धीरे धीरे जा रहा है सब्सिडी का जमाना - प्रमोद भार्गव


(आज का ही समाचार है कि संसद की केन्टीन में सांसदों की थाली पर सबसिडी समाप्त कर दी गई है | स्मरणीय है कि इस विषय को लेकर लम्बे समय से सांसदों का मजाक बनता रहा था | इसी सन्दर्भ में गैस सबसिडी  समाप्ति और पर्यावरण को लेकर प्रस्तुत है श्री प्रमोद भार्गव का एक विचारपूर्ण आलेख)

केंद्र सरकार ने दस लाख रुपए या उससे अधिक वार्षिक आमदनी वाले लोगों को गैस सब्सिडी से वंचित करने का उचित फैसला लिया है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वेच्छा से गैस सब्सिडी छोड़ने का व्यापक अभियान चलाकर पहले ही इसके पक्ष में वातावरण तैयार कर दिया था। इस मुहिम के तहत अब तक करीब 50 लाख लोग मोदी की प्रेरणा से सब्सिडी छोड़ चुके हैं। सब्सिडी के परित्याग से जुड़े विज्ञापनों ने भी गरीबों के हित में अपेक्षित माहौल बनाने का काम किया है। जाहिर है,इस पृश्ठभूमि के तैयार हो जाने से सरकार के विरूद्ध विपक्ष की बोलती बंद है। अर्थव्यवस्था का यह एक ऐसा समावेषी उपाय है जो आर्थिक सुधार का हिस्सा बनेगी। यह फैसला ‘सबका साथ,सबका विकास‘ नारे की सार्थकता सिद्ध करता है। क्योंकि इस छूट से जो बड़ी मात्रा में धनराशि संचित होगी,उसे सरकार वंचित तबकों की शिक्षा,स्वास्थ्य आवास और पेयजल जैसी बुनियादी समस्याओं के समाधान में खर्च कर सकती है। जनधन योजना के तहत बैंक में खाते खोलने के बाद राजग सरकार के अब तक के कार्यकाल की यह दूसरी ऐसी सबसे बड़ी मुहिम है,जो सीधे गरीब के हित साधने वाली है। गरीब के घर गैस पहुंचेगी तो लकड़ी, उपलों और कैरोसिन का ईंधन के रूप में भी कम इस्तेमाल होगा। इससे वनों के स्वाभाविक संरक्षण के साथ,पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाली ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी आएगी। साफ है,यह फैसला गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे लोगों का जीवन सरल बनाएगा,इसलिए इस फैसले को सामाजिक न्याय को मजबूत आधार देने का उपाय भी मान सकते हैं।

दस लाख रुपए से ज्यादा सालाना कमाई करने वालों की रसोई गैस सब्सिडी 1 जनवरी 2016 से खत्म हो जाएगी। फिलहाल एक साल में उपभोक्ताओं को छूट आधारित 12 सिलेंडर मिल रहे हैं। घरेलू एलपीजी का यह सिलेंडर उपभोक्ता को 419 रुपए में मिलता है। जबकि इसका बाजार मूल्य 608 रुपए है। यानी प्रति सिलेंडर 189 रुपए की छूट ग्राहक को दी जा रही है। हालांकि सरकार इसके पहले स्वैच्छिक रूप से सब्सिडी छोड़ने का अभियान विज्ञापनों के जरिए चला रही थी। नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में आर्थिक रूप से सक्षम लोगों से सब्सिडी छोड़ने की अपील भी लगातार कर रहे थे। इस अपील और विज्ञापनों के प्रभाव के चलते बीते एक साल के भीतर करीब 57 लाख 50 हजार लोग सब्सिडी छोड़ चुके हैं। हालांकि अपील के बावजूद अमीरों का एक वर्ग इसका लाभ अभी भी उठा रहा था,जो अब वंचित हो जाएगा। फिलहाल देश में कुल मिलाकर 16 करोड़ 35 लाख रसोई गैस उपभोक्ता हैं। ग्राहक के खाते में सीधे सब्सिडी जमा करने की डीबीटीएल योजना के प्रभावशाली होने के बाद उपभोक्ताओं की संख्या घटकर 14 करोड़ 78 लाख रह गई है। इस योजना के कारण ही एक नाम पर दो,फर्जी और मृत लोगों के कनेक्शन भी एक झटके में निश्क्रिय हो गए हैं। अब इस ताजा फैसले के तहत जिन उपभोक्ता दंपत्तियों की कमाई आयकर कानून 1961 के अनुसार सालाना 10 लाख से ज्यादा चालू वित्त वर्ष में रही है,उन्हें नए साल से सब्सिडी नहीं मिलेगी। देश में 3.5 करोड़ से अधिक लोग आयकरदाता हैं। इनमें करीब 21 लाख लोग ऐसे हैं,जिनकी कर योग्य आमदनी 10 लाख रुपए से ऊपर हैं। चालू वित्तीय वर्श 2014-15 में अब तक सरकार को 15 हजार करोड़ रुपए की गैस सब्सिडी के मार्फत बचत हो चुकी है। 

जरूरतमंदों को सीधा लाभ देने और सब्सिडी का दुरुपयोग रोकने की दृष्टि से विशिष्ट बहुउद्देशीय पहचान पत्र,मसलन आधार के जरिए सब्सिडी की शुरूआत संप्रग सरकार की अभिनव व अनूठी देन थी। राजस्थान के उदयपुर जिले के दूदू कस्बें में 21 करोड़वां आधार कार्ड दलित महिला कालीबाई के हाथों में सौंपते हुए सोनिया गांधी को उम्मीद थी,यह योजना गेमचेंजर साबित होगी। क्योंकि नकद सब्सिडी के सीधे खातों में हस्तांतरण की सुविधा के चलते जनकल्याणकारी योजनाओं से बिचौलियों की भूमिका खत्म होने जा रही थी। किंतु योजना का अपेक्षित लाभ कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को तो नहीं मिला,अलबत्ता नरेंद्र मोदी ने जरूर नकद सब्सिडी को इस हद तक भुनाया कि आज उनकी अर्थव्यस्था का प्रमुख आधार ही सब्सिडीयों को नियंत्रित करने के उपाय बन गए हैं। 

दरअसल देश में अधिकांश सक्षम लोग भी ऐसे हैं,जो सरकार की हरेक लाभदायी योजना के दोहन में लगे रहते हैं। यह सोच मध्ययुगीन सामंती युग की धारणा है। यह परतंत्रता का वह दौर था,जब उपनिवेषों के नागरिक जनता न होकर लाचार रियाया हुआ करते थे। जबकि प्रजातंत्र में संसाधनों पर पहला अधिकार समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबके का ही होना चाहिए। लिहाजा रियायती कीमत की चाहें गैस हो या अनाज अथवा अनुदान आधारित अन्य सुविधाएं उन पर पहला अधिकार गरीब का ही होना चाहिए। हालांकि खाद्य सुरक्षा कानून और कुछ अन्य कल्याणकारी योजनाओं में उपभोक्ता के लिए कुछ मानदंड तय हैं,लेकिन गैस सब्सिडी पर नहीं थे,जो अब कर दिए गए हैं तो अच्छा ही है। हालांकि रसोई गैस को सब्सिडी से मुक्त करने की पहली कोशिश 1997 में संयुक्त मोर्चा सरकार ने की थी। फिर 2002 में अटलबिहारी वाजपेयी सरकार में जब राम नाईक पेट्रोलियम एवं रसायन मंत्री थे,तब की गई थी। इसके बाद मनमोहन सिंह के कार्यकाल में जयपाल रेड्डी ने सब्सिडी खत्म करने की कोशिश की। लेकिन हर बार राजनैतिक विरोध के चलते सरकारें कदम पीछे खींचती रहीं।

सब्सिडी नियंत्रित करने की स्थितियों का निर्माण इसलिए संभव हुआ,क्योंकि वैष्विक स्तर पर अप्रत्याशित रूप से तेल के दाम गिरते चले गए। नतीजतन सरकार की मुद्रास्फीति और सब्सिडी के मोर्चे पर चुनौतियां स्वतः कम होती चली गईं। जो तेल 112 डॉलर प्रति बैरल था,वर्तमान में वह घटकर 38 डॉलर प्रति बैरल रह गया है। तेल के गिरते मूल्य का आकलन करते ही राजग सरकार ने अपने कार्यकाल के षुरूआती दौर में ही बड़ा फैसला लेकर तेल मुल्यों का विकेंद्रीकरण कर दिया। इसके मुल्य निर्धारण की जिम्मेदारी तेल उत्पादक कंपनियों को सौंप दी। इस चतुराई के चलते ही डीजल की कीमतें बढ़कर लगभग पेट्रौल के बराबर हो गईं। नतीजतन डीजल पर दी जाने वाली सब्सिडी से सरकार को मुक्ति मिल गई। तेल की गिरती कीमतों और डीजल पर दी जानी वाली सब्सिडी से ही सरकार को करीब डेढ़ लाख करोड़ की अब तक बचत हुई है। इसी बचत ने डोलती अर्थव्यस्था को बचाने में अहम् भूमिका का निर्वाह किया है। अब सरकार ने 10 लाख रुपए से ज्यादा वार्षिक आमदनी वालों को गैस सब्सिडी से वंचित करने का जो नीतिगत उपाय किया है,यह अर्थव्यस्था को तो मजबूत आधार देगा ही,साथ ही गरीब के उत्थान के रास्ते भी खुलेंगे। 

यदि इस सब्सिडी और सिलेंडरों का वितरण बड़ी तदाद में ग्रामीण इलाकों में कर दिया जाता है तो ईंधन के रूप में जलाई जाने वाली लकड़ी की बड़ी मात्रा में बचत होगी। सरकार पांच से दस हजार तक की आबादी वाले कस्बों में नई घरेलू गैस एजेंसियां खोलकर युवाओं को रोजगार के नए अवसर भी सृजित कर सकती है। वन सरंक्षण को लेकर चलाए गए तमाम उपायों के बावजूद भारत में बेतहाषा जंगल कटे हैं। इसी साल आई संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 25 वर्शों में भारत में वन क्षेत्र बेहद तेज रफ्तार से घटे हैं। इसमें तीन फीसदी की कमी आई है। इस कमी का एक कारण लकड़ी का जलावन के रूप में इस्तेमाल होना है। इससे वायुमंडल में जहरीली गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ रहा है। सरकार गांव-गांव गैस पहुंचाकर एक साथ दो लक्ष्य सिद्ध कर सकती है। मसलन घरेलू गैस गरीब के ईंधन की वजह बनती है,तो जंगल भी बचे रहेंगे और कॉर्बन उत्सर्जन में भी सहज रूप से कमी आएगी।

गैस,डीजल और केरौसिन पर दी जाने वाली सब्सिडी पर रोक से सरकार को अगले वित्त वर्श में कई करोड़ की राशि बचने वाली है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत निम्न स्तर पर बने रहने से चालू वित्त वर्ष 2015-16 में ही ऐसी उम्मीद है कि भारत का आयात बिल डेढ़ लाख करोड़ घट जाएगा। रसोई गैस और केरौसिन पर सब्सिडी के लिए 2014-15 के बजट में 60 हजार करोड़ रुपए रखे गए थे,जबकि इस चालू वित्तीय साल में इसे घटाकर 30 हजार करोड़ कर दिया गया है। इस मद में भी सरकार ने अब तक 15 हजार करोड़ रुपए बचा लिए हैं। मसलन राजकोष में अप्रत्याशित बचत हुई है। अब सरकार का दायित्व बनता है कि वह इस धन राशि को ऐसे क्षेत्रों में खर्च करे,जिससे वंचित समूहों को स्वस्थ एवं शिक्षित मानव शक्तियों के रूप में तैयार होने के अनुकूल अवसर मिलें। समतामूलक सामाजिक विकास और सामाजिक विशमता की खाई को पाटने में यह राशि उपयोग में लाई जाती है,तो सामाजिक न्याय में क्रांतिकारी बदलाव की उम्मीद की जा सकती है।

प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224
फोन 07492-232007, 233882
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।




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