तिरंगे की खातिर बलिदान हुए शहीदों की अनुपम गाथा है बोरास गोलीकांड !



मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में अनेकों महत्वपूर्ण स्थान हैं ! क्षेत्र में तेंदोनी नदी का उद्गम एक विशेष स्थान है ! एक कुंड से नदी की छोटी सी जलधारा निकली है ! इस नदी में वर्ष भर पानी रहता है ! लोकोक्ति के अनुसार यहाँ पांडवों द्वारा यज्ञ किया गया था ! दर्शनीय स्थल सोडानी धाम पर एक प्राचीन हनुमान मंदिर है जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालू आते हैं ! पुरातत्व महत्व के स्थल त्रिलोकचन्द्र पर काले पत्थर के विशाल मंदिर के ध्वंसावशेष हैं ! सिलवानी में पहाड़ी की ऊंची चोटी पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर पर हर वर्ष वसंत पंचमी पर मेला भरता है ! बरेली तहसील के बगलबाडा में लगने बाले मेले का उल्लेख नर्मदा पुराण में आता है ! कहा जाता है कि पांडवों ने यहाँ यज्ञ किया था जिसके कारण इस क्षेत्र में आज भी यज्ञ की सफ़ेद भभूत निकलती है ! 

बाडी में हिगलाज़ देवी का प्राचीन मंदिर, जामगढ़ में जाम्बवंत की गुफा श्रद्धालुओं की आस्था के केन्द्र हैं ! उदयगिरी पर स्थित गणेश प्रतिमा के विषय में मान्यता है कि बह लगातार वृद्धिगत हो रही है ! विन्ध्याचल पर्वत माला में बाडी स्थित मृगेन्द्रनाथ की गुफा में दो किमी तक तो आसानी से जाया जा सकता है किन्तु उसके आगे दुरूह होने के कारण लम्बाई का अनुमान कठिन है ! इस गुफा में अंधकार रहता है किन्तु गुफा की मिट्टी अत्यंत कोमल है ! इसे सिद्ध स्थल माना जाता है !

आचार्य रजनीश का जन्मस्थान कुचबाडा उदयपुरा तहसील में है ! एसी मान्यता है कि जंगल में स्थित कंकाली माता के मंदिर पर भजन पूजन के बाद वर्षा अवश्य होती है ! किन्तु सबसे महत्वपूर्ण है १४ जनवरी १९४९ को विलीनीकरण आंदोलन में शहीद हुए लोगों की स्मृति में बोरास कसबे में बनाया गया एक शहीद स्मारक, जहां प्रतिवर्ष मकर संक्रांति को श्रद्धांजली कार्यक्रम होता है ! 

आखिर क्या था यह विलीनीकरण आन्दोलन ? और क्या था इसका महत्व ? भारत तो आजाद हो गया 15 अगस्त १९४७ को, किन्तु भोपाल गुलाम ही रहा ! भोपाल रियासत के नबाब हमीदुल्ला खां इसे अलग राज्य ही रखना चाहते थे ! इसके चलते आजादी के बाद भोपाल रियासत के भारत गणराज्य में विलीनीकरण के मुद्दे को लेकर व्यापक जन आंदोलन चला ! १४ जनवरी १९४९ को बोरास कसबे में हुए गोलीकांड में श्री छोटेलाल, श्री धनसिंह वीर, श्री मंगल सिंह व भुआंरा के श्री विशाल सिंह रघुवंशी शहीद हुए ! उदयपुरा के श्री बैजनाथ गुप्ता बिजली बाबा की इस आंदोलन में महती भूमिका रही ! 

रियासत की जनता नबाब के बर्बर शासन से बहुत त्रस्त थी ! जुल्मोसितम का यह आलम था कि भारत माता की जय या वन्देमातम का गायन बगावत माना जाता था ! ऐसे समय में कांग्रेस के झंडे तले युवा शक्ति उठ खडी हुई ! रियासत के दोनों जिले रायसेन और सीहोर में बैठकों, जनसभाओं का दौर चलने लगा ! पटेलों और चौकीदारों ने सामूहिक त्यागपत्र दिए ! दिसंबर १९४८ में देवरी, उदयपुरा, बरेली, सिलवानी, बेगमगंज, रायसेन एवं सम्पूर्ण रियासत में गिरफ्तारियों का दौर चलने लगा ! नबाब के नुमाइंदों ने सोचा था कि गिरफ्तारियों के बाद आन्दोलन ठंडा पड़ जाएगा !

किन्तु तभी भोपाल के भूमिगत नेता श्री बालकृष्ण गुप्ता ने उदयपुरा तहसील के एक गाँव बोरास में नर्मदा तट पर लगने वाले पारंपरिक संक्रांति मेले में 14 जनवरी १९४८ को एक आमसभा की घोषणा कर दी ! पूण्य सलिला माँ नर्मदा के पावन तट पर ऐतिहासिक भीड़ जुटी, तो प्रशासन ने भी दमन की पूरी तैयारी कर ली ! 

सभास्थल पर भारी पुलिस बल के साथ क्रूर थानेदार जाफर अली मौजूद था ! पुलिस कि भय के कारण सभा में भाषण देने कोई सामने नहीं आ रहा था !

यह हाल देखकर बोरास के कुछ नौजवान आपस में बात करते जा रहे थे कि आज तो उदयपुरा वालों ने मूंछ नीची करा दी ! उनकी फब्ती सुनकर अपनी दूकानदारी में लगे, बैजनाथ गुप्ता के तनबदन में आग लग गई ! उन्होंने अपने हाथ की तराजू नीचे रखी और भीड़ चीरते हुए जा पहुंचे सभास्थल पर ! श्री बैजनाथ गुप्ता को उनकी ओजस्वी कविताओं के कारण लोग बिजली बाबा कहा करते थे ! उन्होंने एक नौजवान छोटेलाल को लाठी लेकर खड़ा किया और फुर्ती से उसकी लाठी में तिरंगा पहनाकर झंडा बंदन की औपचारिकता पूरी कर दी तथा एक टेबिल पर खड़े होकर महात्मा गांधी की जय, विलीनीकरण होकर रहेगा जैसे नारे लगाना प्रारंभ कर दिए !

यह देखकर थानेदार जाफर अली ने आवाज लगाई – ए बाबा हो गई सभा, उतर आ नीचे नहीं तो गोली मार दूंगा ! यह सुनते ही एक नौजवान विशाल सिंह ने थानेदार पर लाठी दे मारी ! थानेदार ने किसी तरह झुककर अपने को बचाया और फायरिंग चालू करवा दी ! पहली गोली तिरंगा लेकर खड़े १६ वर्षीय छोटेलाल को लगी और वे शहीद हो गए ! किन्तु उपस्थित जनसमुदाय ने तिरंगा जमीन पर नहीं गिरने दिया, उसे सुल्तानगंज निवासी धनसिंह ने थाम लिया ! सारा बोरास घाट गोलियों की धायं धायं से गूँज उठा ! एक गोली धनसिंह के सीने पर लगी और दूसरी सर पर ! 

किन्तु उनके गिरने के पूर्व इस बार तिरंगा थामा बोरास निवासी मंगलसिंह ने और वे भी स्वतंत्रता की बलिवेदी पर हंसते हंसते भेंट चढ़ गए ! इस बार तिरंगा थामा भुँआरा निवासी वीर विशाल सिंह ने और वे तिरंगा थामे माँ नर्मदा के आँचल में शरण लेने व तिरंगे की आन बान शान बचाने दौड़ पड़े ! किन्तु नृशंस थानेदार जाफर अली ने निहत्थे विशाल सिंह के पेट में अपनी बन्दूक की संगीन घुसा दी ! फिर भी भारत माँ का यह सपूत विशाल सिंह दर्द से कराहते हुए नर्मदा किनारे पहुंचा तथा झंडे को रेत में गाड दिया ! वीर जवानों के रक्त से सिंचित यह झंडा आज भी मध्यप्रदेश शासन के संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है !

इस गोलीकांड के बाद बैजनाथ गुप्ता “बिजली बाबा” भूमिगत होकर जबलपुर चले गए तथा वहां रहकर नबाबी दमन की इन घटनाओं को लेकर “शहीद श्रद्धांजलि” नामक एक पुस्तक श्रीकृष्ण प्रेस से छपवाई ! रियासती शासन ने इसे अपराध मानकर जब्ती के आदेश दिए तथा बिजली बाबा को गिरफ्तार कर लिया ! इस शहीद श्रद्धांजलि की एक लोकप्रिय रचना –
बोरास घाट रजपूत,
लडे मजबूत,
न हिम्मत हारी,
संक्रांति पर्व दिन भारी ! 

आपने अगर इस आलेख को पढ़ा है तो अंत में कुछ सवालों के जबाब भी तलासिये ! क्या बोरास की यह बलिदानी गाथा आमजन की जानकारी में नहीं होना चाहिए ? क्या यह पाठ्यपुस्तकों में पढाये जाने योग्य नहीं है ? लेकिन शायद भोपाल के मुस्लिम नबाब द्वारा ढाए गए अत्याचारों की यह दास्ताँ भारत के धर्म निरपेक्ष सेक्यूलर समाज को रास नहीं आयेगी !


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