God Particle के सिद्धांत का जन्मदाता भारत।

कुछ वर्षों पहले युरोप की एक संस्था द यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन ऑफ न्यूक्लियर रिसर्च ने कहा था कि उसने अणु में पाये जाने वाले या अणु का भी अणु खोज निकाला है यह अत्यंत सुक्ष्म है और इस गोड पार्टिकल का नाम दिया गया था। वैज्ञानिकों को अब जाकर यह अहसास हुआ था कि परमात्मा भी होता है, जो हमारे आज के विज्ञान से बहुत परे है। इस खोज का श्रेय वह खुद ले रहे हैं, जबकि हकीकत तो यह है कि हमारे वेदों ने हजारों सालो पहले से ही इसका वर्णन कर दिया था।

वैज्ञानिको के अनुसार पृथ्वी की मूल उत्पत्ति का कण ये ही है पर वास्तव मे ये तत्व वो नहीं है जिसका वर्णन हमारे यहा ब्रह्तत्व के रूप मे हुआ है।

ब्रह्तत्व अनादि है, अनन्त है । जैसे प्राण का शरीर में निवास है वैसे ही ब्रह्म का अपने शरीर या ब्रह्माण्ड में निवास है । वह कण-कण में व्याप्त है, अक्षर है, अविनाशी है, अगम है, अगोचर है, शाश्वत है । ये तत्व रंग-रूप-आकार- से रहित है इसलिए इसे देखा ही नहीं जा सकता बस अनुभव किया जा सकता है ‘सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म’ अर्थात् ब्रह्म सत्य और अनन्त ज्ञान-स्वरूप है |

जगत का कारण होना- यह ब्रह्म का तटस्थ लक्षण है। तटस्थ लक्षण का अर्थ है, वह लक्षण जो ब्रह्म का अंग न होते हुए भी ब्रह्म की ओर संकेत करे। जगत का कारण प्रकृति, अणु या स्वभाव में से कोई नहीं हो सकता। इसी से उपनिषदों ने स्पष्ट कहा है कि ब्रह्म वह है जो जगत की सृष्टि, स्थिति और लय का कारण है। इसी से ब्रह्म को अभिन्न निमित्तोपादान कारण कहा है। जगत की रचना ब्रह्मश्रित माया से होती है, परन्तु माया कोई स्वतंत्र तत्व नहीं है। माया या अविद्या के कारण ही जहाँ कोई नाम-रूप नहीं है, जहाँ भेद नहीं है, वहाँ नाम-रूप और भेद का आभास होता है।

इसी से सृष्टि को ब्रह्म का विवर्त भी कहा गया है। विवर्त का अर्थ है कारण या किसी वस्तु का अपने स्वरूप में स्थित रहते हुए अन्य रूपों में अवभासित होना, अर्थात् परिवर्तन वास्तविक नहीं बल्कि आभास मात्र है।

अर्थात जिस तत्व की खोज वैज्ञानिको ने की है ये सृष्टि सृजन मे सहायक होने वाले शक्तितत्वों के विवर्ततत्वो मे से एक है |

वैज्ञानिको का इस प्रयोग मे सफल होना प्रसन्नता की बात इसलिए है कि पूरा विश्व जानेगा कि जिस रहस्य को खोजने का दावा वैज्ञानिको ने किया है वो तो क्या उससे भी बहुत बहुत अधिक बहुत पहले से ही खोजा जा चुका है , वर्णित है वैज्ञानिक जब तक स्वयं नहीं देखते मानते नहीं है वरना तो पृथ्वी और जीवन की उत्पत्ति का जितना सतज्ञान वैज्ञानिको को हजारो प्रयोग करते रहने पर, हजारो साल बाद शायद ज्ञात होगा उससे हजार गुना ज्ञान हमारे वेदो को एक बार पढ़ने मात्र से हो जाएगा या कुछ दिनो के लिए किसी योगी या तत्वज्ञ की शरण ले ले तो पृथ्वी की उत्पत्ति का रहस्य जान सकते है।

पर पहले ये अज्ञानी हमे मिथक बताते है और फिर घूम फिर कर हमारी ही बातों पर आते है और कहते है कि “ये हमने खोजा है” गुरुत्वाकर्षण का पूरा नियम सिद्धांत लाखोत्तर वर्ष पूर्व ही हमारे ग्रंथो मे लिखा था, किसी ने ध्यान नहीं दिया पर न्यूटन को सेब गिरता दिख गया तो वो महान हो जाता है, उसके देखने से पहले क्या सेब आसमान मे उड़ते थे वास्तव मे ये हमारा ही दुर्भाग्य है जो हमने स्वयं के गौरव को पहचाना ही नहीं |

साभार – शास्त्र सन्देश

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