जानिये मालेगांव काण्ड का पूरा सच और भगवा आतंकवाद शब्द का आविष्कार !

नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी NIA ने 2008 के मालेगाव धमाका मामले में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर समेत 6 लोगों को क्लीन चिट दे दी है ! इससे पहले मुंबई की पुलिस और धमाकों की जांच कर रही स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम ATS ने प्रज्ञा ठाकुर को धमाके का मास्टरमाइंड बताया था ! इसी आधार पर पिछली कांग्रेस सरकार ने भगवा आतंकवाद शब्द का आविष्कार किया था और बाद में इसका काफी दुरुपयोग भी किया गया !

अब सांध्वी प्रज्ञा को क्लीन चिट दिए जाने के बाद उनकी रिहाई का रास्ता साफ़ दिख रहा है, लेकिन इसी के साथ कांग्रेस और अन्य दलों और विशेषकर स्वयं को सेक्युलर बताने वाले दलों की और से चीख पुकार भी शुरू हो गयी है ! इन दलों के कुछ नेता ऐसा व्यवहार कर रहे है जैसे वे जांच टीम में शामिल रहे हो या फिर न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठे रहे हो ! 

ऐसे नेता किस आधार पर मोदी सरकार पर यह आरोप लगा कर देश को गुमराह कर रहे है कि मोदी सरकार तो पूर्व से ही इन लोगों की रिहाई के पक्ष में थी ? यदि सांध्वी प्रज्ञा और उनके साथियों के विरुद्ध मालेगांव धमाकों की साजिश में शामिल होने के प्रमाण थे, तो फिर आज जो नेता देश की जनता को बरगला रहे है, उन्हें यह बताना चाहिए कि सप्रंग शासन के दौरान इन लोगों को सजा देना क्योँ नहीं सुनिश्चित किया जा सका ? आखिर २०११ से लेकर २०१४ तक एनआईए यह काम क्योँ नहीं कर सकी ? इसके पहले मुंबई पुलिस का आतंकवाद निरोधी दस्ता-एटीएस यह काम क्योँ नहीं कर सका ?


जिन नेताओं को यह लग रहा है कि एनआईए ने राजनैतिक दवाब में गलत निर्णय लिया है उन्हें मालेगांव में ही 2006 में हुए बम विस्फोटों के सिलसिले में पकडे गए आठ आरोपियों की रिहाई पर भी कुछ कहना चाहिए, जिन्हें चंद दिनों पूर्व ही रिहा किया गया है ! बीते माह इनकी रिहाई तब हुई, जब इसी एनआईए ने कहा कि उनके पास उनके खिलाफ सुबूत नहीं और एटीएस ने जो सबूत जुटाए वह भरोसेमंद नहीं है ! जब इन आठ लोगों की रिहाई हुई तब आज घडियाली आंसू बहा कर छाती पीट पीट कर रोने वाले नेताओं की और से यह सवाल तक उठाया गया था कि आखिर उन्हें कोई मुआवजा क्योँ नहीं दिया जाना चाहिए ? अगर वे आठ मुआवजा पाने के अधिकारी है तो यह छः क्योँ नहीं ? आखिर यह दोहरी राजनीति क्योँ ? क्या इसलिए कि अब हिन्दू आतंकवाद का जुमला उछालने में मुश्किलें आएँगी ? 

अगर हमारे राजनेता संतुलित प्रतिक्रिया व्यक्त करने में सक्षम नहीं है तो फिर उन्हें चुप रहना सीख लेना चाहिए ! यह तब और भी आवश्यक हो जाता है जब जांच एजेंसी की परख अदालतें भी करती है !

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