वाह रे रंगीले राजस्थान (श्री बलवीर पुंज के संस्मरण)


बलबीर पुंज एक बार जोधपुर में संघ के पदाधिकारयों की बैठक में हिस्सा लेने गए। वहां वे जिस पदाधिकारी के घर में ठहरे उनके घर के साथ वाले प्लाट पर चीटियों की बहुत उंची उंची बांबिया थीं। जब उन्होंने इस बारे में उनसे पूछा तो पता चला कि आजादी के बाद किसी जैन परिवार ने वह बांबियों वाला प्लाट खरीदा था। जब उन्होंने यह देखा कि वहां चीटियों ने घर बसा रखा है तो उन्होंने उसे तोड़ कर घर बनाने का इरादा त्याग दिया।

उनका कहना था कि अपना घर बसाने के लिए किसी और को बेघर करना ठीक नहीं है। उस प्लाट को उन्होंने वैसा ही रहने दिया और साथ में जमीन खरीदकर वहां घर बना लिया। इतना ही नहीं वे नियमित रुप से उन बांबियों के पास आटा और चीनी डालते रहे ताकि चीटियों का पेट भर सके।

ऐसे ही एक बार वे नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट के सम्मेलन में जोधपुर गए। करीब 300-400 पत्रकारों की वापसी का आरक्षण करवाना था इसलिए वे रेलवे के डिवीजनल रीजनल मैनेजर से मिलने गए। उस दिन छुट्टी थी व उसने उन्हें अपने घर पर बुला लिया। वहां उसने उन्हें जो बात बताई वह चौंकाने वाली थीं। उसने उन्हें बताया कि एक विशेष मेले के दौरान यहां करीब एक लाख लोग आते हैं पर टिकटों की बिक्री सवा लाख होती है।

इसकी वजह ढूंढने पर पता चला कि बड़ी तादाद में भक्त अपने साथ भगवान की मूर्ति भी साथ लेकर चलते हैं और वे मूर्ति का टिकट भी खरीदते हैं। यात्रियों का कहना होता है कि हम अपने भगवान को बिना टिकट यात्रा कैसे करवा सकते। अब इस बात की सहज कल्पना की जा सकती है कि जब उत्तरप्रदेश, बिहार सरीखे राज्यों में मेले के मौक पर आम तीर्थयात्री तक टिकट न खरीदते हो तब राजस्थान में साथ चल रही भगवान की मूर्तियों का टिकट खरीदना कितनी अहमियत रखता है। यह वहां का सांस्कृतिक अंतर बताता है।

ऐसे ही 1975 में एक बार उन्हें फाइनेंशियल एक्सप्रेस से सूखे की कवरेज करने के लिए राजस्थान भेजा गया। वे वहां ट्रेन से पहुंचे और फिर जीप के जरिए घूमते हुए एक दम सीमा तक पहुंच गए। तब तक सूरज डूबने लगा था। पाकिस्तान के साथ युद्ध हुए चार साल ही बीते थे। अतः समस्या रात बिताने की थी। वे पास के एक गांव में गए जहां के लोग उन्हें रात बिताने की जगह देने को सहर्ष तैयार हो गए। वे थक चुके थे व उन्होने नहाने की इच्छा जताई। वे लोग करीब पौन बाल्टी पानी लेकर आए जिससे किसी तरह से उन्होंने स्नान किया। रात को गांव वालों ने उन्हें बाजरे की रोटी, लाल मिर्च का सालन व कुछ मीठा खिलाया। वे जल्दी सो गए क्योंकि चारों ओर अंधेरा था।

रात के करीब तीन बजे घंटियों की आवाज से उनकी आंख खुल गई। उनका मेजबान भी जग गया था। उन्होंने घंटियों की वजह पूछी तो उसने बताया कि गांव में पानी नहीं है। वे लोग 20 किलोमीटर दूर जाते हैं, जहां पानी है। वे वहीं नहा धोकर 11 बजे तक वापस लौटते हैं और अपने साथ पीने का पानी लेकर आते हैं। तब उन्हें अहसास हुआ कि उन्हें नहाने के लिए जो पौन बाल्टी पानी दिया गया था वह कितनी कीमती थी। गांव वाले चाहते तो पानी न होने की बात कह सकते थे पर उन्होंने अपने मेहमान को निराश नहीं किया।

आज जब हमारे देश में एक ही पार्टी के नेता आपस में एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हो तो उसे देखते हुए राजस्थान में ऐसे किस्सों की भरमार है जहां दो विपक्षी नेता को एक दूसरे के प्रति कितनी आत्मीयता व सदभाव प्रदर्शित करते थे। बात तब की है जब मोहनलाल सुखाड़िया राजस्थान के कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री थे व भैरों सिंह शेखावत मुख्य विपक्षी पार्टी जनसंघ के नेता हुआ करते थे।

भैरोंसिंह शेखावत को किसी शहर में पार्टी की बैठक में हिस्सा लेने जाना था। वे कार से रवाना हुए व रास्तें में कार खराब हो गई। ड्राइवर व साथ के लोग कार ठीक करने लगे और शेखावत किसी पेड़ के नीचे पत्थर पर बैठ गए। संयोग से कुछ देर बार वहां से मुख्यमंत्री का काफिला गुजरा। सुखाड़िया ने बाहर नजर डाली तो उन्हें लगा कि वहां शेखावत जैसा कोई बैठे थे। उन्होंने अपने साथ के लोगों से पूछा कि जरा पता करो कि कहीं वे ही तो नहीं है। आपस में बातचीत करते जब तक इस बात की पुष्टि होती उनका काफिला करीब 8-10 किलोमीटर आगे निकल चुका था। उन्होंने गाड़ी मुड़वायी, उस स्थान पर पहुंचे और अपने साथ शेखावत को बैठाया। शहर पहुंचकर पहले उन्हें गंतव्य स्थल पर उतारा फिर अपनी सभा के लिए रवाना हुए।

आज अगर राजस्थान के बीकानेर वाला और कलेवा सरीखे हलवाई देश और दुनिया पर छाए हैं तो उनकी सफलता के पीछे उनकी नियति भी काम करती नजर आ रही है। पुंज बताते हैं कि एक बार उन्होंने वहां के किसी शहर की चर्चित हलवाई से मिठाई खरीदी। उन्होंने अलग अलग तरह की मिठाइयां एक-एक किलो के पांच डब्बे बंधवाएं। उन्होंने दुकानदार से पूछा कि यह जो दूध वाली मिठाई है इसके खराब होने का खतरा तो नहीं है क्योंकि मैं अगले दिन दिल्ली पहुंचूगा।

उसने कहा कि मिठाई खराब हो सकती है व दोनों डब्बे बदल दिए। जब वे डब्बों का थैला लेकर अपनी कार में बैठे तो उन्होंने पाया कि पांच डब्बो के अलावा पाव-पाव भर मिठाई के दो डब्बे और है। वे वापस दुकान पर गए और उससे कहने लगे कि तुमने गलती से ये दो डिब्बे रख दिए हैं। वह मुस्कुराते हुए बोला ‘मैंने जान बूझकर इन्हें रखा है। यह मेरी तरफ से उपहार है। इनमें वही दूधवाली मिठाई है। अगर घर पहुंचने तक ठीक रहे तो खा लीजिएगा वरना फेंक दीजिएगा। अब आपको यह पसंद आ ही गई है तो साथ ले जाइएगा।’

साभार नया इण्डिया 

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