आम आदमी पार्टी की सरकार बनाम आत्महत्या को प्रोत्साहन !

आजकल बहुत से लोग मानते हैं कि न्यायपालिका का विधायिका में हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है ! इससे जहाँ एक ओर तो जनता से जुड़े अन्य अनेक महत्वपूर्ण मसलों पर गौर करने में न्यायालयों को कठिनाई हो रही है, वही दूसरी ओर राजनेताओं से सीधे टकराव के चलते प्रजातंत्र के इन दोनों ही आधार स्तंभों की प्रतिष्ठा पर भी आंच आ रही है ! न्यायाधीशों की कमी से जूझ रही न्याय पालिका को इसके चलते अत्यंत ही कठिनाई का सामना करना पड़ता है !

जब से स्वनामधन्य आम आदमी पार्टी का अभ्युदय हुआ है, इस टकराव में और तेजी आ गई है ! ऐसे ऐसे करतब श्रीमान केजरीवाल साहब और उनके सिपहसालार गण दिखा रहे हैं, कि रस्सी पर करतब दिखाने वाले पुराने जमाने के नट भी दांतों तले उंगली दबाने को विवश हो जाएँ ! कलाबाजी की हद देखिये कि जब देश की संसद हेलीकोप्टर घोटाले पर चर्चा कर रही थी, देश का ध्यान इस महा घोटाले की ओर था, तब भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बनाकर सफलता की सीढियां चढ़ने वाले आम आदमी के नेतागण प्रधान मंत्री की डिग्री का बेसिरपैर का मुद्दा उठाकर भ्रष्टाचार के मुद्दे को कमजोर करने की जी तोड़ कोशिश में लगे हुए थे !

कलाबाजी का ताजा उदाहरण हैदरावाद में आत्महत्या करने वाले छात्र रोहिथ वेमुला का भी देखिये ! आम आदमी की सरकार है दिल्ली में, उसका हैदरावाद से क्या लेनादेना ? लेकिन केजरीवाल साहब को खुदा के रहमो फजल से दिल्ली में मुख्यमंत्री की कुर्सी क्या नसीब हुई, उन्होंने स्वयं को हल्दी की गाँठ पाकर पंसारी बने चूहे के समान पूरी कायनात का मालिक मानना शुरू कर दिया ! उन्होंने आनन् फानन में घोषणा कर दी कि रोहिथ वेमुला के भाई को दिल्ली में अनुकम्पा नियुक्ति के नाम पर शासकीय नौकरी देने की घोषणा कर दी ! बला से अनुकम्पा नियुक्ति का क़ानून यह कहता रहे कि किसी शासकीय कर्मचारी की मृत्यु अथवा विशेष परिस्थिति में राज्य के किसी नागरिक को मानवीय आधार पर नियुक्ति दी जा सकती है !

पता नहीं उनके इस निर्णय के पीछे मूल कारण रोहिथ की आत्महत्या थी, या फिर रोहिथ के परिवार द्वारा हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध मत ग्रहण करने की सौदेबाजी ? आखिर जिस वामपंथी जमात से वे आते हैं, उनका एकमात्र प्राथमिक उद्देश्य हिन्दुओं को नीचा दिखाना ही रहता आया है ! खैर उनके इस अविवेकपूर्ण और मनमाने निर्णय को न्यायालय में चुनौती मिलनी ही थी !

अधिवक्ता अवध कौशिक द्वारा दायर इस जनहित याचिका में कहा गया है कि छात्र की आत्महत्या का दिल्ली के साथ कोई संबंध नहीं है ! उसका निधन हैदराबाद विश्वविद्यालय में हुआ ! वह दिल्ली में कोई सरकारी कर्मचारी नहीं था, अतः इस प्रकार का निर्णय विशुद्ध रूप से राजनीति से प्रेरित, पक्षपातपूर्ण और अवैध है, जिसे कानूनन अनुमति नहीं दी जानी चाहिए ।याचिका में इस नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देते हुए कहा गया है कि दिल्ली मंत्रिमंडल के फैसले से एक गलत मिसाल कायम होगी । 

शहादत उसे कहते हैं, जिसमें व्यक्ति किसी महान काम के लिए जीवन का त्याग करे, जबकि रोहिथ का मामला नादानी भरा आत्महत्या का साधारण मामला है ! आम आदमी पार्टी की सरकार के फैसले में जन कल्याण के स्थान पर आत्महत्या को प्रोत्साहन अधिक दिखाई देता है ! जैसाकि पूर्व में उनकी जनसभा में एक राजस्थानी किसान द्वारा की गई आत्महत्या में भी दिखाई दिया था !

याचिका में कहा गया है कि सरकार के फैसला कानून का स्पष्ट उल्लंघन है, साथ ही इससे दिल्ली के युवाओं के मौलिक अधिकारों का हनन होगा जो अपनी योग्यता के आधार पर नौकरी पाने के लिए कोशिश कर रहे हैं !

दिल्ली उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की खंडपीठ ने कल मंगलवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए आगामी तारीख 17 मई निर्धारित की है । अब देखना है कि 17 मई को क्या होता है ? यह अवैध, मनमाना, तुगलकी, भेदभावपूर्ण, अनुचित और विवेकशून्य निर्णय क़ानून और नीति की कसौटी पर कितना खरा उतरता है ?

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें