भारत के गौरवशाली इतिहास को शर्मसार करते भारतीय फिल्मकार !

फिर एक खिलवाड़ । सहिष्णु भारत के हिंदू समाज की भावनाओं को अपमान, तिरस्कार ही नहीं अपितु इतिहास को विकृत करने का एक योजनाबद्ध षडयंत्र भारतीय फिल्म जगत के कथित बुद्धिजीवी करते आ रहे हैं। इस षडयंत्र की अगली कड़ी है फिल्म निर्माता संजय लीला भंसाली की अगली निर्माणाधीन फिल्म।

यह विवाद सोशल मीडिया पर भी अब वायरल हो रहा है , रामलीला और बाजीराव मस्तानी जैसी विवादित फिल्म बनाने वाले बॉलीवुड फिल्म निर्माता 'संजय लीला भंसाली' अब मेवाड़ की महारानी पदमिनी पर एक विवादित फिल्म बनाने जा रहे हें। इस फिल्म में क्रूर और हवसी चरित्र के रूप से कुख्यात इस्लामिक आक्रान्ता अल्लाहुद्दीन खिलजी को एक अभूतपूर्व प्रेमी के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। इस फिल्म में चर्चित अभिनेत्री दीपिका पादुकोण को रानी पदमिनी के रूप में प्रस्तुत किया जायेगा, वहीं खिलजी का किरदार पहले शाहरुख खान को दिए जाने की सम्भावना व्यक्त की जा रही थी लेकिन लगातार नकारात्मक किरदार निभाने के कारण उन्होंने इस फिल्म में दिलचस्पी नही ली अपितु सम्भावना व्यक्त की जा रही है की 'सलमान खान ' इस फिल्म में खिलजी का किरदार निभाते नजर आएंगे और रणवीर सिंह राणा रतन सिंह के रूप में दिखेंगे।

यह कहना अनुचित नहीं होगा की महारानी पदमिनी ना सिर्फ राजस्थान का गौरव हैं अपितु अपितु समस्त भारतवर्ष के बहुसंख्यक हिन्दू समाज की भावनात्मक आस्था भी रानी पदमिनी के स्मरण से जुडी हुई है, यह स्मरण महारानी पदमिनी के अत्यन्त कष्टदायी जौहर तप की याद करवाता है , क्योकि रानी पदमिनी इतिहास की वह पहली स्त्री थीं जिन्होंने अपने आत्मसम्मान की रक्षा हेतु स्वयं को किले की अन्य 16,000 स्त्रियों के साथ अग्निकुंड में स्नान किया था। आज भी अगर मेवाड़ के क्षेत्र वासियों से बात की जाये तो वे एसी किसी घटना को भी सिरे से नकार देते हैं जिसमे राणा रतन सिंह द्वारा रानी पदमिनी का प्रतिबिम्ब खिलजी को दिखाए जाने की अनुमति दी गयी हो, ऐसे में कोई फिल्म निर्माता अगर एक क्रूर और हवसी चरित्र के इस्लामिक आक्रांता को एक महान प्रेमी के चरित्रिक रूप में प्रस्तुत करता है या फिर वर्तमान के फि़ल्मी चलन अनुसार ऐसी पतिव्रता स्त्री के फिल्मी किरदार द्वारा फिल्म में अश्लीलता को जोड़ता है, तो यह स्पष्ट रूप से इतिहास ही नही एक समाज विशेष की भावनाओं का तिरस्कार माना जायेगा ।

ज्ञात हो की अल्लाहुद्दीन खिलजी के पूर्व क़ुतुबुद्दीन ऐबक के सिपहसलार बख्तियार खिलजी ने भारत के गौरवशाली स्तम्भ नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों को ध्वस्त कर आग लगाकर न सिर्फ सनातन हिन्दू ग्रंथों को नष्ट किया था अपितु हजारों ' बौद्ध ' भिक्षुओं को मौत के घाट उतरवा दिया था। ऐसे क्रूर और अत्याचारी आक्रान्ताओं पर निहित कोई सकारात्मक छवी उत्पन्न करने वाली फिल्म बनाई जाये तो यह सरासर बौद्धिक परिवर्तन रुपी षडय़ंत्र ही माना जायेगा, यद्द्पी फिल्मकारों को ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर फिल्म बनाकर समाज में एक असंतुलित स्थिति पैदा करने की जरूरत ही क्या है? सालों से अपमान को सहिष्णुता पूर्वक सहने वाला हिन्दू समाज कब तक और क्यों इस तरह के बौद्धिक अत्याचार को बर्दाश्त करेगा? क्या यह बौद्धिक आतंकवाद उत्पन्न करने का षडय़ंत्र नही है? सोशल मीडिया पर अक्सर यह प्रश्न उठाया जाता है की संजय लीला भंसाली जी आखिर ऐसे ही चरित्र को क्यों चुनते हैं जिस से किसी वर्ग विशेष की भावनाओं का तिरस्कार हो और उनके सम्मान को ठेस पहुंचे? 

विवादित फिल्म बनाने के शौकीन भंसाली जी आखिर औरंगजेब की पुत्री और खुद को श्री कृष्ण के प्रति समर्पित कर देने वाली मुगल शहजादी जैब-उन-निसा या अकबर की अनसुनी पत्नी ताजबेगम पर भी एक फिल्म बना सकते हैं जिन्होंने कृष्ण के प्रति अस्थात्म्क प्रेम में सम्पूर्ण सल्तनत से विद्रोह कर दिया था, यद्दपि भंसाली जी ऐसी हिम्मत दिखाने में असमर्थ दिखाई पड़ते हैं। ऐसे कई चरित्रों का इतिहास मै वर्णन है जो सम्रस्था की भावना उजागर करते हैं, लेकिन इस से भंसाली जी को विवादित पब्लिसिटी कैसे मिलेगी यह सोच का विषय है! और सवाल यह भी उत्पन्न होता है कि इतिहास से छेड़छाड़ कर हिन्दुओं की भावनाओं को चोट पहुँचाने वाली इस विवादित फिल्म को क्या सेंसर बोर्ड प्रकाशित होने की अनुमति देगा ? यद्दपि उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए की फिल्म में इतिहास से छेड़-छाड़ ना भी की गयी हो तो भी फिल्म में ऎसी कोई धारणात्मक प्रस्तुती न हो जो किसी समाज के सम्मान को ठेस पहुंचाए।



साभार स्वदेश

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