हिन्दुओं आओ मिलकर जातिवाद का नाश करें - डॉ विवेक आर्य

कश्मीर में शहीद हुए CRPF के वीर कांस्टेबल वीर सिंह के अंतिम संस्कार में जातिवाद के कारण विवाद हुआ। वीर कांस्टेबल ने पाकिस्तानी आतंकवादियों के साथ संघर्ष करते हुए अपना बलिदान दिया। नट समाज से सम्बंधित होने के कारण ग्राम के कुछ लोगों ने उनके अंतिम संस्कार में रूकावट डाली। अधिकारीयों के समझाने के पश्चात शहीद का अंतिम संस्कार हुआ। यह घटना अत्यन्त शर्मनाक है। हमारे देश का जातिवाद के कारण बहुत अहित हुआ। मगर हमने उससे कोई शिक्षा नहीं ली। जातिवाद के कारण लाखों हिन्दू मुसलमान-ईसाई बन गए। मगर फिर भी हम नहीं सीखे। जातिवाद के कारण हमारा कैसे नाश हुआ। उसके कुछ उदहारण मैं यहाँ देना चाहता हूँ।

1.अहमद शाह अब्दाली ने जब भारत पर आक्रमण किया तब वीर मराठों से उनका पानीपत में युद्ध हुआ। अब्दाली युद्ध हारने ही वाला था। उसने रात के समय मराठों के शिविर का दौरा किया। उसने देखा कि जो मराठे दिन में एक साथ मिलकर लड़ते हैं, वही मराठे रात में अपनी जाति के अनुसार भोजन करते हैं। अर्थात जो ब्राह्मण है वह ब्राह्मण की रसोई में खाना खाता है ,जो क्षत्रिय है वह क्षत्रिय के हाथ का बना खाता है, जो नाई, कुम्हार आदि हैं वे स्वजाति के हाथ का बना खाते हैं। अब्दाली ने यह दृश्य देखकर यह निष्कर्ष निकाला कि रात के समय मराठों की शक्ति विखण्डित होती है। उसने उसी रात को मराठों के शिविर पर हमला कर दिया। अलग-थलग पड़े मराठों के शिविर में खलबली मच गई। अनेकों मारे गए, अनेकों भाग गए। जातिवाद के कारण जीता हुआ युद्ध मराठे हार गए। अब्दाली लूट-पाट कर चला गया। मगर मराठों का सूर्य सदा के लिए अस्त हो गया। जिससे अंग्रेजों के देश में पैर जम गए। परिणाम सभी को मालूम है। 

जातिवाद के कारण इतना नाश हुआ मगर हिन्दू फिर भी नहीं सुधरा। जातिवाद के पल्लू को अब भी थामे रहा।

2. केरल में 1921 में मोपला दंगे हुए। जन्नत में हूरों की इच्छा एवं इस्लामिक सल्तनत के स्वपन देखने वाले मोपला मुसलमान हिन्दुओं की बस्ती पर आक्रमण करने लगे। सबसे पहले उन्होंने धनी सवर्ण हिन्दुओं की बस्ती पर हमला किया। दलित हिन्दुओं को सवर्णों की बस्ती में आने की अनुमति नहीं थी। इसलिए वे लोग सहायता करने नहीं आ सके। कल के सेठ अपना सब कुछ लूट पीट कर एक दिन में भिखारी बन गए। अब मुस्लिम दंगाइयों ने दलितों की बस्ती पर हमला किया। दलित हिन्दुओं की बस्ती में सवर्ण हिन्दू छुआछूत के चलते जाने से परहेज करते थे। इसलिए कोई भी सवर्ण हिन्दू दलितों की सहायता करने नहीं गया। पहले एक लुटा फिर दूसरा। जातिवाद के चलते सभी का नाश हो गया।

जातिवाद के कारण इतना नाश हुआ मगर हिन्दू फिर भी नहीं सुधरा। जातिवाद के पल्लू को अब भी थामे रहा।

3. जोगेन्दर नाथ मंडल 1947 से पहले दलितों के नेता थे। उन्होंने दलित-मुस्लिम एकता के झुनझुने को बजाने के लिए उन्होंने मुस्लिम लीग का झंडा थाम लिया। बांग्लादेश के दलितों को भारत के स्थान पर पाकिस्तान के साथ जाने कि सलाह दी। खुद मंत्री बन गए। डॉ अम्बेडकर जी ने सभी दलितों को पाकिस्तान छोड़कर भारत आने की सलाह दी थी। जिसे मंडल की सलाह पर बंगलादेश के दलितों ने दरकिनार कर दिया था। बांग्लादेश के मुसलमानों को पाकिस्तानी मुसलमान दूसरे दर्जे का समझते थे। हिन्दू दलितों की तो औकाद ही क्या थी। थोड़े समय में ही जोगेन्दर मंडल को दलित-मुस्लिम एकता की जमीनी सच्चाई समझ आ गई। उन्होंने जिन्नाह को अपना त्यागपत्र लिखते हुए मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। पाकिस्तान को कोसते हुए उसे छोड़कर भारत आ गए। जिन दलितों ने उनके सुझाव को मानकर बांग्लादेश में रहने का मन बनाया था। वे आज भी अपने फैसले पर पछताते है और दो गलियां मंडल को देते है। भारत के दलितों को बांग्लादेश जाकर वहां पर देखना चाहिए कि उनके सगोत्रीय दलित भाइयों के साथ मुस्लिम कैसा बर्ताव कर रहे है। अगर सवर्ण हिन्दू समाज जातिवाद में विश्वास न रखता तो दलित हिन्दुओं को आज बांग्लादेश में यह दिन न देखने पड़ते। पाकिस्तान में भी जो दलित प्रलोभन और जातिवाद के चलते ईसाई बन गए थे। आज उनके गिरिजाघरों में मुस्लिम आतंकवादी बम विस्फोट कर उन्हें प्रताड़ित करते है।

जातिवाद के कारण इतना नाश हुआ मगर हिन्दू फिर भी नहीं सुधरा। जातिवाद के पल्लू को अब भी थामे रहा।

आज भी जातिवाद की यह बीमारी हमारा पीछा नहीं छोड़ रही है। जातिवाद की जड़े कितनी गहरी है इसका अंदाज इसी बात से पता चलता है कि एक बलिदानी का बलिदान भी उसकी दीवारों को तोड़ने में नाकाम रहा है।

हिन्दुओं आओ मिलकर जातिवाद का नाश करें।

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