मध्यप्रदेश में भाजपा की होरही लगातार पराजय के कारण और निदान !



मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि सम्पूर्ण भारत में भारतीय जनता पार्टी का सबसे मजबूत संगठनात्मक ढांचा मध्यप्रदेश में है | इसके पीछे इसके नेताओं का लम्बे समय तक किया गया संघर्ष और त्याग है | विषय पर कुछ लिखने के पूर्व पूर्व काल के कुछ संस्मरणों का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा |

स्व. कुशभाऊ ठाकरे एक छोटे से कसबे कोलारस में पहुंचे | कसबे में जनसंघ के गिने चुने कार्यकर्ता | उनमें से जो सबसे समृद्ध माने जाते थे, उन महेश जी के घर पर ठाकरे जी के रात्रि विश्राम की व्यवस्था की गई | जमीन पर बिस्तर लगाया गया, किन्तु सिरहाने लगाने के लिए घर में तकिया नहीं था | ठाकरे जी दालान में गए और स्वयं एक ईंट उठा लाये | गद्दे के नीचे ईंट लगा ली और हो गया तकिया तैयार | गृहस्वामी को भी यह तब पता चला जब वे प्रातःकाल विदा हो गए | रुंधे कंठ से यह संस्मरण महेश जी ने स्वयं मुझे सुनाया |

समय बीता, राजमाता साहब का कार्यकाल आया | उनके दौरे में उनकी कार के साथ कार्यकर्ताओं की जीपें भी थीं | एक जीप आगे आगे मार्ग के गाँवों में उनके आगमन की पूर्व सूचना की दृष्टि से चल रही थी | वह जीप कीचड़ में फंस गई | बहुत कोशिश करने के बाद भी निकल नहीं रही थी | तभी राजमाता साहब का काफिला आ पहुंचा | राजमाता की नजर उस जीप पर पड़ते ही उन्होंने अपनी कार रुकवा दी और साथ बैठे अपने निजी सहायक आंग्रे साहब से कहा – “बाल जरा तुम उतरकर इस जीप में धक्का तो लगाओ” | आंग्रे साहब ने जैसे ही नीचे उतरकर धक्का देने का उपक्रम किया, सारे कार्यकर्ता अपने अपने वाहनों से उतरकर फंसी हुई जीप में धक्का लगाने लगे | और देखते ही देखते फंसी हुई जीप कीचड़ से बाहर हो गई | मुस्कुराती हुई राजमाता अपनी कार में बैठ आगे बढी, अश्रुपूर्ण नयनों से उनके पीछे कार्यकर्ता भी | 

तीसरा प्रसंग 77 के बाद बनी जनता पार्टी की सरकार का | शीतला सहाय शिवपुरी जिले के प्रभारी मंत्री थे | युवा मोर्चा के तत्कालीन जिलाध्यक्ष को पुलिस ने अपमानित कर गिरफ्तार कर लिया | पूरे जिले में मानो तूफ़ान आ गया | आक्रोशित कार्यकर्ताओं को शांत करने शीतला जी शिवपुरी आये | लेखक उन दिनों विद्यार्थी परिषद् का संगठन मंत्री हुआ करता था | मंत्री जी के साथ बैठक में अत्यंत तीखा बाद्विवाद हुआ | आज तो कोई सोच भी नहीं सकता, इतना तीखा | दूसरे दिन प्रातःकाल मुझे सर्किट हाउस में बुलाया गया | कलेक्टर एस.पी. की उपस्थिति में शीतला जी मेरे कंधे पर हाथ रखकर बगीचे में टहलते हुए मुझे संगठन शास्त्र की शिक्षा देने लगे | कह रहे थे - हरिहर सब काम मंत्री नहीं करते | कुछ काम कार्यकर्ताओं के हिस्से के भी होते हैं | अब देखो मैं तुम्हारे कंधे पर हाथ रखकर घूम रहा हूँ | सारे अधिकारी देख रहे हैं और उन तक यह संकेत पहुच रहा है कि तुम मेरे ख़ास हो | अब इस स्थिति का तुम उपयोग कर पाते हो, नहीं कर पाते हो, कितना कर पाते हो, यह तुम्हारी कुशलता | करो अपने कार्यकर्ताओं की जितनी मदद कर सकते हो | मैं रोज रोज थोड़े ही आउंगा |

आज जब समाचार पत्रों की सुर्खियाँ भाजपा की पराजय है, मुझे यह लेख लिखने को विवश होना पड़ा | मेरे 45 वर्ष के सार्वजनिक जीवन का अनुभव यह है कि चुनाव में विजय कार्यकर्ताओं के उत्साह की समानुपाती होती है | अगर कार्यकर्ता में उत्साह तो सफलता, और अगर कार्यकर्ता में उत्साह नहीं है तो मतदाताओं में क्या ख़ास जोश आयेगा ? यह पहला अवसर है, जब दो वर्ष से अधिक कार्यकाल बीत जाने के बाद भी कार्यकर्ता का कद बढाने में भीषण कंजूसी बरती गई है | सत्ता के सारे अधिकार चुनिन्दा हाथों में ही सिमटे हुए हैं |

भाजपा नेतृत्व को समझना चाहिए कि भोंथरे हथियारों से लड़ाई नहीं जीती जाती | सवाल यह हैकि सत्ता शीर्ष पर बैठे हुए लोग हों, अथवा सामान्य कार्यकर्ता, आमजन को कितना प्रभावित कर पा रहे हैं ? आज तो प्रयत्न पूर्वक धारदार हथियारों को भोंथरा बनाया जा रहा है | जब तक चुनावी उत्तरपुस्तिका में इस प्रश्नपत्र को हल कर उत्तर नहीं लिखे जाते, परीक्षा परिणाम तो विपरीत आने ही हैं |

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