गजनी की भूमि जवाहर लाल विश्वविद्यालय से निकला राष्ट्रवाद का रथ - राकेश सिन्हा

प्रसिद्ध चिंतक व् लेखक प्रो. राकेश सिन्हा द्वारा कर्णावती (गुजरात) में दिए गए व्याख्यान के अंश !

पुरे देश मे जेएनयू घटना को लेकर लोग उत्तेजित भी है और लोगो को रूचि भी है. देश मे एक ही विश्वविद्यालय था जो हिन्दू जनसँख्या 80% से नीचे आने पर कह रहा था ठीक हो रहा है और जब पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लग रहे थे तो कह रहा था व्यक्ति की आज़ादी अब स्थापित हो रही है. जब सी आर पी एफ के जवान मारे जा रहे थे तो कह रहा था आज जश्न मनाने का दिन है. जिस दिन पुरे देश में हनुमनथप्पा के लिए प्रार्थना हो रही थी उस दिन उस विश्वविध्यालय में राजगुरु का नहीं अफजल गुरु का जयगान हो रहा था.

जो संकट इस देश मे है उसकी 5-6 घटनाओ का में जिक्र का रहा हूँ. देश जब पोखरण मे आणविक विस्फोट कर रहा था तब देश की संसद के सामने हाथ में तख्ती लेकर प्रदर्शन करने वाले स्व. बिपिनचंद्रा से लेकर रोमिला थापर आदि जवाहर लाल विश्वविद्यालय के मार्क्सवादी शिक्षक थे. कारगिल युद्ध में भारत सरकार को कटघरे मे खड़ा करने वाले जवाहर लाल विश्वविद्यालय के प्राध्यापक थे. हो सकता है इन्हें राष्ट्रवादी सरकार से थोड़ी नफ़रत हो. बांग्लादेश युद्ध के समय भारत में एक ऐसी पार्टी थी जिसका उस समय नारा था इंदिरा याह्या एक है. श्रीमती इंदिरा गाँधी किस पार्टी की थी यह महत्वपूर्ण नहीं था लेकिन वो भारत की प्रधानमंत्री थी जिसको मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने याह्या खान से जिसकी तुलना की. उस समय स्व. ज्योतिबासु ने लिखा था कि बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन को समर्थन करना अनैतिक है.

आज उन्ही वामपंथियो को लेकर मे बहस कर रहा हूँ. मित्रो भारत वर्ष एक सभ्यता का नाम था. वो सभ्यता एक ऐसी सभ्यता थे जो एक विचार बन गई. भारत एक प्रयोगधर्मिता वाला देश रहा है. इस्लाम के आने से पूर्व हमारी 100% भूमि और आबादी थे इस्लाम के आने के पश्चात हमारी आबादी घटकर 79% हो गई. आज जो हम 79% है वह पूरी जनसँख्या का हम 79% नहीं है यदि हम जनसँख्या का अनुपात निकाले तो हम 32 से 33 प्रतिशत है. हमारी लड़ाई किसी विचार या किसी व्यक्ति से नहीं हमारी लड़ाई प्रवृति से है. मे मीडिया के दोस्तों से कहना चाहता हूँ कुछ दिन और सब्र करले क्योकि जिहाद जो दस्तक दे रहा है वो उन्हें भी नहीं छोड़ेगा.

भारतीय सभ्यता अपनी विरासत से चलती है जो सर्वसमावेशी है केरल मे जब मुस्लिम आये तो दुनिया की सबसे प्राचीन मस्जिद (चेरमन मस्जिद) के लिए जगह देने वाला हिन्दू राजा ही था. यह जे.एन.यू. के शब्दकोष में नहीं है क्योकि यह भारत मे एकता पैदा करता है. उनके शब्दकोष मे बाबरी है. भारतीय सभ्यता मे लोगो को जोड़ने की, साथ ले चलने की अप्रतिम शक्ति है. हर चीज का एक महूर्त होता है आज राष्ट्रवाद पर विमर्श का महूर्त है. विवादित ढ़ांचा टूटने के बाद धर्मनिपेक्षता की बहस शुरू हुई और कई नए आयाम सामने आये. आज जवाहर लाल विश्वविद्यालय की घटना से राष्ट्रवाद पर बहस शुरू हो चुकी है. भारत सभ्यता की नई लकीर खीचने के लिए निकला है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सभ्यतायी परिवर्तन के लिए हुई है. इसलिए सभ्यता की धारा के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की धारा समानांतर चल रही है.

जवाहर लाल विश्वविद्यालय मे एक छोटी सी घटना घटी. पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे किसी भी सरकार यह दायित्व है कि इसके पीछे कौन है यह जाँच की जाय. लेकिन जवाहर लाल विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षको ने बड़े आडम्बरपूर्ण रूप से इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी के साथ जोड़ दिया. जिस संघ पर गाँधी हत्या का झूठा आरोप लगाकर प्रतिबंध लगाया गया उस समय के सरसंघचालक प.पू. श्री गुरूजी प्रतिबंध के बाद जेल से छुटने पर 1950 में नेहरु को अकाल की स्थिती से निपटने के लिए संघ की मदद लेनी पड़ी थी. जवाहर लाल विश्वविद्यालय की घटना से राष्ट्रवाद पर नए सिरे से बहस, राष्ट्रवाद की नई शरुआत की कहानी है. हम जवाहर लाल विश्वविद्यालय से राष्ट्रवाद की नई डिक्सनरी को भारत की जनता के सामने परोस रहे है उसकी शुरुआत में आज कर रहा हूँ. भारत सिर्फ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद नहीं है यह आध्यात्मिक राष्ट्रवाद है. यह राजा राम का राष्ट्रवाद है. जिसे राम मिथक लगता है वो रोम को चुन ले. लेकिन रोम तक भी हम आयेंगे फिर वो कहाँ जायेगे.

जवाहर लाल विश्वविद्यालय मे तीन मार्क्सवादी संगठन राज कर रहे है इनमे कई ग्रुप है. वीर सावरकर पर ये लोग आरोप लगाते है कि सावरकर ने द्वि-राष्ट्रवाद की स्थापना की. जब संघ सहित सभी राष्ट्रवादी एंटी पाकिस्तान डे मना रहा था तब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी अपनी अलीगढ आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन शाखा को मुस्लिम लीग मे विलीन करने के लिए सर्कुलर लिख रहा था. कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने नेता गंगाधर अधिकारी के नेतृत्व में विभाजन के समय एक प्रस्ताव पारित किया कि हम पाकिस्तान को समर्थन देते है उस प्रस्ताव का नाम है गंगाधर अधिकारी प्रस्ताव.

योगेन्द्र झा नामक कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े किसान नेता ने लिखा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पुरे देश मे पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगा रहा था. अब बताइए जो लोग उस समय पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगा रहे थे उन्हें आज पाकिस्तान जिंदाबाद कहना क्यों बुरा लगेगा. 1945 के समय पाकिस्तान जिंदाबाद नारे लगाने वालो का असर आज जवाहर लाल विश्वविद्यालय मे दिखाई पड़ रहा है. चीन युद्ध मे कम्युनिस्ट पार्टी ने कहाँ कि युद्ध चीन ने नहीं भारत ने प्रारंभ किया. ज्योति बसु जी ने लिखा लाल सेना भारत की मुक्ति के लिए आई थी.

1.1.1965 को उस समय के गृह मंत्री श्री गुलजारी लाल नंदा ने आल इंडिया रेडियो से सार्वजनिक रूप से यह कहाँ कि बैंक ऑफ़ चाइना ने सी पी ऍम को 40 करोड़ रुपए दिए. इसी कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रवाद के दृष्टीकोण वाले लोग जवाहर लाल विश्वविद्यालय मे है. जब रसियन कम्युनिस्ट पार्टी ने स्टालिन के अत्याचारों के विरुद्ध लिखा तब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने स्टालिन को मानवता का उदारतम चेहरा बताया. सन 2000 मे कम्युनिस्ट पार्टी ने एक प्रस्ताव पारित किया कि भारत एक ऐसा देश है जिसमे अनेक समान और स्वायत्त राष्ट्रीयताएँ है.

वास्तव मे जवाहर लाल विश्वविद्यालय की घटना से जो लोग पकडे गए वो छुट जाय या न छुटे इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता परन्तु इस घटना से राष्ट्रवाद विरुद्ध अराष्ट्रवाद का विषय पुनः छिड चूका है. कम्युनिस्ट भारतीय लोगो की राष्ट्रीयता को परिवर्तित करते है. कम्युनिस्ट पार्टी के समाचार पत्र ने राष्ट्रवादी सुभाषचन्द्र बोस को जापानी तोजो का कुत्ता बताकर कार्टून छापा था. ये लोग आज जवाहर लाल विश्वविद्यालय मे अभिव्यक्ति की बात कर रहे है. लेकिन उनके इस कोलाहल से राष्ट्रवाद का रथ रुकने वाला नहीं है. जब रथ सोमनाथ से निकलता है तो वो अयोध्या पहुचता ही है और अगर उसे रस्ते मे रोक दिया जाता है तो विवादित ढ़ांचा गिरता ही है. राष्ट्रवाद का रथ उसी गजनी की भूमि जवाहर लाल विश्वविद्यालय से निकल चूका है, जहाँ पर लोग गजनी को अफजल गुरु को राष्ट्रवादी मानते है. यह उस लों को प्रजवलित करने निकला है जिसको मुगलों ने, ब्रिटिशो ने बुझाने का प्रयास किया. वह चिंगारी बनकर पिछले 500 सालों से प्रतीक्षा कर रहा था.

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