क्या तूफ़ान के पहले की शान्ति है प्रधानमंत्री जी की चुप्पी ?


यह पहला अवसर है जब भारत ने किसी आतंकी घटना के बाद पाकिस्तान को 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया हो । आतंक के जिम्मेदारों पर कार्यवाही के लिए समय सीमा | पठानकोट घटना के बाद मोदी जी की चुप्पी बहुत खतरनाक है | यह तूफ़ान से पहले की शान्ति का आभास दे रही है | यह स्थिति पूर्ववर्ती सरकारों से बहुत अलग है | निश्चित तौर पर इस समय पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ स्वयं को बेक फुट पर पा रहे होंगे |

अभी तक कड़े शब्दों में आक्रोश की अभिव्यक्ति होती रही थी, लेकिन यह 72 घंटे का अल्टीमेटम एकदम अलग चीज है | यह स्पष्ट सन्देश है कि भारत अब सहन करने को तैयार नहीं है और किसी भी सीमा तक जाकर निश्चित रूप से प्रतिकार करेगा | इस बदली हुई परिस्थिति से इस्लामाबाद को चिंता हो रही होगी ।

विदेश सचिव एस जयशंकर और उनके पाकिस्तानी समकक्ष एजाज अहमद चौधरी के बीच 15 जनवरी को प्रस्तावित विदेश सचिव स्तरीय वार्ता तो अब खटाई में है ही । विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज का दो टूक बयान भी यही दर्शा रहा है | अगले तीन दिन निश्चय ही महत्वपूर्ण है | क्या पाकिस्तान भारत द्वारा दिए गए सबूतों के आधार पर 72 घंटे में कोई कार्यवाही करेगा ? अगर नहीं करेगा तो भारत का अगला कदम क्या होगा ? अगले तीन दिनों में पाकिस्तान की प्रतिक्रिया की मात्रा और गुणवत्ता का आकलन महत्वपूर्ण है।

भारत चाहेगा कि शीर्ष बीस आतंकवादियों में से कोई उसे सोंपा जाए । अब पाकिस्तान का यह बहाना नहीं चल सकता कि वे भूमिगत हैं | लेकिन जितनी भारत की इच्छा स्पष्ट है, उतना ही यह भी साफ़ है कि पाकिस्तान लश्कर के संस्थापक हाफिज सईद और जकी उर रहमान लखवी जैसे व्यक्तियों को कतई नहीं सोंप सकता । ऐसे में क्या भारत आतंकवाद के इस व्यापार को ख़तम करने के लिए आरपार की लड़ाई लडेगा ? यह लड़ाई निश्चित रूप से बन्दूक से नहीं होगी । लेकिन पाकिस्तान स्थित अपने राजदूत को वापस बुलाना तो हो ही सकती है, जैसा कि ईरान और सऊदी अरब में हुआ है । 

यह तो हुई पठान कोट आतंकी हमले की बात | एक दूसरी महत्वपूर्ण घटना भी मोदी सरकार के लिए करो या मरो जैसी स्थिति पैदा कर रही है | और वह घटना है विशुद्ध अपराधी तत्वों द्वारा मालदा में किया गया पुलिस चौकी पर हमला और आगजनी | सामान्य दृष्टि से देखा जाए तो दोनों घटनाओं में कोई साम्य नहीं है | लेकिन गंभीरता से विचार किया जाए तो दोनों ही घटनाएँ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं |

पठानकोट हमले के सहयोगी तत्व ड्रग माफिया या नशे के सौदागर बताये जा रहे हैं | उसी प्रकार मालदा जिले के कालियाचक कसबे में पिछले दिनों जो कुछ घटा उसके पीछे भी नकली करेंसी के व्यापारी बताये जा रहे हैं | भारत बंगलादेश की सीमा पर स्थित यह मुस्लिम बहुल इलाका नकली नोट, तस्करी व तमाम गैर कानूनी गतिविधियों का अड्डा है | अवैध बांगला देशी घुसपैठियों की तो यहाँ भरमार है | मालदा जिले में पुलिस ने इन तत्वों के खिलाफ मुहीम चलाने का प्रयत्न किया | इसकी प्रतिक्रिया में भारत विरोधी तत्वों ने अपनी ऐसी ताकत दिखाई कि सारा प्रशासन ही ढह गया | 

पंजाब हो या बंगाल, वोट की राजनीति के चलते भारत विरोधी तत्वों के पौबारह हैं | पंजाब के सीमावर्ती इलाकों में अगर नशे के कारोबारी अपनी समानांतर सरकार चलाते हैं, तो बंगाल के सीमावर्ती जिलों में नकली नोटों के तस्कर अपना दबदबा जता ही रहे हैं | विचारणीय प्रश्न है कि क्या बंगाल में हिन्दू महासभा का अस्तित्व है ? जो किसी हिन्दू महासभाई नेता के बयान के नाम पर वहां हिंसा का तांडव मचाया जाए, और वह भी तब, जबकि वह कमलेश तिवारी उत्तर प्रदेश की जेल में बंद है | किन्तु कालियाचक में इसे आधार बनाकर पुलिस थाने पर हमला हुआ, पुलिस की गाड़ियाँ फूंकी गईं, अल्पसंख्यक हिन्दुओं के मकान जलाए गए |

स्वयं स्थानीय पुलिस अधिकारिओं ने बयान दिया कि बलावाईयों का मकसद, गुंडों, तस्करों और अपराधियों के खिलाफ की जा रही कार्यवाही का मुंहतोड़ जबाब देना था | पुलिस थाने पर हमला क्रिमिनल्स का रिकोर्ड जलाने के मकसद से किया गया था | हाल ही में एनआईए ने इस इलाके में नकली नोटों के कारोबारियों पर सिकंजा कसते हुए कुछ अपराधियों को पकड़ा भी था, जिनमें माना जाता है कि कुछ आईएसआई के गुर्गे भी फंस गए थे | इसीलिए अपराधियों का गुस्सा खद्बदाया हुआ था | 

अब अहम सवाल यह है कि चाहे पंजाब के नशे के कारोबारी हों या बंगाल के नकली नोटों के सौदागर, इनके खिलाफ प्रादेशिक सरकारें प्रभावी कार्यवाही क्यों नहीं कर पा रहीं ? और अगर नहीं कर पा रहीं तो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्याधिक महत्वपूर्ण इन सीमावर्ती इलाकों को राष्ट्रद्रोही तत्वों से आच्छादित होते क्या देश टुकुरटुकुर देखता रहे ? क्या यह संभव नहीं है कि देश के सीमावर्ती जिले सीधे केंद्र शासित हों ?

अब समय आ गया है जब प्रधान मंत्री को अपना जूमला बदलना ही होगा | अब 56 इंच का सीना नहीं “अब तक छप्पन” वाली भूमिका देश देखना चाहता है | कमसेकम मुझे तो भरोसा है कि उनकी वर्तमान चुप्पी देशद्रोहियों के खिलाफ उनके दिलोदिमाग में उमड़ते तूफ़ान के कारण है | 

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