बर्बाद कृषि कैसे हो आबाद - अजीत सिंह


आज से कुछ साल पहले जब ये बड़े बड़े सेठिये किराने के store खोलने लगे तो भारत में एक बहस छिड़ गयी । लोग डर रहे थे कि ये अरबपति पूंजीपति छोटे किराना दुकानदार mom n pop stores को खा जायेंगे । 

लोग कहते David और Goliath की लड़ाई है ।

चंद सालों में ही पोल खुल गयी । क्या Reliance Fresh और क्या तो सुभिक्षा Spencer और More ......... सबमे ताले लग गए देखते देखते ......... जबकि छोटा किराने वाला Mom n Pop स्टोर कोई बंद नहीं हुआ .......... जानते हैं क्यों ? 

क्योंकि वो मूल हिन्दुस्तानी व्यापार के सिद्धांतों का पालन करते हैं ........ खर्चे Overheads कम से कम रखो ....... आम किराने वाला नाम मात्र का किराया देता है , बीवी गल्ला सम्हालती है खुद भाग भाग के सामान देता है ........ बहुत हुआ तो एकाध लौंडा रख लिया helper ........ AC छोड़ कायदे का पंखा तक नहीं होता ऊपर ........ उधार खाता भी चला लेता है ......... 4 लौंडे रख के free home delivery भी कर देगा ....... ज़्यादातर की तो दूकान भी घर में और घर दूकान में वे सुबह 6 बजे ही खोल के बैठ जाएगा और रात 11 बजे तक खोल के रखेगा ....

इसके विपरीत इन बड़े stores को तो किराए ,AC बिजली के बिल और कर्मचारियों की पगार ने ही मार दिया ........ खर्चा रुपैया ....... बिक्री अठन्नी ....... बंद हो गए सब .........

यही हाल भारतीय कृषि का है ........ आज से सिर्फ 20 - 25 साल पहले तक जब कि कृषि हल बैल आधारित थी ......... किसान का पूरा परिवार कृषि में लगा रहता था । 

अब तो ये हाल है कि भूमि धरी स्वयं और उसके बीवी बच्चे तो खेत में पैर धरते नहीं । जुताई बुवाई tractor से और कटाई harvestor से ......... पशु रहे नहीं सो गोबर की खाद भी न रही ......पूरी कृषि यूरिया डाई पोटाश पे हो गयी । किसान ने तो कसम खा रखी है । न वो खेत में पैर रखेगा न उसके बीवी बच्चे ....... मेरे गाँव में वो लोग भी जिनके अपने घर में 6 लोग हैं वो दो बीघा धान की रोपनी कटनी के लिए मजूर खोजते हैं और भूमिहीन लोग उनकी अधिया चौथी की खेती कर साल भर खाने का अनाज जुटा लेते हैं ........ आज से कुछ दशक पहले तक किसान सिर्फ अपने श्रम के बदले फसल ले लेता था । अब जब श्रम नहीं है तो जुताई के लिए भाड़े के ट्रेक्टर से ले के महंगे बीज खाद तक के खर्चे और डीज़ल से सिचाई ...... ऊपर से भाड़े के मजदूर ......

खेती घाटे का सौदा क्यों नहीं बनेगी ....... जबकि हमारे ही गाँव में ऐसे भी परिवार हैं जो सिर्फ एक बीघा खेत में दिन रात मेहनत कर लाख रु की सब्जी बेचते हैं .........

इसके अलावा खेती में जो मूल बदलाव आया वो ये कि किसान ने कृषि अर्थात खेती बाड़ी में से बाड़ी को निकाल दिया । बाड़ी माने बागवानी ....... पेड़ पौधे फल फूल सब्जी ......

फिर पशुपालन निकल गया ........ पशु खूंटे से हट गए ........ पहले बैल हटे फिर गाय ......... गाय गयी तो दूध भी गया ...... कृषि एकांगी होती चली गयी .......

पिछले साल मोदी जी ने एक संबोधन में कहा था .......

कोई किसान यदि अपने खेत की मेढ़ पे 10 पेड़ भी लगा छोड़े तो उसे जीवन में ख़ुदकुशी नहीं करनी पड़ेगी ....... crop fail हमेशा नहीं होती । कभी 10 - 5 साल में कभी ऐसा होता है । और एकाध झटका तो किसान सह लेता है । इश्वर न करे कि दूसरे साल भी fail हो जाए तो भी वो दस पेड़ बेच के किसान जी जाएगा ......... पहले तो स्वयं श्रम करने वाले और प्रकृति सम्मत कृषि करने वाले किसान को ज़्यादा loss होगा नहीं और हुआ भी तो उसके पेड़ बाग़ बागवानी और उसके पशु उसे सम्हाल लेंगे ......... मेरे गाँव में तो ऐसी ऐसी महिलाएं हैं जो भूमिहीन होते हुए भी साल भर में अपने अकेले के श्रम समझदारी से 10 - 20 हज़ार के बकरे बकरियां बेच लेती हैं ........

ज़रूरत है कृषि को diversify करने की ........ किसान को इस गेहू धान गन्ने और कपास ने मारा है ........ diverse किसानी करने वाले ने कभी ख़ुदकुशी नहीं की .........

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