कांग्रेस हो या भाजपा - बदलाव की बयार !


आज अनेक समाचार पत्रों ने भाजपा और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की भावी रणनीति पर फोकस किया है ! अनेक का मानना है कि गुरुवार को आये चुनावी नतीजों से उत्साहित होकर मोदी संतुष्ट होकर नहीं बैठने वाले ! उनकी आगामी कार्ययोजना में अगले वर्ष होने वाले उत्तरप्रदेश चुनाव में सफल होना सबसे ऊपर होना लाजिमी है ! वे जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के प्रदर्शन पर ही 2019 के लोकसभा चुनाव में सफलता निर्भर है ! 

आगामी 26 मई को उनकी सरकार के दो वर्ष पूर्ण होने वाले हैं ! कल शुक्रवार को उन्होंने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ दो घंटे से अधिक समय तक बौद्धिक व्यायाम किया है ! राजनैतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि, इस दौरान मंत्रिमंडल पुनर्गठन, विभिन्न राज्यों के राज्यपालों में बदलाव तथा भारतीय जनता पार्टी के संगठन में परिवर्तन संबंधी विचार विमर्श हुआ होगा ।

पार्टी अध्यक्ष शाह के साथ अरुण जेटली की उपस्थिति से क्या कयास लगाया जा सकता है ? यातो वे आज भी प्रधान मंत्री के सर्वाधिक विश्वसनीय बने हुए हैं या उन्हें विश्वास में लेकर उनके पर कतरे जायेंगे ? सफल राजनेता का अर्थ ही है, संतुलन और समन्वय की कुशलता, उपयोगी व्यक्तियों को पहचान कर उनकी योग्य स्थान पर नियुक्ति ! अब तक मोदी जी इस कसौटी पर खरे उतरे हैं ! वे जेटली और स्वामी जैसे धुर विरोधियों किन्तु उपयोगी व्यक्तियों को अपने साथ जोड़े रखने में सफल रहे हैं तो अनुपयोगी और अनुत्पादक तत्वों को भी उनका स्थान दिखाने में नहीं चुके हैं !

आम धारणा है कि अगले कुछ दिनों में मंत्रियों के विभागों में फेरबदल होगा ही ! कुछ नए चहरे आयेंगे तो कुछ पुराने मंत्री जरूरत के मुताबिक़ संगठन में जायेंगे ! कल्याण सिंह को पुनः उत्तरप्रदेश में चुनावी तैयारी हेतु राज्यपाल पद से वापस बुलाया जा सकता है तो गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल को राज्यपाल बनाया जा सकता है ! श्री शाह की नई टीम में कुछ नए उपाध्यक्ष और महासचिव देखने को मिल सकते हैं ।

भाजपा के लिए असली अग्नि परीक्षा उत्तर प्रदेश के चुनाव है । पार्टी ने विगत लोकसभा चुनाव में 80 सीटों में से 70 पर जीत हासिल की थी । 2017 के विधानसभा चुनाव में अगर प्रदर्शन कमजोर रहता है तो 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों की संभावनाओं पर भी विपरीत असर पड़ेगा ।

इस अहम् सवाल को केंद्र में रखकर ही मंत्री मंडल, राज्यपाल और संगठन में फेरबदल होगा, उस पर ही ध्यान केंद्रित किया जाएगा, यह तो तय ही है ! उत्तर प्रदेश में अकेले लड़ेंगे या एनडीए में किसी नए दल को शामिल करके ? इस सवाल का जबाब भी आने वाले कुछ दिनों में सामने आ सकता है । किस क्षेत्रीय क्षत्रप को महत्व दिया जाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा ! भाजपा असम के समान मुख्य मंत्री घोषित करके लडेगी या, नेताओं की महत्वाकांक्षाओं की आंधी का सामना करने में स्वयं को असमर्थ पाकर “चुनाव बाद मुख्यमंत्री का चयन” जैसे जुमले को ढाल बनायेगी ? अगर कांग्रेस ने गांधी परिवार में से किसी को मुख्यमंत्री घोषित करके चुनाव लड़ा तो चतुष्कोणीय संघर्ष में संभवतः भाजपा अकेली पार्टी होगी, जिसका मुख्य मंत्री पूर्व घोषित नहीं होगा ! ऐसी स्थिति में भाजपा को भी उम्मीदवार की घोषणा करनी पड़ सकती है। दावेदारों की भरमार उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी ! मेनका-वरुण, योगी, कल्याण सिंह, और कई अनेक यह महत्वाकांक्षा पाले होंगे ही !

समाचार पत्रों ने आसाम में भाजपा की जीत और केरल व पश्चिम बंगाल में मत प्रतिशत में वृद्धि का श्रेय संघ को दिया है ! बैसे सचाई तो यह है कि आसाम हो चाहे बंगाल या केरल, तुष्टीकरण की अति ने भाजपा को पल्लवित पुष्पित होने का अवसर मुहैया किया है ! आखिर भारत का आम आदमी राष्ट्रहित की अनदेखी कब तक बर्दास्त करेगा ? आसाम की घुसपैठ समस्या तथा बंगाल व केरल के साम्प्रदायिक उन्माद ने भाजपा के मत प्रतिशत में वृद्धि की है ! भारत के तथाकथित सेक्यूलर दल, विशेषकर कांग्रेस जितनी जल्द इस बात को समझ लेंगे, उतना ही उनके लिए अच्छा होगा ! अन्यथा तो भाजपा का विजय रथ सरपट दौड़ने ही वाला है, जब तक कि वह भी तुष्टीकरण की अंधी दौड़ में औरों के समान शामिल न हो जाए ! कौन कितना बदलेगा, इस पर समाज तो नजरें गडाए ही है ! 

बैसे यह अच्छा ही है कि कांग्रेस नेतृत्व ने भी आत्मचिंतन प्रारम्भ कर दिया है ! हैरानी की बात है कि उसने अभी तक भाजपा विरोधी वोटों को अपने पक्ष में मोड़ने पर ही ध्यान केन्द्रित किया है ! जिस दिन कांग्रेस भाजपा समर्थकों को अपनी ओर आकर्षित करने की दिशा में सचेष्ट होगी, उसका मूल स्वरुप उसे पुनः प्राप्त हो जाएगा ! आखिर गांधी के अभ्युदय में भी उनका संत का चोला, महात्मा की उपाधि और प्रार्थना सभाएं ही थीं ! लेकिन आज की कांग्रेस क्या बापू की तरह "रघुपति राघव राजा राम, ईश्वर अल्लाह एकही नाम, सबको सन्मति दे भगवान्" गा पायेगी ? तुष्टीकरण छोड़कर सबको समान भाव से अपना बनाना कोई आसान काम थोड़े ही है ! 

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