अरुणांचल में भाजपा की गलती क्या ?


अरुणांचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन के मामले को लेकर भाजपा को कठघरे में खडा किया जा रहा है | उसे प्रजातंत्र का हत्यारा और न जाने क्याक्या उपाधियाँ दी जा रही हैं | लेकिन अगर गंभीरता से तटस्थ विश्लेषण किया जाए तो ज्ञात होता है कि अरुणांचल मामले में अगर कोई दोषी है तो केवल कांग्रेस का ढुलमुल नेतृत्व |

अरुणांचल प्रदेश में कांग्रेस संगठन के प्रभारी हैं नारायण सामी | वे ही नारायण सामी जो चेन्नई बाढ़ हादसे के बाद राहुल जी के दौरे में उनके पीछे पीछे उनकी चप्पलें उठाये घूमते दिखे थे | तो साहब 2014 के चुनाव में नारायण सामी जी की सरपरस्ती में कांग्रेस ने अरुणांचल अरुणांचल में विधानसभा की 60 में से 42 सीटें जीतीं | भाजपा को 11 और पीपीए को 5 सीटें मिलीं | ख़ास बात यह कि अरुणांचल के मुख्यमंत्री नबाम टुकी व उनके अन्य छः सहयोगी निर्विरोध निर्वाचित हुए | 

आजकल छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी इसी मिलीजुली कुश्ती को लेकर खासे चर्चा में हैं | इसी तर्ज पर अगर टुकी की जांच करवाई जाए तो हैरत अंगेज रहस्योद्घाटन हो सकते हैं | खैर टुकी जी ने बाद में पीपीए का भी कांग्रेस में विलय करवा लिया और इस प्रकार अरुणांचल विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या हो गई 47 |

जब इतना प्रबल बहुमत हो जाए तो नेतृत्व में आहंकार आना भी स्वाभाविक ही है | कांग्रेस के राज्य प्रभारी नारायण सामी और नबाम टुकी भी स्वयं को खलीफा समझने लगे | नबाम टुकी ने आ बैल मुझे मार स्टाइल की नीति अख्तियार कर ली | वे अपने आगे किसी को गिनते ही नहीं थे | नतीजतन कांग्रेस में उनकी तानाशाही के खिलाफ बिद्रोह हो गया | पूर्व मुख्यमंत्री गेगांग अपांग कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए | 

टुकी की दादागिरी से तंग आकर कांग्रेस विधायकों का बड़ा समूह शुरूआत में सोनिया जी और राहुल जी से उनकी शिकायत करने दिल्ली आया | लेकिन तानाशाह केवल टुकी ही थोड़े ही हैं | कांग्रेस नेतृत्व तो उनसे दो कदम आगे ही है | जब महारानी सोनिया और शहजादे उन दुखियारे विधायकों की व्यथा सुनने को भी तैयार नहीं हुए, तो आक्रोशित होकर उन लोगों ने भाजपा के दरवाजे पर दस्तक दी | तब इन बागी विधायकों ने भाजपा नेता सुधांशु मित्तल और राम माधव जी से संपर्क किया | उसके भी बहुत बाद में बगावत की | और जब बगावत हुई तो ऐसी कि टुकी जी की झोली में महज 26 विधायक रह गए | 

सीधा सा मतलब यह है कि पूरा मामला टुकी द्वारा कांग्रेस को जेब में रखने, विरोधियों को कुचलने और मनमर्जी चलाने के कारण उपजा हुआ है | इसका फायदा अगर भाजपा ने उठाया तो उसमें गलत क्या है ?

अब आगे क्या होगा ?

देश के मीडिया और अन्य विपक्षी दलों ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के निर्णय को भले ही लोकतंत्र की ह्त्या बताकर माहौल ऐसा बना दिया कि सर्वोच्च न्यायालय को तल्ख़ टिप्पणी करनी पड़ी, किन्तु सर्वोच्च न्यायालय अब अंतिम निर्णय क्या दे सकती है ? सर्वोच्च न्यायालय विधानसभा में शक्ति परीक्षण का आदेश ही तो देगी ? और यह तो भाजपा और मोदी सरकार के लिए वरदान जैसा ही होगा | क्योंकि तब सरकार को संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति शासन को मंजूर कराने का झंझट नहीं होगा | विधानसभा सत्र हुआ तो टुकी को बहुमत साबित करना इतना आसान नहीं होगा और गेंद फिर केंद्र के पास होगी | लेकिन लाख टके का सवाल कि आखिर राज्यपाल जे पी राजखोवा ने स्वयं ही विधानसभा में शक्ति परीक्षण का निर्णय क्यों नहीं लिया ?

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