चिड़िया का घोंसला !


पिछले एक माह से समय बड़ा अच्छा कट रहा था, किन्तु आज बहुत रिक्तता अनुभव हो रही है ! भरापूरा परिवार है, घर में सभी हैं, फिर भी सुनसान जैसी अनुभूति है ! जैसे कुछ खो गया हो ! 

बात ही कुछ ऐसी है ! बचपन से एक ही शौक रहा – बागवानी का ! जब महादेव मंदिर पर आवास था, तब बड़े मनोयोग से वहां एक बगीचा सरसब्ज किया था ! और अब विगत तीन वर्षों से अपने घर के पीछे एक छोटी सी बगिया लगा ली है ! जब भी शिवपुरी रहता हूँ, तब मेरा अधिकाँश समय बहीं बीतता है !

पाठक मित्र भी सोच रहे होंगे कि में विषयांतर कर रहा हूँ ! किन्तु नहीं यह विषय परिवर्तन नहीं है ! हुआ कुछ यूं कि लगभग एक माह पूर्व बगिया में मेरी नजर दो छोटी चिड़ियाओं पर पड़ी, जो बड़ी लगन से पीली गुड़हल के दो बड़े पत्तों के साथ अठखेलियाँ कर रही थीं ! मुझे कुछ कौतुहल हुआ और मैंने ध्यान दिया तो मालूम हुआ कि वे चिड़ियाएँ उन पत्तों को छोटे छोटे तिनकों से मानो सिल रही थीं ! मैंने कोई रोकटोक नहीं की और फिर मेरा लगभग प्रतिदिन का क्रम हो गया, उन चिड़ियाओं की गतिविधि देखते रहने का !

उन दोनों ने बड़े परिश्रम से उन दोनों पत्तों को जोड़कर उनके बीच घोंसला बनाया ! और इस काम में उनको महज सात आठ दिन ही लगे ! वे चोंच में दबाकर तिनके लातीं, उनको करीने से गूंथतीं, दिनभर उनका यही क्रम चलता रहता ! एक दिन उस घोंसले में मुझे दो अंडे दिखाई दिए ! अगले दिन अण्डों की संख्या चार हो गई ! अब एक चिड़िया घोंसले में लगातार अधिक समय बैठी दिखाई देने लगी !

तभी मेरा भोपाल जाने का पूर्वनिर्धारित समय आ गया जहाँ से बारह दिन बाद वापस लौटा ! तब तक आंधी पानी के थपेड़े शिवपुरी को सराबोर कर चुके थे ! स्वाभाविक ही आते ही मेरी नजर उस घोंसले पर ही गई ! देखा कि घोंसला जिन पत्तों के आधार पर बना था, वे न केवल सूख चुके थे, बल्कि शाख से भी अलग हो चुके थे | फिर भी घोंसला अपने स्थान पर था ! ज्यादा हैरान मत होईये, यह कोई चमत्कार नहीं था ! दरअसल मेरी मंझली पुत्रवधु कविता भी मेरे ही समान प्रकृति प्रेमी है ! उसने आंधी पानी से घोंसले को बचाने के लिए महीन प्लास्टिक की डोर से उसे डाल से बाँध दिया था ! इतना ही नहीं तो ऊपर की तरफ पोलीथिन लगाकर इतना सुरक्षित कर दिया था कि पानी की एक बूँद भी न जा सके ! स्वाभाविक ही मुझे प्रसन्नता हुई !

कविता ने बताया कि एक दिन तेज हवा के झोंकों से एक अंडा जमीन पर आ गिरा था, उसके बाद उसने पहले तो घोंसला सुरक्षित किया, उसके बाद नीचे गिरा हुआ वह अंडा एक कागज़ की सहायता से वापस घोंसले में रख दिया था ! किन्तु कविता देखकर हैरान हुई कि कुछ समय बाद ही जब चिड़िया घोंसले में आई तो सबसे पहले उसने उस अंडे को चोंच से उठाकर बगीचे के भी बाहर ले जाकर फेंका और अपनी चोंच भी मिट्टी से रगड़कर साफ़ की ! मानो वह अंडा संक्रमित हो !

मेरे शिवपुरी आगमन के दूसरे ही दिन उन शेष बचे तीन अण्डों में से चूजे बाहर आ गए ! उसके बाद तो लगातार दोनों चिड़ियाओं का एक ही काम हो गया, छोटे छोटे कोमल कीड़े पकड़कर लाना और उन बच्चों की चोंच में देना ! मैं जब भी कम्प्युटर से उठता तो बस बगिया में कुर्सी डालकर बैठ जाता और चिड़ियाओं की आवाजाही को देखता ! कल जब मैं अपने कम्प्युटर पर कार्यरत था, अकस्मात चिड़ियाओं के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी ! वे जोर जोर से चीं चीं कर रही थीं ! मैं लगभग दौड़कर बाहर पहुंचा तो देखा कि छज्जे पर एक बड़ा सा बाज बैठा है, और मानो वह बस घोंसले को अपने पंजे में दबाकर ले ही जाने का मंसूबा बाँध रहा है ! खैर उस समय तो मैंने उसे चिल्लाकर उड़ा ही दिया, पर दिन भर यही डर बना रहा कि कहीं वह दोबारा न आ जाए ! किन्तु आज सुबह सब डर भय भी ख़तम हो गए और पिछले एक माह से चला आ रहा क्रम भी भंग हो गया ! 

कल एक चूजा घोंसले से बाहर तक आया था और अपने पंख फडफडाकर वापस घोंसले में चला गया ! मुझे लगा था कि अब इनके परवाज तौलने के दिन नजदीक आ गए ! शायद एक दो दिन में ये बच्चे अपने पंख पसार कर रवानगी डाल देंगे ! किन्तु इतनी जल्दी का अनुमान नहीं था ! सुबह साढ़े पांच बजे मैं अपने चाय के कप के साथ दरवाजा खोलकर खड़ा हुआ तो देखा कि एक चूजा घोंसले के बाहर गुड़हल की डाल पर सहमा सा बैठा है और चिड़िया चीं चीं कर उससे मुखातिब है ! धीरे धीरे चिड़िया ने एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उड़ान भरना शुरू कर दिया, मानो उस नन्हे शूरमा का होंसला बढ़ा रही हो ! और देखते ही देखते वह नन्हा पहलवान उडान भरकर हमारे नन्हे बगीचे की परिधि के बाहर चला गया ! 

मैंने आवाज देकर कविता को बुलाया और कहा कि बेटा अपने ये मेहमान अब जाने वाले हैं, इनके फोटो तो खींच लो ! उसने अपने मोवाईल से घोंसले में बैठे शेष दो बच्चों के फोटो खींच लिए ! दो पांच मिनिट बीतते न बीतते वे दोनों भी घोंसले से बाहर आकर उड़ान भरने लगे ! एक जब दीवार के सहारे बैठा, एक गिलहरी ने उस पर हमला कर दिया ! मैं तो अभी तक गिलहरी को शाकाहारी जीव समझता था, किन्तु वह तो शिकारी निकली ! खैर चूंकि मैं सामने था, गिलहरी का आक्रमण निष्फल हुआ और वह नन्हा चूजा उसकी पहुँच से दूर निकल गया !

इस बात को तीन घंटे बीत चुके हैं, चिड़ियाओं ने भी उन नन्हे शिशुओं की चिंता छोड़ दी है ! शायद वे अब अपनी दम पर अपना भोजन जुटा रहे होंगे ! मेरी बगिया में चहलपहल ख़त्म हो चुकी है ! घोंसला खाली है, मन भी रिक्तता से भरा है ! एक विचार आ रहा है ! सृष्टि और प्रकृति का खेल भी विचित्र है ! मोह ममता प्राणी मात्र में है ! लेकिन मनुष्य को छोड़कर, हर जीव में उसकी एक सीमा है ! बच्चे आत्मनिर्भर हुए नहीं कि पशु पक्षी फिर उनसे कोई मोह नहीं रखते, किन्तु हम मनुष्य आजीवन धृतराष्ट्र बने रहते हैं !

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