असम के कोकराझार में आतंकी हमला-गंभीर चुनौती - प्रमोद भार्गव


असम के कोकराझार में हुआ आतंकी बानाम उग्रवादी हमला, ढाका में हुए हमले का विस्तार लगता है। इस हमले में वही तरीका अपनाया गया, जो कमोवेश ढाका में अपनाया गया था। आतंकियों ने दिन-दहाड़े भीड़-भाड़ वाले बाजार बालाजान तेनाली को निशाना बनाया। इस आत्मघाती दस्ते में शामिल करीब चार आंतकवादियों ने एके-47 से अंधाधुंध गोलीबारी की और बम भी फोड़े। नतीजतन करीब 15 लोग मारे गए और ग्रेनेड से किए हमले में तीन दुकानें पूरी तरह तबाह हो गईं। हालांकि सुरक्षा बलों ने जवाबी कार्यवाही में दो आतंकियों को ढेर कर दिया, लेकिन बांकी भागने में सफल हो गए। यह हमला केंद्र ओैर राज्य की भाजपा सरकारों के लिए इसलिए चुनौती है, क्योंकि इससे पहले इस तर्ज पर शहरी इलाके में हमले नहीं हुए। यह चुनौती इसलिए भी है, क्योंकि यह हमला तब हुआ है, जब देश 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है, नतीजतन आतंकी हमलों की आशंका के चलते सुरक्षा बल व खुफिया एजेंसियां पहले से ही सर्तक हैं, इसके बावजूद हमला हुआ। केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकारें हैं। इसलिए यह बहाना भी नहीं चल सकता कि राज्य और केंद्र की गुप्तचर संस्थाओं के बीच अपेक्षित तालमेल की कमी थी।

असम के पुलिस महानिदेशक ने घटना के पीछे नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड का हाथ बताया है। किसी अन्य आतंकी या उग्रवादी संगठन ने इस हमले की अब तक जुम्मेबारी नहीं ली है, इसलिए यही सही है। यह संगठन बोडो आदिवासी इलाकों में सक्रिय सबसे बड़ा ताकतवर संगठन है। बोडो उग्रवादी असम में पृथक बोडो राज्य की मांग कर रहे हैं। लेकिन सोंगबिजित का जो एनडीबीएफ गुट है, वह बोडोलैंड नामक संप्रभु देश बनाने के नाम पर कोकराझार जैसी हिंसक घटनाओं को अंजाम देने पर आमादा है। इसलिए जरूरत है कि ऐसे अलगाववादी उन्मादी संगठनों से पूरी ताकत से निपटते हुए, इन्हें नेस्तनाबूद कर दिया जाए। पूर्वोत्तर के ज्यादातर अलगाववादी गुटों को उग्रवादी समूहों के रूप में परिभाषित किया जाता है, लेकिन सोंगबिजित का जो संगठन है, उसे इसलिए आतंकवादी संगठन घोषित करने की जरूरत है, क्योंकि वह स्वतंत्र राश्ट्र की मांग कर रहा है और उसे चीन, म्यांमार तथा बांग्लादेश से हथियार व धन मिल रहा हैं। 

वैसे भी 2005 में भारत सरकार से हुए शांति समझौते के बाद इस संगठन से अनेक नेता अलग होकर असम की मुख्यधारा में आ गए हैं। अब केवल आईके सोंगबिजित गुट ही है, जो उग्रवाद की कमान संभाले हुए है। इसने 2012 में अपना स्वतंत्र गुट एनडीबीएफ बनाया और हिंसा की राह पर चल पड़ा। तब से लगातार यह हिंसक वारदातों को अंजाम दे रहा है। 2014 में तो इसने लगातार 18 वारदातें कर 141 लोगों की हत्या कर दी थी। हालांकि सुरक्षाबल लगातार मुठभेड़ों में इन आतंकियों का काम तमाम कर इनकी संख्या कम करने में लगे हैं। 2014 से लेकर इस ताजा घटना तक इस गुट के 52 आतंकी मार दिए गए हैं।

असम में बोडो उग्रवादी और घुसपैठी मुस्लिम आतंकी एक चुबंक के दो विपरीत ध्रुव हैं। केंद्र और असम में भाजपा की सरकारें वजूद में आने के बाद देश की जनता में यह उम्मीद बढ़ी थी कि उग्रवादी हों या नक्सली या फिर हों पाकिस्तान परस्त आतंकवादी इस तरह से सिर नहीं उठा पाएंगे ? यदि उठाया भी तो इनकी गर्दनें नाप दी जाएंगी। किंतु भाजपा के सवा दो साल के कार्यकाल के बाद अब ऐसा लगने लगा है कि कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक आतंकी कहीं ज्यादा ताकत से पेश आकर वारदातों को कम अवधि में ज्यादा संख्या में अंजाम तक पहुंचा रहे हैं। कश्मीर में हालात इतने बद्हाल हैं कि पाकिस्तानी आतंकवादियों ने न केवल स्थानीय अलगाववादियों की एक सभा में हिस्सा लिया, बल्कि भाषण के रूप में आतंक का पाठ भी पढ़ाया। पिछले साल मणिपुर में घातक आतंकवादी हमला हुआ था। पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने पंजाब में गुरूदासपुर और पठानकोट को निशाना बनाया। यहां तक कि सेना के हवाई ठिकाने पर भी घुसपैठ करके हमला बोल दिया था। इन बद्तर हुए हालातों में पाकिस्तान को महज खरी-खरी सुनाने से काम चलने वाला नहीं है। राजनाथ जी, गरजना तो अब बहुत हुआ, थोड़ा बरस कर भी दिखाइए ? क्योंकि अब जनता सिर्फ जबाव में सख्त से सख्त कार्यवाही चाहती है। 

दरअसल बांग्लादेशी धुसपैठियों की तादाद बक्सा, चिरांग, धुबरी और कोकराझार जिलों में सबसे ज्यादा है। इन्हीं जिलों में बोडो आदिवासी हजारों साल से रहते चले आ रहे हैं। लिहाजा बोडो और मुस्लिमों के बीच रह-रहकर हिंसक वारदातें होती रही हैं। पिछले 14 साल में ही 14 हिंसा की बड़ी घटनाएं घटी हैं। जिनमें साढ़े पांच सौ से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। घटनाएं घटने के बावजूद इस हिंसा का संतोषजनक पहलू है कि हिंसा के मूल में हिंदू, ईसाई बोडो आदिवासी और आजादी के पहले से रह रहे पुश्तैनी मुसलमान नहीं हैं। विवाद की जड़ में स्थानीय आदिवासी और घुसपैठी मुसलमान हैं। दरअसल बोडोलैंड स्वायत्त्ता परिषद क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गैर बोडो समुदायों ने बीते कुछ समय से बोडो समुदाय की अलग राज्य बनाने की दशकों पुरानी मांग का मुखर विरोध शुरू कर दिया है। इस विरोध में गैर-बोडो सुरक्षा मंच और अखिल बोडोलैंड मुस्लिम छात्र संध की प्रमुख भूमिका रही है। जाहिर है, यह पहल हिंदू, ईसाई और बोडो आदिवासियों को रास नहीं आ रही है। इन पुश्तैनी बासिंदों की नाराजी का कारण यह भी है कि सीमा पार से घुसपैठी मुसलमान उनके जीपनयापन के संसाधनों को लगातार हथिया रहे हैं। यह सिलसिला 1950 के दशक से जारी है। अब तो आबादी के घनत्व का स्वरूप इस हद तक बदल गया है कि इस क्षेत्र की कुल आबादी में मुस्लिम बहुसंख्यक हो गए हैं। पूरे असम में मुस्लिमों की संख्या करीब 40 फीसदी हो गई हैं।

इन धुसपैठियों को भारतीय नागरिकता देने के काम में असम राज्य कांग्रेस की राष्ट्र विरोधी भूमिका रही है। घुसपैठियों को अपना वोट बैंक बनाने के लिए कांग्रेसियों ने इन्हें बड़ी संख्या में मतदाता पहचान पत्र एवं राशन कार्ड तक हासिल कराए हैं। नागरिकता दिलाने की इसी पहल के चलते घुसपैठिये कांग्रेस को झोली भर-भर के वोट देते रहे हैं। कांग्रेस की तरूण गोगाई सरकार इसी बूते 15 साल सत्ता में रही। लेकिन लगातार घुसपैठ ने कांग्रेस की हालत पतली कर दी। फलस्वरूप भाजपा सत्ता में आ गई और सर्वानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री बन गए। बांग्लादेश से हो रही अवैध घुसपैठ के दुष्प्रभाव पहले अलगाववाद के रूप में देखने में आ रहे थे, लेकिन बाद में राजनीति में प्रभावी हस्तक्षेप के रूप में बदल गए। इन दुष्प्रभावो को पूर्व में सत्तारूढ़ रहा कांग्रेस का केंद्रीय व प्रांतीय नेतृत्व जानबूझकर वोट बैंक बनाए रखने की दृष्टि से अनदेखा करता रहा है। लिहाजा धुबरी जिले से सटी बांग्लादेश की जो 134 किलोमीटर लंबी सीमा-रेखा है उस पर कोई चौकसी नहीं है। नतीजतन घुसपैठ आसानी से जारी है। असम को बांग्लादेश से अलग ब्रह्मपुत्र नदी करती है। इस नदी का पाट इतना चौड़ा और दलदली है कि इस पर बाड़ लगाना या दीवार बनाना नामुमकिन है। केवल नावों पर सशस्त्र पहरेदारी के जरिए घुसपैठ को रोका जा सकता है। कोकराझार से बांग्लादेश की जमीनी सीमा नहीं जुड़ी है। अलबत्ता ब्रह्मपुत्र की जलीय सतह ही दोनों देशों को अलग करती है। 

बांग्लादेश के साथ भारत की कुल 4097 किलोमीटर लंबी सीमा-पट्टी है,जिस पर जरूरत के मुताबिक सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। इस कारण गरीबी और भूखमरी के मारे बांग्लादेशी असम में घुसे चले आते हैं। क्योंकि यहां इन्हें कांग्रेसी और यूडीपी अपने-अपने वोट बैंक बनाने के लालच में भारतीय नागरिकता का सुगम आधार उपलब्ध करा देते हैं। मतदाता पहचान पत्र जहां इन्हें भारतीय नागरिकता का सम्मान हासिल करा देता है,वहीं राशन कार्ड की उपलब्धता इन्हें बीपीएल के दायरे में होने के कारण रूपैया किलो में रोटी के संसाधन उपलब्ध करा देती है। आसानी से बन जाने वाले बहुउद्देशीय पहचान वाले आधार कार्ड भी इन घुसपैठियों ने बड़ी मात्रा में हासिल कर लिए हैं। भारत में नागरिकता और आजीविका हासिल कर लेने के इन लाभदायी उपायों के चलते ही,देश में घुसपैठियों की तादाद तीन करोड़ से भी ज्यादा हो गई है। 

दरअसल बांग्लादेशी घुसपैठीये शरणार्थी बने रहते,तब तक तो ठीक था,लेकिन भारतीय गुप्तचर संस्थाओं को जो जानकारियां मिल रही हैं, उनके मुताबिक, पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था इन्हें प्रोत्साहित कर भारत के विरूद्ध उकसा रही है। सऊदी अरब से धन की आमद इन्हें धार्मिक कट्टरपंथ का पाठ पढ़ाकर आत्मघाती जिहादियों की नस्ल बनाने में लगी है। बांग्लादेश इन्हें हथियारों का जखीरा उपलब्ध करा रहा है। जाहिर है,ये जिहादी उपाय भारत के लिए किसी भी दृश्टि से शुभ नहीं हैं। भाजपा जब सत्ता में नहीं थी, तब प्रधानमंत्री समेत पूर्वोत्तर के राज्यों के भाजपाई घुसपैठियों को खदेड़ने की बात बढ़-चढ़ कर करते थे, लेकिन केंद्र में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने हुए ढाई साल हो रहे हैं, इस अवधि में घुसपैठियों को खदेड़ने के कोई नीतिगत उपाय हुए हों, ऐसा देखने में नहीं आया है ? लिहाजा समय आ गया है कि जो आतंकवादी देश की एकता अखंडता और संप्रभुता को सांगठनिक चुनौती के रूप में पेश आ रहे हैं, उन्हें देश से बेदखल करने और निर्ममता से कुचलने की ठोस नीति और प्रभावी कार्यवाही वक्त गंवाए बिना अमल में लाई जाए।

प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224
फोन 07492 232007

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार है।

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