क्या विश्व पर मंडरा रहा है जलवायु युद्ध का खतरा ?


यह आलेख सबसे पहले दिसंबर 2007 में एक मौसम वैज्ञानिक द्वारा प्रकाशित किया गया था | यहाँ HAARP कार्यक्रम पर लेखक द्वारा लिखित विस्तृत लेख का सारांश प्रस्तुत है ।

जलवायु युद्ध, अर्थात् सैन्य उपयोग के लिए जानबूझकर जलवायु में गड़बड़ी पैदा करना ! 

क्या यह हैरत की बात नहीं कि जलवायु परिवर्तन पर और ग्लोबल वार्मिंग पर तो चर्चा होती है, किन्तु इस जलवायु युद्ध पर कोई बहस नहीं होती |

HAARP सामूहिक विनाश का एक जबरदस्त हथियार है, जोकि विश्व स्तर पर कृषि और पारिस्थितिकी प्रणालियों को अस्थिर करने में सक्षम है।

जलवायु युद्ध के कारण मानवता के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है, लेकिन लापरवाही की हद देखिये कि नवंबर 2015 में हुए पेरिस जलवायु शिखर सम्मेलन में इस विषय को चर्चा से बाहर रखा गया ।

अमेरिका और रूस दोनों ने ही सैन्य उपयोग के लिए जलवायु में हेरफेर करने की क्षमताओं को विकसित किया है । किन्तु शायद ही कभी वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर हुई चर्चाओं में बहस के दौरान यह स्वीकार किया गया हो कि अब दुनिया का मौसम परिष्कृत विद्युत हथियारों के माध्यम से संशोधित किया जा सकता है। 

अमेरिकी सेना द्वारा पर्यावरण संशोधन तकनीक का उपयोग लगभग पचास वर्ष पूर्व से किया जा रहा है । 1940 के दशक में अब शीत युद्ध चरम पर था, अमेरिका गणितज्ञ जॉन वॉन नयूमन ने अमेरिकी रक्षा विभाग की देखरेख में मौसम संशोधन पर शोध शुरू कर दिए थे और इस कल्पनातीत जलवायु युद्ध की रूपरेखा सामने रखी थी । वियतनाम युद्ध के दौरान 1967 में पहली बार कृत्रिम बादल तकनीक का इस्तेमाल किया गया, जिसका उद्देश्य था मानसून के मौसम को लंबा करना तथा इसप्रकार दुश्मन को हो ची मिन्ह के रास्ते आने वाली रसद आपूर्ति को रोकना । इसे प्रोजेक्ट पोपेये नाम दिया गया था |

अमेरिकी सेना ने मौसम के मिजाज में मनमाफिक परिवर्तन करने की उन्नत क्षमता विकसित कर ली है। इस तकनीक का नाम दिया गया है High-frequency Active Auroral Research Program (HAARP) जोकि सामरिक रक्षातंत्र का महत्वपूर्ण भाग है । अगर सैन्य दृष्टिकोण से बात करें तो बाह्य वातावरण से संचालित HAARP दुनिया के किसी भी कोने में कृषि और पारिस्थितिकी प्रणालियों को अस्थिर करने में सक्षम है | अतः यह सामूहिक विनाश का खतरनाक हथियार है। यह अलग बात है कि भारी विरोध के चलते HAARP परियोजना को मई 2014 में बंद घोषित करना पडा | किन्तु इससे खतरा पूरी तरह टला नहीं | 

अमेरिकी वायु सेना के दस्तावेज AF 2,025 की फाईनल रिपोर्ट के अनुसार, मौसम-संशोधन युद्ध के दौरान बाढ़, तूफान, सूखा और भूकंप के माध्यम से विरोधी को विवश और पराजित करने की अद्भुत क्षमता प्रदान करता है | वह दिन दूर नहीं जब मौसम संशोधन घरेलू और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा का एक हिस्सा बन जाएगा और इस आक्रामक हथियार का उपयोग शक्ति संतुलन उद्देश्यों के लिए किया जाएगा। पृथ्वी पर वर्षा, कोहरे और तूफान उत्पन्न करने की क्षमता और कृत्रिम मौसम का निर्माण सभी [सैन्य] प्रौद्योगिकियों के एकीकृत सेट का एक हिस्सा हैं। '

1977 में, एक संयुक्त राष्ट्र महासभा के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में युद्ध या अन्य किसी शत्रुतापूर्ण उपयोग के लिए पर्यावरण संशोधन तकनीक पर प्रतिबन्ध स्वीकार किया गया था । यह माना गया था कि प्राकृतिक प्रक्रियाओं में जानबूझकर हेरफेर से जीवजगत, स्थलमंडल, जलमंडल, वातावरण और पृथ्वी की संरचना ही नहीं तो बाह्य अंतरिक्ष की गतिशीलता और संरचना भी प्रभावित होती है |

1,977 के उक्त प्रस्ताव के बाद 1992 में रियो में संपन्न हुये पृथ्वी शिखर सम्मेलन में भी सैन्य उपयोग के लिए मौसम संशोधन विज्ञान को वर्जित किया गया ।

आज स्थिति यह है कि सैन्य विश्लेषक इस विषय पर मूक हैं। मौसम विज्ञानी मामले की जांच नहीं कर रहे हैं और पर्यावरणविदों क्योटो प्रोटोकॉल के तहत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सैन्य और खुफिया एजेंडे के हिस्से के रूप में जलवायु या पर्यावरण परिवर्तन को मौन रूप से स्वीकार कर लिया गया है ।

रटगर्स विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक एलन रोबोक ने पिछले दिनों यह सनसनी खेज खुलासा किया कि सीआईए द्वारा न्यू जर्सी स्थित विश्वविद्यालय में उनके विभाग को अन्य देशों की जलवायु को नियंत्रित करने का काम दिया गया था।

रोबोक के इस खुलासे से स्पष्ट होता है कि सीआईए की मौसम संशोधन के विषय में बहुत गहरी रुचि है । जो बातें अभी तक अफवाहों के रूप में थीं, रोबोक ने उन्हें पुष्ट कर दिया | 

बैसे युद्ध के दौरान मौसम को परिवर्तित करना कोई नई बात नहीं है | लड़ाई में जीत हासिल करने के लिए मौसम में गड़बड़ी के कई ऐतिहासिक उदाहरण मौजूद हैं।

रोबोक उदाहरण भी देते हैं – वियतनाम में जहाँ जिओइंजीनियरिंग के द्वारा कृत्रिम बादल निर्माण कर मानसून के मौसम का समय बढ़ाने में सफलता प्राप्त हुई थी ।

अमेरिका ने इसी पद्धति का प्रयोग क्यूबा के खिलाफ चीनी फसल बर्बाद करने के लिए भी किया ।

WCCO टीवी मौसम टीम के सदस्य लॉरेन केसी के अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, इंग्लैंड ने मौसम संशोधन विधि पर काम किया था । रॉयल एयर फोर्स ने दक्षिणी इंग्लैंड के एक जिले उत्तरी डेवोन के पास 'ऑपरेशन मेघपुंज' के नाम से यह प्रयोग किया । "

लोरेन ने बताया कि बहुत थोड़े समय में वहां बारिश का कहर देखने में आया । प्रयोग के दौरान 24 घंटे में ही इतनी बारिश हुई, जितनी वहां तीन महीने में होती थी | नब्बे लाख टन पानी शहर की संकरी गलियों में भर गया, इमारतें नष्ट हो गईं, और ब्रिटेन के 35 लोगों का जीवन इस प्रयोग ने छीन लिया । 

जियो इंजीनियरिंग के नाम पर इन दिनों अमेरिका अनुसंधान पर करोड़ों डॉलर खर्च कर रहा है | रूस और उत्तर कोरिया भी अमेरिका के समानांतर इसी प्रकार के कार्यक्रम चला रहे हों तो कोई आश्चर्य नहीं |

रोबोक चेतावनी देते हैं कि युद्ध के दौरान शत्रु के विमानों को तो गोली मारकर गिराया जा सकता है और बचाव हो सकता है, किन्तु जलवायु के हथियार को नियंत्रित करना संभव नहीं है | यह तो एक बार छूट गया तो फिर महाविनाश निश्चित है ।

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