व्यापम के जाल में फंसी एक और मछली, मगरमच्छ कहाँ ?

चित्र साभार दहिन्दू

आज जब सीबीआई और यूपी एसटीएफ की टीम के संयुक्त ऑपरेशन में मध्यप्रदेश के बहुचर्चित व्यापम घोटाले के आरोपी रमेश शिवहरे को उत्तर प्रदेश में गिरफ़्तार किया गया, इस बहुचर्चित प्रकरण की ओर देश का ध्यान दोबारा प्रमुखता से पहुँच गया ! 

मध्यप्रदेश में हुए व्यापम घोटाले में सीबीआई भोपाल और यूपी एसटीएफ ने देर रात कानपुर के थाना कल्याणपुर के आवास विकास नंबर तीन में छापा मारकर एचबीटीआई से बीटेक कर चुके रमेश शिवहरे को गिरफ्तार कर लिया। रमेश पर मध्यप्रदेश के 6 जिलों में रिपोर्ट दर्ज है। जबलपुर पुलिस ने रमेश पर 5000 रुपये का इनाम भी घोषित कर रखा है। पिछले साल एमपी एसटीएफ ने महोबा के कबरई स्थित रमेश के घर पर छापेमारी की थी, लेकिन रमेश निकल भागा था तभी से वो फरार चल रहा था।

इसके पहले कि हम व्यापम घोटाले की चर्चा करें, एक नजर इस रमेश शिवहरे पर डाल लेते हैं ! रमेश पहले कानपुर में एक कोचिंग चलाता था, इसी दौरान उसका संपर्क बढ़ा और धीरे धीरे इन संबंधों की डोर मध्यप्रदेश तक जा पहुंची । और देखते ही देखते वह उत्तरप्रदेश में व्यापम घोटाले का सरगना बन गया। रमेश यूपी में शिकार ढूँढता था और उन्हें मध्यप्रदेश में व्यापम की परीक्षा दिलवाकर अपनी और दूसरों की जेब गरम करता था । 

इस व्यक्ति की आर्थिक हैसियत इतनी बढ़ गई कि बसपा शासन काल में रमेश की पत्नी अंशू शिवहरे महोबा जिला पंचायत अध्यक्ष बन गईं ! इतना ही नहीं तो वर्तमान में समाजवादी पार्टी से जिला पंचायत सदस्य है।

शायद इसे ही राजनीति की खूबी कहते हैं ! इन व्यवसायी भ्रष्टाचारियों का न भाजपा से कोई मतलब होता, न बसपा से और न ही समाजवादी पार्टी से, इनका स्वार्थ ही इनका माई बाप होता है ! यूपी में बसपा का शासन था तो रमेश जी यू पी में बसपा के थे, किन्तु मध्यप्रदेश के सत्ता सोपान में प्यार की पेंगें बढ़ा रहे थे ! उत्तर प्रदेश में सत्ता बदली तो ये समाजवादी बन बैठे !

वर्तमान स्थिति यह है कि चार साल से फरार चल रहे इस रमेश से सीबीआई और यूपी एसटीएफ की टीमें गहन पूछताछ कर रही हैं। कल कानपुर कोर्ट में यूपी एसटीएफ आरोपी को पेश करेगी और इसके बाद सीबीआई की टीम कोर्ट से अभियुक्त को ट्रांसिट रिमांड पर ले जाने की तैयारी कर रही है।

शुरूआती दौर में तो यह लगता था कि व्यापम घोटाला महज मेडिकल कॉलेज की परीक्षाओं में धोखाधड़ी की छिटपुट घटनाओं तक सीमित है, जिसमें आर्थिक देनलेन के माध्यम से अपात्र छात्रों को पात्र बनाकर मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश दिलाया गया । किन्तु जुलाई 2013 में जगदीश सागर की गिरफ्तारी के साथ ही मानो तूफ़ान आ गया ! डा सागर के घर से 317 उम्मीदवारों के नाम की सूची जब्त की गई ! उसके बाद तो अनेक मौतों का तांडव सामने आया और रहस्य की परतें गहराने लगीं, जो आज तक खुल नहीं पाई हैं ।

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने जल्दबाजी में पुलिस की जो स्पेशल टास्क फोर्स बनाई, उसने मामला में दूध का दूध पानी का पानी करने के स्थान पर घूस खाने वाले रसूखदारों के स्थान पर डॉ. सागर के घर से बरामद सूची में शामिल 317 तथाकथित संभावित घूसदाताओं पर ही शिकंजा कसा, उनमें से कई गिरफ्तार किये गए, उनका करियर ही चौपट हो गया ।

अक्टूबर 2013 में एक इंदौर की अदालत में आरोप पत्र दायर किया गया, जिसमें कहा गया कि 438 उम्मीदवारों ने मेडिकल कॉलेजों में अवैध रूप से प्रवेश पाने की कोशिश की थी।

सितंबर में टास्क फोर्स ने व्यापम बोर्ड के तात्कालिक परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी को गिरफ्तार किया। त्रिवेदी ने दुराचार की एक पूरी श्रृंखला का खुलासा किया और बताया कि घोटाला सिर्फ प्री-मेडिकल टेस्ट तक ही सीमित नहीं था, बल्कि व्यावसायिक परीक्षा मंडल द्वारा आयोजित कम से कम पांच भर्ती परीक्षाओं में भी धांधलियां हुई हैं । इनमें खाद्य निरीक्षक, मिल्क फेडरेशन, संविदा शिक्षक, सूबेदार उप निरीक्षक और पुलिस भर्ती परीक्षण शामिल थे।

इस दौरान मामले से सम्बंधित अनेक गवाहों की संदिग्ध मौतों ने मामले को और उलझा दिया और हस्तक्षेप करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उचित और निष्पक्ष जांच के लिए सम्पूर्ण प्रकरण केंद्रीय जांच ब्यूरो को सोंपने के आदेश दिए ।

इतना तो तय है कि अभी तक केवल छोटी मछलियाँ ही पकड़ी गई हैं, वास्तविक अपराधी तक जांच एजेंसियां नहीं पहुँच पाई हैं ! न खायेंगे ना खाने देंगे, का घोष वाक्य कब यथार्थ के धरातल पर आयेगा यह देश टुकुरटुकुर देख रहा है !

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