80 वर्षीय “बाबू कुँवर सिंह”, जिसकी गर्जना से काँप उठी थी ब्रिटिश हुकूमत !

सिंहन को सिंह शूरवीर कुंवर सिंह,
गिन गिन के मारे फिरंगी समर में।
कछुक तो मर गये, कछुक भाग घर गए,
बचे खुचे डर गए गंगा के भंवर में।
आज हमारा देश आजाद है पर क्या हम अपनी इस आजादी के पीछे के उन क्रांतिकारियों की कुर्बानी को जानते है जिन्होंने अपनी पूरी उम्र अंग्रेजी हुकूमत से संघर्ष किया ? यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि उन आजादी के मतवालों की कहानियाँ हम दुहराते रहें ! इसी क्रम में हम आज जानते है देश के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के नायको मे एक 80 वर्षीय वीर योद्धा के बारे में जिसकी की दहाड़ से भी अंग्रेज़ो के छकके छूट जाते थे ! ये नायक थे बिहार के बाबू कुँवर सिंह ! वीर मराठा शिवाजी के बाद वह पहले ऐसे भारतीय योद्धा थे जो गुरिल्ला लड़ाई मे सिद्धहस्त थे ! उनकी वीरता के किस्से आज भी बिहार मे सुनाये जाते हैं !

बाबू वीर कुंवर सिंह (1777-1858)विदेशी शासन के खिलाफ लोगों द्वारा छेड़े गए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857-58)के नायकों में से एक थे ! 1857के विद्रोह के दौरान इस देदीप्यमान व्यक्ति ने ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों से डट कर मुकावला किया ! वीर कुंवर सिंह जी जगदीशपुर,निकट आरा ,जो वर्तमान में भोजपुर का एक भाग है,के राजपूत घराने के जमींदार थे ! भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने ब्रिटिश सेना के खिलाफ सशस्त्र बलों के एक दल का कुशल नेतृत्व किया ! 80 वर्ष की वृद्ध अवस्था के बाबजूद, उनका नाम ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों में भय उत्पन्न कर देता था ! उन्होंने कई स्थानों पर ब्रिटिश सेना को कड़ी चुनौती दी ! ऐसा लगता था कि कुंवर सिंह के कारण पूरा पश्चिमी बिहार विद्रोह की आग में जल उठेगा और ब्रिटिश नियंत्रण से बाहर हो जायेगा ! 

यह उस समय की बात है जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 का रणघोष हो चुका था ! इसकी चिंगारी शोला बन चुकी थी और देश भर में अंग्रेजों के खिलाफ जंग आजादी का ऐलान हो चुका था ! कानपुर में नाना साहब पेशवा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, काल्पी के राय साहब जैसे लोग स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कूद चुके थे ! वहीँ बिहार में भी आजादी के शोले की धधक रहे थे ! जगदीशपुर के अस्सी वर्षीय वीर कुंवर सिंह 1857 की इस लड़ाई में बिहार का नेतृत्व कर रहे थे ! इसे दुर्भाग्य ही कहा जायगा क़ि वीर कुंवर सिंह का अंग्रेजों के विरुद्ध यह संघर्ष देश के कोने -कोने में न जाना जा सका है ,न ही उसे पढ़ाया जा सका है ! जन साधारण को भी कुंवर सिंह पंवार के संघर्ष ,उनके त्याग ,वीरता ,साहस ,शौर्य और बलिदान की कोई विशेष जानकारी नही है ! 

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक रहे जगदीशपुर के बाबू वीर कुंवर सिंह को एक बेजोड़ व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है ! बिहार के शाहाबाद (भोजपुर) जिले के जगदीशपुर गांव में जन्मे कुंवर सिंह का जन्म 1777 में प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में हुआ ! उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह नामी जागीरदार रहे ! बाबू कुंवर सिंह के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह जिला शाहाबाद की कीमती और अतिविशाल जागीरों के मालिक थे ! सहृदय और लोकप्रिय कुंवर सिंह को उनके बटाईदार बहुत चाहते थे ! वह अपने गांव वासियों में लोकप्रिय थे ही साथ ही अंग्रेजी हुकूमत में भी उनकी अच्छी पैठ थी ! कई ब्रिटिश अधिकारी उनके मित्र रह चुके थे लेकिन इस दोस्ती के कारण वह अंग्रेजनिष्ठ नहीं बने !

अंग्रेजों के विरुद्ध बिहार में विद्रोह का प्रारम्भ 12जून 1857को हुआ ! 25 जुलाई, 1857 को दानापुर छावनी में जब अंग्रेज अधिकारियों ने सैनिकों को शस्त्र जमा करा देने का आदेश दिया तो वहां भी विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी ! 26 जुलाई को विद्रोही पलटन मुक्ति सेना के रूप में आरा पहुँच गई ! मुक्ति सेना ने उसी क्षेत्र के जगदीशपुर निवासी 80 वर्षीय कुंवर सिंह पंवार को अपना सर्वोच्च नेता स्वीकार किया और प्रधान शासक के रूप में उनका अभिषेक किया ! कुंवर सिंह पंवार छापामार युद्ध के विशेषज्ञ माने गये ! कुछ समय बाद कुंवर सिंह अपनी सेना की एक टुकड़ी के साथ युद्ध का मूल्यांकन करने तथा उसको नया आयाम देने के उदेश्य से 1858 के प्रारम्भ में सासाराम,रोहतास,मिर्जापुर,रींवा,बांदा,कालपी,कानपुर के प्रमुख विद्रोही नायकों से संपर्क करते हुए मार्च के प्रारम्भ में लखनऊ पहुंचे जहां उनका क्रांतिकारियों ने बड़ा सम्मान किया ! अवध के राजा ने उन्हें शाही पोशाक से सम्मानित किया और आजमगढ़ जिले में आने वाले क्षेत्र की जागीर प्रदान की ! मार्च, 1858 में उन्होंने आजमगढ़ को अधिकृत कर लिया ! 22मार्च 1858 को कुंवर सिंह जी और उनके साथियों ने अतरौलिया पर बहुत बड़ा आकस्मिक हमला किया और कर्नल मिलमैन के नेतृत्व वाले ब्रिटिश बलों को आजमगढ़ तक वापिस खदेड़ दिया कुंवर सिंह की सेना में 5 से 12 हजार तक सिपाही थे जो उनकी बेजोड़ संगठन शक्ति के परिचायक थे ! कुंवर सिंह जी द्वारा उस क्षेत्र के घेराव से ब्रिटिश अधिकारीयों को पूरे क्षेत्र की पराजय का भय और अधिक बढ़ गया ! गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग को स्थिति से निपटने के लिए अत्यावश्यक उपाय करने पड़े क्यों की कुंवर सिंह के साहस व् शौर्य से वे परिचित थे ! ब्रिटिश सेना के नये -नए दस्ते आते रहे ,परन्तु कुंवर सिंह ने उन्हें बार -बार क्रांतिकारियों के नियंत्रण में लड़ाई में रखा !

15अप्रैल 1858 को जनरल लुगाई से कुंवर सिंह जी की आजमगढ़ में ही सामना हो गया जिसमें वे अविजित रहे किन्तु अगले ही दिन उन्होंने आरा लौट जाने का कार्यक्रम बना लिया ! वे 18अप्रैल को बलिया के नगरा सिकंदरपुर होते हुए मनिथर आये और वहीँ पड़ाव डाल दिया ! 20 अप्रैल को कैप्टेन डगलस ने उनकी सेना पर आक्रमण कर दिया किन्तु कुंवर सिंह जी अपनी सेना को बचाकर शिबपुर घाट पहुंचा देने में सफल हो गये ! उन्होंने उसी दिन गंगा पार कर लिया, किन्तु गंगा नदी पार करते समय अंग्रेजी सेना ने उनकी नाव पर भयंकर गोलिया चलायी जिससे एक गोली कुंवर सिंह जी की बाह में लगी ! ऐसा कहा जाता है कि गोली का शरीर में जहर फैलने की बजह से कुंवर सिंह जी ने अपना एक हाथ स्वयं तलवार से काट कर गंगा को भेंट कर दिया और गंगा पार कर हाथी पर सवार होकर अपने गृह नगर जगदीशपुर पहुँच गये ! 23 अप्रैल को अंग्रेज सेना तोपों से सुसज्जित होकर उनका पीछा करते हुए उनके गृह निवास तक पहुँच गई जहाँ उनके छोटे भाई अमर सिंह जी ने अंग्रेजों का बड़े साहस से जोरदार मुकावला किया ! अंग्रेज कमांडर ली ग्रैंड भी मारा गया 24 अप्रैल 1858 को यह अस्सी साल का रणबांकुरा स्वर्ग सिधार गया ! वे विजेता के रूप में इस भारत भूमि से हमेशा के लिए विदा हो गये ! भयंकर लड़ाइयों के बावजूद उन्होंने भारतीय वीरों की शानदार परम्परा को बरकरार रखा !

भारत भूमि को अभिमान है अपने इस सपूत पर जिसने 80 साल के उम्र में भी तलवार उठा, जवानों में जोश भरकर आजादी का बिगूल फूक दिया और मरते दम तक देश के आजादी के लिए लडते रहे !

बाबू कुंवर सिंह की वीरता का बखान गंग कवि ने निम्न लिखित छंद में किया है।

समर में निसंक बंक 
बांकुरा विराजमान 
सिंह के समाज सोहे 
बीच निज दल के।
कमर में कटारी सोहे 
करखा से बातें करै,
उछल उछल मुंड काटे 
सत्रु बाहुबल के।
बांया हाथ मूंछन पे ताव देत 
बार बार दहिन से,
समसेर बांके बिहारी सम चमके।
कहें कवि गंग जगदीशपुर कुंवर ङ्क्षसह,
जाकी तरवार देख गोरन दल दलके।
एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें