स्मार्ट लोगों के स्मार्ट शहर - प्रमोद भार्गव


देश में स्मार्ट शहर गति पकड़ने वाले हैं। फिलहाल 20 शहरों को स्मार्ट शहर के रूप में विकसित करने का लक्ष्य सामने आ गया है। संघ शासित दिल्ली समेत 11 राज्यों से इन शहरों को चुना गया है। ये शहर नई दिल्ली, लुधियाना, जयपुर, उदयपुर, अहमदाबाद, सूरत, इंदौर, भोपाल, जबलपुर, पुणे, सोलापुर, वेलगाम, दावणगेरे, चैन्नई, कोयम्बटूर, कोच्चि, काकीनाड़ा, विषाखापट्टनम,भुवनेश्वर और गुवाहाटी हैं। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार जैसे बड़े राज्यों का इस सूची में एक भी शहर शामिल नहीं हैं। चुने गए 20 शहरों की आबादी 3.54 करोड़ हैं, जो देश की कुल आबादी का यह 2.75 फीसदी भाग हैं। 

दिल्ली को छोड़ दे तो अकेला अहमदाबाद ऐसा शहर है,जिसकी आबादी 50 लाख से ऊपर हैं। बांकी सभी शहर दस लाख की आबादी से नीचे हैं। इन शहरों को अब पांच साल तक हर साल 100 करोड़ रुपए अतिरिक्त दिए जाएंगे। इस धनराशि से इन शहरों में सुविधायुक्त आधुनिक आवास, मनोरंजन एवं खेलकूद के साधन, 24 घंटे बिजली-पानी, सफाई और ठोस कचरा प्रबंधन, बेहतर यातायात एवं पैदल व साइकल पथ की व्यवस्था, सूचना प्रौद्योगिकी व ई-प्रशासन और अन्य सभी प्रकार की संचार सेवाओं के विस्तार तथा आर्थिक गतिविधियों के संचालन पर खर्च होंगे। इन सुविधाओं को प्राप्त करने में कोई विलंब होता है तो उनका भी स्मार्ट हल होगा। साफ है इन शहरों में स्वर्ग की कल्पना समाविष्ट है।

लेकिन एक बात विचारणीय है कि यदि स्मार्ट शहर बनाने पर ही पूरा ध्यान दिया गया व धन खर्च कर दिए जाता हैं तो गांवों की हालत और खस्ता होगी। लोग रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं हासिल करने की खातिर बड़ी संख्या में गांवों से पलायन करेंगे। गोयाकि, हम स्मार्ट शहर बना भी लेते हैं तो भी स्मार्ट शहर का स्मार्ट बना रहना मुश्किल होगा ? 

नगर नियोजन में एक समस्या यह भी है कि प्रभु वर्ग शहर की भूमि का इस्तेमाल अपने संकीर्ण व्यक्तिगत हितों के अनुरूप करता है। इससे निम्न व मध्य वर्ग के लोगों के लिए एक ही रास्ता बचता है कि या तो वे शहरों में ही अधिकतम भीड़-भाड़ वाले इलाकों में दीन-हीन अवस्था में रहें या फिर शहर के बाहरी दूरांचलों में रहें। दूरस्थ शहरों में रहने का मतलब है कि रोजगार या आजीविका के लिए रोजाना शहर की ओर परिवहन समस्या को झेलते हुए भागना। दरअसल हम विकास के भूगोल को पश्चिमी देशों के विकसित शहरों के चश्मे से देखने की बड़ी भूल कर रहे हैं ? वहां एक तो आबादी का घनत्व कम है, दूसरे जनसंख्या बढ़ने अथवा एक शहर में उसके केंद्रीयकृत होने की स्थिति का निर्माण होने से पहले ही शहरों के नए आबादी क्षेत्रों को आधुनिक रूप में विकसित कर लिया जाता है। जैसा कि हमारे यहां चंडीगढ़ और कोटा में देखने में आया है। 

स्मार्ट शहरों की घोषणा करते वक्त केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा था ‘स्मार्ट शहरों को स्मार्ट लोगों की जरूरत होगी।‘ मसलन, सामाजिक विभाजन की यह एक ऐसी नई रेखा है, जिसके तहत इन कथित स्मार्ट बस्तियों में वही लोग रह पाएंगे, जो स्मार्ट हैं। यानी जो लोग आर्थिक, शैक्षिक और तकनीकी रूप से सक्षम होंगे, उन्हें ही स्मार्ट शहरों में रहने का अधिकार दिया जाएगा। तय है, अर्थिक अभावों के चलते जो लोग यह दक्षता हासिल करने से वंचित रह गए हैं, उनका इन शहरों में प्रवेश वर्जित होगा । मसलन ये बस्तियां उन गेट बंद कॉलोनियों का विस्तार होंगी, जिनके मुख्य द्वार पर सुरक्षा के बहाने चौकीदार बिठा दिए गए हैं। विषमता बढ़ाने वाला विकास का यह ऐसा नया मॉडल है, जो उदारवादी अर्थव्यस्था से लाभ पाए सीमित मध्य और उच्च वर्ग के हितों का ही पोषण करेगा। इस मॉडल का हश्र हम उच्च और व्यावसायिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण में देख सकते हैं, जिनका लाभ मुट्ठी भर संस्थानों और इस अर्थव्यस्था से अघाये लोगों तक सिमटकर रह गया है। 
यदि शहरों के विकास के इसी मॉडल को आगे बढ़ाया जाता है तो आबादी के बोझ से नगरों का सरंचनात्मक बुनियादी ढांचा दरकना तय है। इसलिए नीति नियंताओं को जरूरत है कि शहरों के विकास में ऐसी नीतियों को प्राथमिकता दें, जिससे गांवों, कस्बों और छोटे नगरों में ही लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आवास, बिजली और परिवहन जैसी बुनियादी सुविधाओं की जरूरतें पूरी हों। ऐसा होता है तो शहर तो आबादी के बढ़ते दबाव से पैदा होने वाले नारकीय जीवन की त्रासदी झेलने से बचेंगे ही, ग्रामों के भी फिर से स्वर्ग बन जाने की कल्पना हम कर सकते हैं। अन्ना हजारे ने रालेगण सिद्धी में यह कर भी दिखाया है। वैसे भी किसी शहर या गांव की उन्नति का संबंध केवल बुनियादी ढांचे और तकनीकी सुविधाओं की सुरूचिपूर्ण उपलब्धता तक सीमित नहीं रहना चाहिए। इसे ग्रामीण शिक्षा स्वास्थ्य और आर्थिक समृद्धि से भी जोड़ने की कोशिश होनी चाहिए, जिससे विभाजन की कोई नई लकीर नहीं खीचीं जा सकें।






प्रमोद भार्गव
लेखक/पत्रकार
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224
फोन 07492 232007




लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।े

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