यह कैसा बदलता बिहार, जहाँ मासूमों पर तंत्र की मार !



आज का मुख्य समाचार क्या है ? बिहार में इंटरमीडिएट की परीक्षा में टोपर रही रूबी राय की गिरफ्तारी ! मानो वह कोई खूंखार अपराधी हो ! वह नासमझ और मूर्ख है, यह तो प्रथम द्रष्टि में ही प्रमाणित होता है ! प्रोडिकल साईंस को पाक शास्त्र से जोड़ने वाली, या आज दोबारा लिए गए टेस्ट में तुलसीदास पर निबंध में एक पंक्ति “तुलसीदास जी को प्रणाम” लिखने वाली, रूबी राय को टोपर बनाया किसने ? उसे परीक्षा में फ़ैल होना चाहिए था, किन्तु वह टोपर बन गई, इसमें दोष उसका या उसे टोपर घोषित करने वाले तंत्र का ?

बेशक कहा जा सकता है कि उसके माता पिता अभिभावकों ने कुछ गुण्ताड़ा फिट किया होगा, कुछ घूस खिलाई होगी, कुछ जोड़तोड़ किया होगा कि किसी तरह उनकी बेटी पास हो जाए, किन्तु घूस खाने वाला कौन ? घूस खिलाने वाला दोषी, या घूस खाने वाला ? यह निजाम यह तंत्र ऐसा ही बन चुका है ! काले धन की गंगोत्री यहाँ ही है ! भ्रष्टाचार जन्य काले धन की बन्दरबाँट नीचे से ऊपर तक होती है, यह सब जानते मानते हैं ! जब तंत्र में दोषी सभी हैं तो सजा केवल सबसे कमजोर को क्यों ?

मध्यप्रदेश में भी व्यापम के मामले में यही गोरख धंधा चला था ! अनेक मासूम बच्चों को जेल की काल कोठरी में पहुंचा दिया गया था ! अनेकों ने तो इस पाशविक तंत्र के सामने घुटने टेककर मौत का ही आलिंगन कर लिया, आत्म ह्त्या का रास्ता अख्तियार कर लिया ! बिहार को भी उसी रास्ते पर जाते देखकर दिल आहत हो रहा है ! 

रूबी की गिरफ्तारी का औचित्य समझ से परे है ! क्या इस 16-17 साल की लड़की ने बिहार की नकल परम्परा को जन्म दिया है ? इस मामले में केन्द्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने सही ही कहा है कि –

छात्रों पर हो रही पुलिसिया कार्रवाई अनुचित और दमनात्मक है। टॉपर्स घोटाले में छात्रों का कोई दोष नहीं है। इस सिस्टम को तोड़नेवाले सीधे तौर पर जिम्मेवार हैं। जिन लोगों ने बोर्ड और परीक्षा के नियम- कायदों को तोड़कर कार्य किए हैं, उनका सीधा संबंध जदयू और सीएम नीतीश कुमार से हैं। बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष लालकेश्वर और उनकी पत्नी उषा सिंहा सीधे तौर पर जदयू से जुडे़ हैं। उनको कहीं न कहीं से सत्ता का संपोषण मिलता रहा है। इसी के वजह से ऐसे घोटालों को शह मिली है।

इसलिए, इसमें शामिल छात्रों के भविष्य को चौपट नहीं किया जाए। हां, अगर उनके अभिभावक जांच में कहीं दोषी पाए जाते हैं, तो उनपर कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बना सिस्टम में सुधार के इस तरह के घोटालों पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। मुख्यमंत्री की इच्छाशक्ति समाप्त हो गई है। इसीलिए, ऐसे तत्व बिहार में सक्रिय हो गए हैं। छात्रों पर कार्रवाई महज ड्रामा है। 

वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय जी ने सवाल उठाया है - 

सिस्टम द्वारा आपराधिक लापरवाहियां करना या खुद अपराधियों का मोहरा बन जाना, दोनों ही अक्षम्य हैं ! क्या हम परिक्षा प्रणाली को तर्कसंगत और पूरी तरह पारदर्शी बनाने की क्षमता भी नहीं रखते ? एक साथ बीस उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ने और मंगल पर यां भेजने जैसी महान वैज्ञानिक उपलब्धियों वाला यह देश, एक ठीकठाक परिक्षा तंत्र न विकसित कर पाए, तो हमारी सारी क्षमताओं और योग्यताओं का क्या मतलब ? 

धिक्कार है ऐसा सिस्टम जो नाकारा को मेरिट में और प्रतिभावान को कूड़े में डालने के लिए रचा गया हो ! 

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें