श्री लालकृष्ण आडवानी जी के आत्म कथ्य "मेरा देश मेरा जीवन" से साभार !


एक रात एक व्यक्ति ने देखा एक स्वप्न

उसने देखा वह चल रहा है समुद्रतट पर परमात्मा के साथ !

क्षितिज पर चमक रहे थे उसके जीवन के द्रश्य !

हर द्रश्य के लिए थे रेत पर दो जोड़ी पदचिन्ह,

एक उसके और दूसरे परमात्मा के !

और जब आकाश पर चमका उसके जीवन का आखरी द्रश्य,

तो उसने गौर किया

कि जीवन के रेतीले पथ पर

कई बार दिखे सिर्फ एक ही जोड़ी पदचिन्ह !

तब तब नहीं थे दूसरी जोड़ी के पदचिन्ह,

जब जब वह डूबा था उदासी के समंदर में,

या दुःख के पहाड़ तले !

उद्विग्न हुआ उसका मन

और उसने परमात्मा से पूछ ही लिया -

" हे परमात्मा ! तुमने कहा था

कि अगर मैं निर्णय लूं तुम्हारे साथ का

तो तुम भी चलोगे सदा साथ मेरे !

पर गौर किया मैंने

कि मेरे जीवन के कष्टतम समय में

रेत पर छपे थे सिर्फ एक ही जोड़ी पदचिन्ह !

समझ नहीं पाया मैं

जब जब थी मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत

तब तब क्यों छोड़ गए तुम मेरा साथ ----"?

परमात्मा ने जबाब दिया -

" मेरे प्रिय, मेरे अमूल्य बच्चे

मुझे तुमसे है अगाध स्नेह और प्रेम,

मैं कैसे तुम्हें छोड़ सकता हूँ अकेले,

संकट और दुःख के समय !

जब जब दिखाई दिए तुम्हें

सिर्फ एक ही जोड़ी पदचिन्ह

तब तब थे तुम मेरी गोदी में !

उठाया हुआ था मैंने तुम्हारा वजूद

सम्हाला हुआ था तुम्हारा अस्तित्व

अपने हाथो में !

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