भारत रत्न के सच्चे हकदार ? (श्री तरुण विजय के एक पुराने लेख के अंश)

सियाचिन में खतरनाक खाईयां और बर्फ की पतली परत से ढके पाताल तक पहुँचने वाले गड्ढे होते हैं ! उन पर यदि गलती से भी पाँव रख दिया जाए तो फिर देह भी निकालना असंभव होता है ! ऐसी ही एक घटना में एक फ़ौजी अधिकारी गहरे गड्ढे में फंस गए ! उसी समय एक हेलीकोप्टर भी रसद लेकर वहां पहुंचा ! वहां उपस्थित जवानों ने हेलीकोप्टर के पायलट से अनुरोध किया कि वह किसी प्रकार रस्सी की मदद से उस फ़ौजी अफसर को खाई से बाहर निकाले ! लेकिन बर्फ जमती जा रही थी ! नीचे रस्सी फेंकी गई, किन्तु ठण्ड से जम चुके फ़ौजी अफसर अपने हाथों को हिला भी नहीं सके ! केवल उनकी आँखें मानो अपनी प्राण रक्षा की गुहार लगा रही थीं ! 

तभी एक दूसरे फ़ौजी जवान ने कहा कि वह उस गड्ढे के अन्दर जाकर फंसे हुए साथी को खींच लाने की कोशिश करता है ! पायलट ने हेलीकोप्टर को फंसे हुए फ़ौजी जवान के पास तक पहुँचाया और दूसरे जवान ने उसे खींचने की कोशिश की ! लेकिन तब तक गड्ढे में धंसे फ़ौजी अफसर की चमड़ी भी बर्फानी खाई की दीवारों से चिपक चुकी थी ! चाकू से बर्फ से अलग करने का प्रयास किया गया तो उनकी चमड़ी ही निकलने लगी ! सभी साथी विवश से पल पल मरते अपने साथी को निहार रहे थे ! उसको बचाने की कोई भी कोशिश अब बेकार थी ! 

यह तो हुई सियाचिन की बात, जहाँ जवान अपनी जान की बाजी लगाकर चिर शत्रु पाकिस्तान से हमारी सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं, कश्मीर घाटी की हालत तो और भी खराब है ! इस्लामी आतंकवाद से ग्रस्त घाटी में जवान सुबह 5 बजे से तैयार होकर क्षेत्र के रास्तों पर विस्फोटक ढूँढने में जुटते हैं, ताकि आवागमन के दौरान कोई हादसा न हो ! 5 बजे जब वह अपनी बैरक से बाहर निकलता है, तब उसके पास रात को बनी कुछ पूडियां और आलू की सब्जी होती है ! पानी की बोतल, 30-32 किलो कू बुलेट प्रूफ जाकिट, लगभग इतने ही बजन की ए.के.47 राईफल, गोलियों का भण्डार और भारी भरकम फ़ौजी बर्दी !

इतना बजन लादे हमारा फ़ौजी जवान, जिन लोगों की सुरक्षा के लिए बाहर निकलता है, उन लोगों से उसे सम्मान मिलना तो दूर, सामान्य मानवीय सहानुभूति भी नहीं मिलती ! घाटी में इतना जहर फैला दिया गया है कि उसे सख्त हिदायत होती है कि वह प्यास लगने पर भी किसी घर से पानी पीने का जोखिम न उठाये ! फिर भी वह मातृभूमि की आन और तिरंगे की शान के लिए हमेशा चौकस रहता है !

भारत का सर्वाधिक अभिनंदनीय प्रहरी यदि कोई है तो वह भारतीय जवान ही है ! वह रातदिन राजनेताओं की कुटिल कुचालों को नजदीक से देखता ही नहीं, बल्कि उनका शिकार भी बनता है ! उनका भीषण विलासिता से भरा वितंडावाद भी उसके सामने होता है ! लेकिन उसके मन में कभी यह इच्छा भी नहीं जागती कि संसदीय लोकतंत्र की इन दीमकों को नेस्तनाबूत कर देश में फ़ौजी शासन लाया जाए ! 

इन सब कारणों से मेरे मन में कभी कभी एक सवाल उठता है –

क्या कारण है कि भारत रत्न अलंकरण आज तक राजनेताओं के अतिरिक्त किसी जांबाज को नहीं मिला ? सेनानियों की बात तो जाने दें भगतसिंह को भी नहीं मिला ? भारतीय सेना के जवान हों अथवा भगतसिंह जैसे जननायक, ये वे लोग हैं जिन्होंने मृत्यु का वरण करना स्वीकार किया, किन्तु अपनी मातृभूमि के महान आदर्शों को नहीं छोड़ा !

विडम्बना यह है कि भारतीय राजनीति ही भारत रत्न का निर्धारण करती है और राजनीति के गलियारों में किसी की भी दृष्टि अपनी पार्टी दफ्तर की सीमा के बाहर नहीं जाती !

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