किस्मत भी क्या गुल खिलाती है ? पुरुलिया से भागे 11 वर्षीय लड़के से बकिंघम पेलेस में लंच तक का अनोखा सफर !



पुरुलिया पश्चिम बंगाल का एक गरीब परिवार ! घर में खाने वाले ग्यारह कमाने वाला एक ! चार लडके, तीन लड़की, वृद्ध माता पिता और स्वयं पति पत्नी ! कोई स्थाई काम भी नहीं, रोज कुआ खोदो और रोज पानी पियो, वाली स्थिति ! अतः काम धंधे की तलाश में दरदर भटकना ही उनकी किस्मत ! ऐसे में खीज बच्चों पर उतरना भी स्वाभाविक, सो माँ द्वारा उनकी अक्सर पिटाई कुटाई होती ही रहती ! रोज रोज की झिकझिक से तंग आकर ग्यारह वर्षीय बड़ा लड़का घर से भाग निकला !

बात 1999 की है ! जेब में घर से चुराए हुए 900 रूपये ! लड़का पुरुलिया से ट्रेन में बैठा और दिल्ली पहुँच गया ! दिल्ली रेलवे स्टेशन के बाहर उसे रोते बिलखते देखकर सलाम बालक ट्रस्ट (एसबीटी) के कार्यकर्ता उसे अपने साथ ले गए ! यह ट्रस्ट अनाथ या बेसहारा बच्चों की शरणस्थली है ! यहाँ खाने रहने की तो सुविधा थीं, लेकिन मुक्त गगन के पंछी इस लडके को ट्रस्ट की बंदिशें रास नहीं आईं और यह वहां से भी भाग निकला !

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ही अपने जैसे अन्य बच्चों के साथ पानी की बोतलें एकत्र करना और फिर उन्हें 5 - 5 रुपये में बेचना, इसके पेट भरने का जरिया बन गया । यहाँ अक्सर पुलिस के डंडे खाने पड़ते या रेलवे प्लेटफॉर्म पर गुंडों के द्वारा इसके पैसे छीन लिए जाते । थकहारकर वह लड़का अजमेरी गेट के पास एक रेस्तरां में कप प्लेट धोने लगा ! सर्दियों के दौरान ठन्डे पानी से उंगलिया ठिठुर जातीं, यहाँ तक कि कई बार तो फट भी जातीं और खून छलछला आता ! ऐसे में सलाम बालक ट्रस्ट के एक कार्यकर्ता ने इसे वापस ट्रस्ट चलने का आग्रह किया ! इस बार ठोकरें खाखाकर संभल चुका लड़का थोड़ा अनुशासित हो गया ! और नतीजा यह हुआ कि ट्रस्ट ने उसे स्कूल में दाखिला दिला दिया ! पढ़ने में सामान्य लडके विक्की रॉय ने जैसे तैसे दसवीं पास की !

यह एहसास होने के बाद कि उसका अकादमिक भविष्य उज्ज्वल नहीं है, उसे कंप्यूटर या टीवी की मरम्मत का प्रशिक्षण लेने के लिए ट्रस्ट द्वारा राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय शिक्षा संस्थान में भर्ती कराया गया, बस यहाँ से उसकी दुनिया बदल गई ।

एक ब्रिटिश फिल्म निर्माता डिक्सी बेंजामिन, सलाम बाम्बे ट्रस्ट पर एक वृत्तचित्र बना रहा था, उसे इस लडके में प्रतिभा नजर आई और उसने इसे अपना सहयोगी बना लिया और इस तरह विक्की रॉय की फोटोग्राफर के रूप में यात्रा शुरू हुई । बेंजामिन हिन्दी में बातचीत नहीं कर सकता था, और रॉय अंग्रेजी में जीरो बटे जीरो था, लेकिन इन कठिनाईयों पर पार पाते हुए बेंजामिन ने उसे एपर्चर, प्रकाश व्यवस्था आदि की जानकारी दी । तस्वीरें लेने के लिए सबसे पहले विक्की रॉय ने एक प्लास्टिक कोडक कैमरे का इस्तेमाल किया था। 

18 साल की उम्र में रॉय का स्वतंत्र जीवन शुरू हुआ और वह सलाम बालक ट्रस्ट के बाहर की दुनिया में आया ! उसने प्रसिद्ध फोटोग्राफर अनय मान का दरवाजा खटखटाया। अनय मान एक अच्छे शिक्षक और गुरु निकले । उन्होंने तस्वीर खींचने और प्रकाश व्यवस्था का गहराई से रॉय को प्रशिक्षण दिया और देखते देखते विक्की रॉय प्रसिद्धि की बुलंदियों को छूता चला गया । 

2007 में उसकी पहली चित्र प्रदर्शनी 'स्ट्रीट ड्रीम्स' ने ही उसे अत्यंत सफल बना दिया ! लंदन और दक्षिण अफ्रीका में भी उसे प्रदर्शित किया गया । उसके चित्र 2009 में डब्ल्यूटीसी 7 में प्रदर्शित हुए और एडिनबर्ग के ड्यूक का पुरस्कार जीता ! आपको जानकर हैरत होगी कि उसे बकिंघम पैलेस में प्रिंस एडवर्ड के साथ दोपहर के भोजन पर भी आमंत्रित किया गया । उसने पहली बार कोई महल देखा । 

विश्व स्तर पर सफलता पाने के बाद, रॉय वापस अपने वतन आया ! जनवरी 2013 में रॉय ने अन्य सात फोटोग्राफरों के साथ नेशनल ज्योग्राफी चैनल (एनजीसी) में आयोजित रियलिटी शो में भाग लिया । पुरुलिया में किसी ने उसे टीवी पर देखकर उसके माता पिता को जानकारी दी । वह बापस अपने परिवार के संपर्क में आया, पुरुलिया में एक भूखंड खरीदा और एक अच्छे भवन का निर्माण कराया ! 

विक्की रॉय से अगर कोई पूछता है तो वह कहता है कि मेरी किस्मत अच्छी थी, जो मुझ जैसे साधारण इंसान को इतने अद्भुत गॉड फादर मिल गए, लेकिन घर से भागे न जाने कितने बच्चे जीवन भर अपने निर्णय पर पछताते ही रह जाते होंगे । 

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