मोदी पहुंचे नवाज शरीफ के घर - हैना हैरत का मंजर ?


“लीक छोड़ तीनहिं चलहिं शायर, सिंह, सपूत” | 

कुछ यही उक्ति चरितार्थ होती दिखी आज, जबकि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी "प्रोटोकॉल संचालित" राजनीति को दरकिनार कर अकस्मात लाहौर जा पहुंचे | लाहौर पहुंचकर वे पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ के घर पहुंचे तथा उनकी पोती के विवाह समारोह में शामिल होकर वधाई दी | भाजपा ने इस अचंभित कर देने वाली घटना का यह कहकर स्वागत किया कि इस कार्य के लिए श्री अटल बिहारी के जन्म दिन से बेहतर दिन नहीं हो सकता था ।

भाजपा महासचिव राम माधव ने कहा कि जैसा कि यूरोपीय संघ और आसियान जैसे दुनिया के कई स्थानों पर है, उसी प्रकार भारत और पाकिस्तान दोनों पड़ोसियों के संबंधों में अनौपचारिकता का समावेश आवश्यक है ।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2007 में कहा था – “मैं उस दिन का सपना देखता हूँ, जब अपनी अपनी राष्ट्रीय पहचान को बनाए रखते हुए भी एक व्यक्ति अमृतसर में नाश्ता, लाहौर में लंच और काबुल में डिनर कर सके । इस स्थिति में हमारे पूर्वज रहे थे और मैं चाहता हूँ कि हमारे बच्चे भी इसी स्थिति में जियें । 

लगता है आज नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह के उस सपने को ही साकार किया है । सिंह ने 2011 में काबुल की यात्रा तो कर पाए,किन्तु अपने दस वर्षीय शासनकाल में एक बार भी पाकिस्तान का दौरा नहीं कर सके। शायद उनकी अपनी पार्टी ने उन्हें यह नहीं करने दिया । 

मोदी की आज की इस यात्रा ने उन विरोधियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है, जिनके पास मोदी की कट्टरपंथी छवि ही उनके विरोध का एकमात्र हथियार है । 

हालांकि मोदी की यात्रा का संक्षिप्त पड़ाव इस्लामाबाद नहीं बल्कि लाहौर था। और उद्देश्य भी कोई कूटनीतिक या राजनैतिक चर्चा न होकर नवाज शरीफ को जन्मदिन की बधाई तथा उनकी पोती के विवाह समारोह में सम्मिलित होना भर । लेकिन यह महत्वपूर्ण यात्रा क्रिकेट की भाषा में एक जबरदस्त छक्का है। इस यात्रा के गूढ़ निहितार्थ महत्वपूर्ण है - 

असामान्य आकस्मिक कूटनीति ! 

एक सहज सामान्य मोदी, पाकिस्तान में हर किसी को अचंभित कर रहा है । इससे भारत में विपक्ष भले ही चिंतित हो, किन्तु इतना हरेक मानेगा कि इस प्रकार की सरप्राईज कूटनीति में आशा और उम्मीदों का बोझ कम होटा है | जब भी पाकिस्तान के साथ सम्बन्ध सामान्य करने के प्रयत्न होते हैं, मीडिया का होहल्ला उसके मार्ग का सबसे बड़ा अवरोध बन जाता है । इस यात्रा की न तो मीडिया को भनक लगी और ना ही भारत में विपक्ष को | इसी प्रकार संभवतः पाकिस्तान की सेना और निश्चित रूप से पाकिस्तान में कट्टरपंथियों को भी झटका लगा होगा । 

दूसरे शब्दों में कहें तो पाकिस्तान के साथ अपनाई गई इस गुपचुप कूटनीति से आतंकवाद के नाम पर वार्ता का विरोध करने वालों को विरोध प्रदर्शन का कोई अवसर नहीं मिला । साथ ही पूर्व प्रचारित वार्ता को विफल करने के लिए होने वाली आतंकी घटनाओं की भी कोई समूह योजना नहीं बना सका | कहने को भले ही यह सिर्फ एक जन्मदिन शुभकामना की यात्रा है, किन्तु इसमें भारत-पाकिस्तान संबंधों को सामान्य बनाने का एक भव्य प्रयास अन्तर्निहित हैं। 

परवान चढ़ता मोदी-नवाज समीकरण 

पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के जन्मदिन पर पाकिस्तान जाकर पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ को जन्म दिन की वधाई देना, उनके घर जाकर उनकी पोती के विवाह समारोह में सम्मिलित होना, पाकिस्तान और भारत के प्रधानमंत्रियों के बीच अच्छे तालमेल के स्पष्ट संकेत हैं, इससे पाकिस्तानी सेना के साथ पाकिस्तानी शासक के राजनैतिक सम्बन्ध भी प्रभावित होंगे । 

मोदी ने अपने 2014 के शपथ ग्रहण समारोह में अन्य दक्षिण एशियाई नेताओं के साथ नवाज शरीफ को भी आमंत्रित किया था । पेरिस में भी दोनों के बीच हुई संक्षिप्त बैठक में स्पष्ट रूप से दोनों के बीच बेहतर तालमेल के संकेत मिले । इसके बाद यह प्रगाढ़ता पिछले साल नवंबर में काठमांडू में और बढी तथा दोनों नेताओं के बीच एक घंटे की गुप्त बैठक हुई । और आज की यह यात्रा भी भारत पाकिस्तान संबंधों का एक महत्वपूर्ण माईल स्टोन है । 

अफगानिस्तान के बाद पाकिस्तान यात्रा के निहितार्थ - 

अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को पाकिस्तान में सदा महान संदेह की नजर से देखा जाता है। भारत द्वारा नव निर्मित अफगान संसद का उद्घाटन मोदी ने किया, इसको लेकर पाकिस्तानी कट्टरपंथी दुष्प्रचार करेंगे ही | भारत की खुफिया एजेंसियां अफगानिस्तान में पाकिस्तान विरोधी तत्वों को मदद करती है, यह आरोप लगाने वाले भी पाकिस्तान में कम नहीं है । 

इस दृष्टि से मोदी की लाहौर यात्रा संभवतः भारत की इस सदिच्छा का प्रगटीकरण है कि वह इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता चाहता है | इससे पाकिस्तानी कितने आश्वस्त होते हैं, यह तो आगे पता चलेगा, फिर भी काबुल झटके को नरम करने की यह कोशिश बेमानी नहीं कही जा सकती । इस कदम का निश्चय ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी स्वागत किया जाएगा । 

जन्मदिन पर महज शुभकामना देने के नाम पर हुई इस यात्रा के रूप में खेला जा रहा कूटनीतिक खेल, भारत-पाकिस्तान के बीच अमन की आशा को कितनी बल देगा यह कहना तो कठिन है, किन्तु यह निर्विवाद है कि इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी भारत के सबसे मजबूत नेता है, क्योंकि वह 30 साल में स्पष्ट बहुमत पाने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं । 25 दिसंबर को लाहौर जाकर जमाया गया यह रणनीतिक मास्टर-स्ट्रोक मोदी ने सही समय पर खेला है ।अब तक यह तोहमत मढी जाती थी कि भारत वार्ता से कन्नी काटता है, किन्तु अब गेंद पाकिस्तान के पाले में है । मोदी का यह लचीला रवैया जितना बदलते मोदी का संकेत है, उतना ही भारत पाकिस्तान के बीच जमी बर्फ के पिघलने का भी | भले ही कश्मीर घाटी में भीषण वर्फबारी जारी है ।

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