जावडेकर जी, यह कैसी शिक्षा दी जा रही है, हमारे बच्चों को ?


आईसीएसई (Indian Certificate of Secondary Education) की इतिहास की पुस्तकों में जो सामग्री विद्यार्थियों को पढाई जा रही है, वह न केवल चौंकाने वाली है, बल्कि निंदनीय भी है। ये पुस्तकें महज नेहरू-गांधी परिवार के स्तुतिगान से भरी है, जोकि तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत है । हिन्दू विरोधी सामग्री का तो कहना ही क्या ? एक जागरुक नागरिक श्री अमित थंडानी ने पिछले दिनों इन बेहूदी बातों पर ट्विटर के माध्यम से प्रकाश डाला । यहाँ प्रस्तुत है उनकी ट्वीट श्रृंखला –

Amit Thadhani @amitsurg
29 फरवरी - मेरा भतीजा आईसीएसई की छठवी कक्षा का विद्यार्थी है ! उसे मिली इतिहास की पाठ्यपुस्तक के मुखपृष्ठ पर गांधी, नेहरू, पटेल, अकबर, विविध मतदाता और भीमबेटका के चित्र हैं ।

पुस्तक का पहला पृष्ठ इतिहास लेखिका रोमिला थापर को समर्पित है ! उन्हें इतिहासकार बताया गया है !

इतिहास की घटनाओं के समय का माप केवल ईसा के जन्म से पूर्व (BC बिफोर क्राईस्ट) या ईसा के बाद (AC आफ्टर क्राईस्ट) ! जैसे भारत का तो कोई समय था ही नहीं ?

सिंधु घाटी में एक महान सभ्यता अस्तित्व में थी, जिसे आक्रान्ता आर्यों ने तहस नहस कर दिया ! चित्र में देखिये -  


आक्रमण के बाद आर्य भ्रमित थे कि वे अपने वेदों के साथ यहाँ बसें या यहाँ से चले जाएँ । 

शूद्रों को शिक्षा प्राप्ति का अधिकार नहीं था ! (इसका अर्थ क्या यह नहीं निकलता कि वेदव्यास और वाल्मीकि भी अनपढ़ और मूर्ख थे, आखिर वे भी तो शूद्र ही थे न ?)

तस्वीर के साथ अशोक प्रकट होते है !! हर जगह बौद्ध धर्म का उल्लेख । उस समय तक मानो हिन्दू थे ही नहीं !

गुप्तकाल। मानो समुद्रगुप्त पहला हिंदू शासक हो । क्योंकि वह सहिष्णु था और वह भी अपवादस्वरुप । 

पल्लव, चोल, चेर या तो वैष्णव थे अथवा शैव, हिन्दू नहीं । पूरी किताब में हिंदुओं का उल्लेख सिर्फ तीन बार ।

मुखपृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक छठवीं क्लास के आईसीएसई के इतिहास में हिन्दू कहीं मौजूद ही नहीं है। कुछ है तो आर्यों द्वारा किया गया सभ्यताओं का सफाया तथा बौद्धों और कुछ हिंदुओं पर जाति थोपने का उल्लेख ।

इन 40 पृष्ठों में 5000 से अधिक वर्षों पुरानी धार्मिक सभ्यता का उल्लेख तक नहीं है । पूरे 300 वर्ष के राजवंशों का इतिहास एक पैरा में निबटा दिया गया ।

7 वीं कक्षा की आईसीएसई पाठ्यपुस्तक का उद्देश्य तो मानो प्रभु यीशु मसीह के संदेश को फैलाना भर है और वह केवल इसी के लिए ही लिखी गई है ।

दुनिया भर में इस्लाम का खूनी विजय अभियान, अरबों द्वारा किया गया "एकीकरण" का प्रयास था, जिसने अनेक लेखक, विचारक और वैज्ञानिक दिए ।

तुर्की के आक्रमण से पहले भारत क्या था, इसका उल्लेख केवल दो पृष्ठों में हैं । जबकि हर क्रूर मुग़ल बादशाह पर पूरा अध्याय है।

भारत पर अरब आक्रमण एक अच्छी बात थी, उन्होंने हमें सांस्कृतिक पहचान दी । महमूद लुटने इसलिए आया क्योंकि उसे पैसे की जरूरत थी !

जिस कट्टरपंथी कुतबुद्दीन ऐबक ने 27 मंदिरों को नष्ट कर कुतुब मीनार बनबाई वह एक दयालु और उदार आदमी था !

और जो विवरण मुझे सबसे अच्छा लगा वह है कि बाबर ने अपने शासनकाल में धार्मिक सहिष्णुता की प्रवृत्ति शुरू की !

औरंगजेब एक रूढ़िवादी और भगवान से डरने वाला मुस्लिम संत था जो अपने जीवन यापन के लिए टोपियां सिलता था। वह अदूरदर्शी शासक अवश्य था ।

कबीर ने क्या किया? उन्होंने जाति व्यवस्था की आलोचना की।
गुरु नानक ने क्या किया? उन्होंने जाति व्यवस्था की आलोचना की।
बसव और रामानुज ने क्या किया? उन्होंने जाति व्यवस्था की आलोचना की
भक्ति आंदोलन ने क्या किया? जाति व्यवस्था की आलोचना की।
रामानंद ने क्या किया? उन्होंने जाति व्यवस्था की आलोचना की।
मीराबाई, नामदेव, तुकाराम, रामदेव ने क्या किया? उन्होंने जाति व्यवस्था की आलोचना की।

मध्यकालीन भारत पर एक अध्याय है, जिसमें कमसेकम आठ बार जातिप्रथा का सन्दर्भ है । विद्यार्थियों के मन पर यह गहरी छाप अंकित करने का प्रयास है कि हिंदू धर्म का मतलब केवल जाति।

पूरी पुस्तक को ध्यान से पढ़ा जाए तो अनेकों विकृतियां दिखाई देती हैं । यहाँ तक कि भक्ति कालीन संतों को भी मूर्ति पूजा विरोधी दर्शाया गया है !

अब बात करते हैं 8 वीं कक्षा की आईसीएसई पाठ्यपुस्तक के बारे में, जिसमें बामपंथी रुझान साफ़ दिखाई देता है । हर कक्षा के लिए एक ही मुखपृष्ठ -

8 वीं कक्षा में बच्चों को संक्षेप में बताया जाता है कि मराठा साम्राज्य अस्तित्व में आने के पूर्व ही समाप्त हो गया ।

यहाँ भी ईसाई उत्पीड़न घुसाने का प्रयास, बाइबल पढ़ने वाले गुलामों को निर्दयतापूर्वक दंडित किया जाता था !

सिखाया जाता है कि गोरों का राष्ट्रवाद एक अच्छी बात है, किन्तु जब भारतीय राष्ट्रवादी हों तो वे अतिवादी हैं ।

जाटों का उल्लेख महज सात लाइनों में, और राजपूतों का 12 में मिलता है ! पंजाब का उल्लेख सीधे गुरु गोबिंद सिंह से शुरू होता है ।

उम्मीद के मुताबिक़ हैदर अली और टीपू सुल्तान को बेहतर दिखाया गया है । मैसूर किंगडम की शुरूआत हैदर अली से !

मराठाओं को बस एक पेज में लपेट दिया, शिवाजी को महज एक पंक्ति में । संभाजी कौन ? तो बस एक कमजोर उत्तराधिकारी!

मराठों सिर्फ एक क्षेत्रीय शक्ति थे, जबकि मुगलों और ब्रिटिश साम्राज्य थे।

मुगल साम्राज्य के पतन से अराजकता और अव्यवस्था फैली !

जिन महाराजा रणजीत सिंह का साम्राज्य पंजाब, कश्मीर और तिब्बत के पार तक था, उनका उल्लेख केवल 4 लाइनों में हो गया ।

कसाई टीपू को मैसूर का टाइगर बताया गया गया । एक प्रबुद्ध शासक जो अपने समय से आगे का विचार करता था!

तो औरंगजेब एक संत था और कुतबुद्दीन ऐबक एक दयालु, उदार व्यक्ति ! और टीपू तो निश्चित रूप से धर्मनिरपेक्ष, उदार और सहिष्णु था ही !!

मुरदान खान और खलील जैसे ठग देवी काली के उपासक थे जिन्होंने 2 लाख से अधिक लोगों की हत्याएं कीं !!

भारतीय समाज गड्ढे में पड़ा हुआ था इसलिए दमनकारी था। 1843 में अंग्रेजों ने यहाँ गुलामी को अवैध घोषित किया ! (है ना हैरत की बात ? उन्होंने भारत में गुलामी को अवैध घोषित किया अफ्रीका में नहीं !!) 

भारतीय शिक्षा? मिशनरियों के आने के पूर्व केवल कुछ गिने चुने शिक्षक अपने घर में ही पढाया करते थे ।

जबकि सचाई यह है कि अकेले बिहार में ब्रिटेन से कहीं ज्यादा स्कूल और विश्वविद्यालय थे । बिटिश ने अपनी स्वयं की शिक्षा प्रणाली भारत के अनुसार बनाई ।

हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने वाली सुधारक केवल एनी बेसेंट थीं !! 

संयोग से एक सच्चाई जरूर सामने आ गई, वह यह कि ह्यूम ने कांग्रेस का गठन 1857 जैसी घटनाएँ रोकने के लिए किया था, और यह काम कांग्रेस ने बहुत अच्छी तरह से किया भी !

युवाओं ने अभिनव भारत जैसी गुप्त गतिविधियों का संचालन किया, जिन्होंने भारत के बाहर काम किया, यहाँ भी वीर सावरकर का उल्लेख नहीं।  

क्रांतिकारी आंदोलन का उल्लेख केवल एक पेज से भी कम में किया गया है। क्योंकि असली नायकों (गांधी, नेहरू) को ज्यादा स्थान की जरूरत है ।

नेहरू - गांधी को स्वतंत्रता का पूरा श्रेय दिया गया है !

गांधी-इरविन समझौते को इतना महत्व दिया गया है कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का बलिदान पूरी तरह गौण हो गया है ।

नेताजी और आजाद हिंद फौज का उल्लेख मात्र एक चौथाई पृष्ठ में मिलता है !

तो यह है हमारी आज की इतिहास शिक्षा का कच्चा चिट्ठा ! नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और उनकी सेना को एक चौथाई पेज, शिवाजी को एक लाइन, लेकिन चाचा जी का स्तवन भरपूर ।

और हाँ क्रिकेट तो भूल ही गए । इस औपनिवेशिक खेल को पूरे दो पृष्ठ, आखिर बोस, भगत सिंह और मराठा साम्राज्य की तुलना में यह अधिक महत्वपूर्ण जो हैं।

यह जाना माना तथ्य है कि रोमिला थापर सबसे पक्षपातपूर्ण और हिंदू विरोधी इतिहासकारों में से एक है। उसका एक ही लक्ष्य है –भारत को विभाजित और समाप्त करना ! इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह उमर खालिद और कन्हैया कुमार की सबसे बड़ी समर्थक है । दुर्भाग्य है कि हमारे बच्चों को ऐसे भारत द्रोही पक्षपातपूर्ण लोगों की तारीफ पढ़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है ?

नए मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में प्रकाश जावड़ेकर क्या इस तरह की मनगढ़ंत और अतर्कसंगत पुस्तकों को खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे ? आखिर हमारे बच्चों को राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा देने वाली शिक्षा की आवश्यकता है अथवा नहीं ?

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