दिव्य अनुभूति


बड़ा निठुर है बहुत क्रूर है
यह विकास का देव भयानक
बली चढ़ेगी इसी देव पर
निरीह खेत की, हरियाली की।

मेरी डालों बैठ झूमते
सतरंगी पंखों के पन्छी
बस कुछ दिन को और शेष हैं।
मेरी साँसें तुम्हें पेश हैं।

ले जा चिड़िया तेरे तिनके,
नीड़ बनाना और कहीं पर,
जहाँ उड़ानें सीख सकेंगी
तेरी आने वाली पीढ़ी।

किसे रहेगा याद बताओ
यह बरगद बलिदान हुआ था।
कैसे लहूलुहान हुआ था।
इसकी लाश उठाई थी तब
फ़ोर लेन निर्माण हुआ था।

एक बरगद की पीड़ा का बखान करती इस कविता का महत्व तब और बढ़ जाता है, जब ज्ञात होता है कि इसके रचयिता एक पुलिस इन्स्पेक्टर हैं ! इन्स्पेक्टर साहब न केवल एक बेहतरीन कवि हैं, बल्कि उससे भी बढ़कर एक आदर्श इंसान भी हैं ! 

श्री मदन मोहन समर उन दिनों बैतूल में टीआई थे ! जब थाने पर उनके चेंबर में एक मासूम सी बच्ची आई और बोली सर मेरे माँ बाप नहीं हैं,कोई बहन भाई भी नहीं हैं। मैं पढ़ना चाहती हूँ। आप मुझे अपनी बेटी बना लो। 

उस बच्ची का नाम था झमलो धुर्वे ! यह मासूम सी आदिवासी बच्ची सुदूर घने जंगल के ग्राम हरदू की रहने वाली थी । उसने कोई सरपरस्त न होते हुए भी, खुद मजदूरी कर नौंवी कक्षा पास कर ली थी । 

टीआई साहब के अनुसार उन्हें उस बच्ची की आँखों में एक विश्वास, एक जूनून के साक्षात् दर्शन हुए।

उन्होंने उससे पूछा बेटा तुम्हे किसने बताया कि मेरे पास आना चाहिए ! 

उसका उत्तर था एक अंकल जी ने कहा था कि बैतूल थाने चली जईयो और टी आई साहब से मिलियो। मैं आ गई।

टीआई साहब ने अपना सौभाग्य मानकर उसे अपनी बेटी बना लिया । बैतूल के महारानी लक्ष्मी बाई स्कूल में उसका दाखिला हुआ । होस्टल में रहकर पढाई करने लगी । समर जी को पापाजी व उनकी पत्नी सरिता जी को जब वह बड़े प्यार से मम्मी जी बोलती तो उनका मन मयूर नाच उठता, जो महसूस होता, उसके लिए शब्दकोश रिक्त है।

हम लोग सोशल मीडिया पर बहुत कुछ लिखते पढ़ते रहते हैं, किन्तु आज जब हिमांशु शर्मा द्वारा साझा की गई यह पोस्ट पढी तो सच में एक दिव्य अनुभूति हुई।

उनके फेसबुक एकाउंट से ज्ञात हुआ है कि आजकल श्री मदन मोहन समर भोपाल पदस्थ हैं ! कभी भेंट करूंगा जाकर और प्रणाम निवेदन करूंगा ! 

चलते चलते - विगत योगदिवस पर चंडीगढ़ में हुए प्रधानमंत्री जी के कार्यक्रम में मदन मोहन समर जी की दो कविताओं की रिकार्डिंग बजाई गईं !

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