेश के बाद 98,17,440 का भुगतान किया गया था, किन्तु उसके बाद कोई लीज रेंट नहीं दिया गया ।

आधार - http://indianexpress.com/article/india/india-news-india/in-mumbai-commercial-building-rises-on-plot-ajl-got-for-nehru-library/
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