पेशावर कांड के क्रांतिकारी चन्द्रसिंह गढ़वाली की रोमांचक गाथा जिन्होंने आजाद भारत में भी काटी जेल !

१९४७ का भारत आज का भारत नहीं था अपितु विदेशी अंग्रेजों की गुलामी के तले भारतवासी बंधुआ जीवन जीने को मजबूर थे ! सामान्य लोगों में तो आक्रोश था ही फौज के साधारण सैनिकों में भी असंतोष धीरे धीरे पनप रहा था ! २२ अप्रैल १९३० को दोपहर के समय पेशावर के परेड मैदान में जमा सभी सैनिकों के समक्ष अंग्रेज अधिकारी ने आकर कहा कि हमे अभी पेशावर शहर में ड्यूटी के लिए जाना होगा ! पेशावर शहर में 98 प्रतिशत मुसलमान हैं और मात्र 2 प्रतिशत हिन्दू हैं ! हिन्दू चूंकि व्यापारी हैं इसलिए मुसलमान उनकी दुकानें लूट लेते हैं तथा हिन्दुओं पर अत्याचार करते हैं। राम-कृष्ण को गालियां देते हैं गौ हत्या करते हैं ! हिन्दुओं की बहू बेटियों को उठा ले जाते हैं गढ़वाली पल्टन को शहर जाकर हिन्दुओं की रक्षा करनी होगी और जरूरी हुआ तो मुसलमानों पर गोलियां भी चलानी पड़ेंगी ! आज़ादी के संघर्ष को खत्म करने के लिए, उसे मज़हबी रंग देने के लिए अंग्रेजों ने एक नीति बनाई कि जिन इलाकों में मुसलमान ज्यादा होते तो उनमे हिन्दू सैनिकों की तैनाती करते और जिन इलाकों में हिन्दू ज्यादा होते तो उनमें मुसलमान सैनिकों की तैनाती करते थे ! चन्द्र सिंह गढ़वाली अंग्रेजों की इस कूटनीति को समझ गए ! उन्होंने अपने सैनिकों से कहा “ब्रिटिश सैनिक कांग्रेस के आन्दोलन को कुचलना चाहते हैं,क्या गढ़वाली सैनिक गोली चलने के लिए तैयार हैं ? ” पास खड़े सभी सैनिकों ने कहा कि कदापि नहीं हम अपने निहत्थे भाइयों पर कभी गोली नहीं चलायेंगे !

अंग्रेज सरकार ने सैनिकों के बैरकों पर पोस्टर चिपकाया हुआ था कि जो भी फौजी बगावत करेगा उसे सजा दी जाएगी और गोली से उड़ा दिया जायेगा, उसे फाँसी दे दी जाएगी, खती में चूना भरकर उसमें बागी सिपाही को खड़ा किया जायेगा और पानी डालकर जिन्दा ही भून दिया जायेगा, बागी सैनिकों को कुत्तों से नुचवा दिया जायेगा, उसकी सब जमीन जायदाद छीनकर उसे देश से निकला दे दिया जायेगा, आदि आदि  ! इस सख्त नियम के होने के बावजूद गड्वाली सैनिकों ने अंग्रेजों का साथ न देने का मन बना लिया !

पेशावर के किस्सा खानी बाज़ार में २० हज़ार के करीब निहत्थे आन्दोलनकारियों की भीड़ विदेशी शराब और विलायती कपड़ों की दुकानों पर धरना देने के लिए आये थे ! एक गोरा सिपाही बड़ी तेज़ी से मोटर साइकिल पर भीड़ के बीच से निकलने लगा जिससे कई व्यक्तियों को चोटे आई ! भीड़ ने उत्तेजित होकर मोटर साइकिल में आग लगा दी जिससे गोरा सिपाही घायल हो गया ! अंग्रेज अधिकारी ने उत्तेजित होकर कहा गढ़वाली थ्री राउंड फायर ! अंग्रेज अधिकारी के आदेश के विरुद्ध चन्द्र सिंह गढ़वाली की आवाज़ उठी ! गढ़वाली सीज फायर !

सभी गड्वाली सैनिकों ने हथियार भूमि पर रख दिए ! सभी सैनिकों को बंदी बनाकर वापिस बैरकों में लाया गया ! सभी सैनिकों ने अपना इस्तीफा दे दिया और कारण बताया कि हम हिन्दूस्तानी सिपाही हिंदुस्तान की सुरक्षा के लिए भर्ती हुए हैं न की निहत्थी जनता पर गोलियां चलने के लिए ! १३ जून १९३० को एबटाबाद मिलिटरी कोर्ट में कोर्ट मार्शल में हवलदार मेजर चन्द्र सिंह को आजीवन कारावास, सारी जायदाद जब्त की सजा सुनाई गयी ! ७ सैनिक सरकारी गवाह बनकर छूट गए ! बाकी ६० में से ४३ सैनिकों की नौकरी, जमीन जायदाद जब्त कर ली गयी ! 

पंड़ित जवाहर नेहरू ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि पेशावर में गढ़वाली सैनिकों ने सैनिक बगावत इसलिए की थी कि वे जानते थे कि देश आजाद होने वाला है और उनके खिलाफ किसी प्रकार की कठोर कार्यवाही नही की जायेगी ! इससे जाहिर होता है कि देश की लिए अपनी जान को दांव पर लगाने वाले वीर सैनिकों की उस समय भी नेताओं की नजर में कोई कीमत नही थी ! जो सैनिक अंग्रेजों के अधीर नौकारी कर रहे थे उनके खिलाफ सशस्त्र बगावत करना आम बात नही थी ! अंग्रेज चाहते तो गढ़वाली सैनिकों को पेशावर में गोलियों से भून देते कोई उस समय पूछने वाला नही था ! फिर गढ़वाली सैनिक जानते थे कि इस बगावत का अंजाम कुछ भी हो सकता था ! लेकिन नेहरू जी की बातों से लगता है उस समय भी देश की आजादी को नेता राजनीति के चश्मे से देखने लगे थे !

चन्द्र सिंह २६ अक्टूबर १९४१ को ११ साल ८ महीने की कैद काटकर ही छूटे ! १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन में फिर से जुड़ गए ! फिर सात साल की सजा इस केस में भी मिली ! अंततः २२ अक्टूबर १९४६ को गढ़वाल वापिस लौटे ! १६ साल की नौकरी के बदले मिली मात्र ३० रुपये पेंशन जिसे उन्होंने लेने से मना कर दिया वहीँ उनकी जमीन जायदाद पहले ही जब्त हो चुकी थी ! अपने बाकी साथियों को सम्मानजनक पेंशन दिलवाने के लिए वे आजीवन संघर्ष करते रहे ! इस अहिंसक सिपाही के पवित्र आन्दोलन को अहिंसा के पुजारी गाँधी ने बागी कहकर उनकी आलोचना की और आज़ादी के बाद उन्हें स्थानीय चुनावों में इसलिए खड़ा नहीं होने दिया गया क्यूंकि वे फौजी कानून में सजा पाए हुए थे ! 

१९६२ में नेहरु ने उनसे कहा - बड़े भाई आप पेंशन क्यूँ नहीं लेते ! चन्द्र सिंह ने कहा मैंने जो कुछ भी किया पेंशन के लिए नहीं बल्कि देश के लिए किया ! आज आपके कांग्रेसियों की ७० और १०० रुपये पेंशन हैं जबकि मेरी ३० रुपये ! नेहरु जी सर झुकाकर चुप हो गए और फिर बोले अभी जो भी मिलता हैं उसे ले लो ! चन्द्र सिंह ने कहा कि यह कंपनी रूल के अनुसार जो ३० रूपए मासिक जो आपकी सरकार देती हैं वह न देकर मुझे एक साथ ५००० रुपये दे दिए जाये जिससे में सहकारी संघ और हाउसिंग ब्रांच का कर्ज चुका सकूँ ! नेहरु जी ने कहा कि आपकी पेंशन भी बढ़ा दी जाएगी और आपको ५००० रुपये भी दे दिए जायेगे ! फिर चन्द्र सिंह की फाइल उत्तर प्रदेश सरकार के पास भेज दी गयी ! पर सरकारे आती जाती रही उनको कोई न्याय नहीं मिला ! मिली तो आजाद भारत में सजा ! 

सन् 1948 में टिहरी में राजशाही के खिलाफ लड़ने वाले अमर वीर नागेन्द्र दत्त सकलानी के शहीद हो जाने के बाद वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली जी ने टिहरी आन्दोलन का नेतृत्व किया ! सरकार को आशंका हो गई थी कि चन्द्रसिंह जिला बोर्ड के चेयरमैन का चुनाव लड़ना चाहते हैं इसलिए सरकार ने उन्हें पेशावर का सजायाफ्ता बताकर जेल में ड़ाल दिया ! कुछ माह बाद जेल से छूटने के बाद गढ़वाली जी ने गढ़वाल में शराब के खिलाफ आन्दोलन भी किया इसमें कोटद्वार की इच्छागिरि मांई जिन्हें लोग टिंचरी मांई के नाम से जानते थे उनका भी अहम योगदान रहा !

श्री शैलन्द्र ने पांचजन्य के स्वदेशी अंक में १६ अगस्त १९९२ में चन्द्र सिंह गढ़वाली से हुई अपनी भेंट वार्ता का वर्णन करते हुए लिखा हैं – मैंने पुछा – इस आज़ादी का श्रेय फिर भी कांग्रेस लेती हैं ? 

चन्द्र सिंह उखड़ गए ! गुस्से में कहाँ – यह कोरा झूठ हैं ! मैं पूछता हूँ कि ग़दर पार्टी, अनुशीलन समिति, एम.एन.एच., रास बिहारी बोस, राजा महेंदर प्रताप, कामागाटागारू कांड, दिल्ली लाहौर के मामले, दक्शाई कोर्ट मार्शल के बलिदान क्या कांग्रेसियों ने दिए हैं ? चोरा- चौरी कांड और नाविक विद्रोह क्या कांग्रेसियों ने दिए थे ? लाहौर कांड, चटगांव शस्त्रागार कांड, मद्रास बम केस, ऊटी कांड, काकोरी कांड, दिल्ली असेम्बली बम कांड , क्या यह सब कांग्रेसियों ने किये थे ? हमारे पेशावर कांड में क्या कहीं कांग्रेस की छाया थी ? अत: कांग्रेस का यह कहना कि स्वराज्य हमने लिया, एकदम गलत और झूठ हैं ! 

कहते कहते क्षोभ और आक्रोश से चन्द्र सिंह जी उत्तेजित हो उठे थे ! फिर बोले- कांग्रेस के इन नेताओं ने अंग्रेजों से एक गुप्त समझोता किया, जिसके तहत भारत को ब्रिटेन की तरफ जो १८ अरब पौंड की पावती थी, उसे ब्रिटेन से वापिस लेने की बजाय ब्रिटिश फौजियों और नागरिकों के पेंशन के खातों में डाल दिया गया ! साथ ही भारत को ब्रिटिश कुनबे (commonwealth) में रखने को मंजूर किया गया और अगले ३० साल तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद सेना को गैर क़ानूनी करार दे दिया गया ! मैं तो हमेशा कहता हूँ- कहता रहूँगा कि अंग्रेज वायसराय की ट्रेन उड़ाने की कोशिश कभी कांग्रेस ने नहीं की, की तो क्रांतिकारियों ने ही ! हार्डिंग पर बम भी वही डाल सकते थे न कि कांग्रेसी नेता ! सहारनपुर-मेरठ- बनारस- ग्वालियर- पूना-पेशावर सब कांड क्रांतिकारियों से ही सम्बन्ध थे, कांग्रेस से कभी नहीं !

१ अक्टूबर १९७९ को ८८ वर्ष की आयु में महान क्रांतिकारी चन्द्र सिंह गढ़वाली का स्वर्गवास अत्यंत विषम स्थितियों में हुआ !

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