श्रीकृष्ण सरल जी द्वारा उद्घोषित अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद के जीवन के कुछ अनूठे प्रसंग !


एक वनवासी गाँव भावरा में कुछ अधनंगे बालक साथ साथ दीवाली मना रहे थे ! कोई फुलझड़ी चला रहा था तो कोई पटाखे फोड़ रहा था, तो कुछ के पास रंगीन माचिस थीं ! बालक चंद्रशेखर के पास कुछ नहीं था ! वह अपने दोस्तों को त्यौहार मनाता बस देख भर रहा था ! एक बच्चा जिसके पास रंगीन माचिस थी, उसने एक तीली जलाई, किन्तु उसकी तपिस बर्दास्त न होने के कारण उसे तुरंत फेंक भी दिया ! डरते डरते उसने दूसरी तीली माचिस से रगडी, किन्तु जैसे ही तीली ने आग पकड़ी, उसने तुरंत उसे भी मैदान में फेंक दी ! उसके हाथ डर से काँप रहे थे !

बाल चन्द्रशेखर से सहन नहीं हुआ और बोले – क्या एक तीली जलाने में इतने डर रहे हो, मैं एक साथ पूरी तीलियाँ जलाकर हाथ में पकडे रह सकता हूँ !

वह रंगीन माचिस जिस बच्चे की थी, उसने वह माचिस चंद्रशेखर के हाथों में थमा दी, और कहा करके दिखाओ !

चंद्रशेखर ने सारी माचिस की तीलियाँ बाहर निकालीं और उन्हें एक साथ माचिस पर रगडा ! तीलियाँ एकदम भभककर जल उठीं ! स्वाभाविक ही चंद्रशेखर का हाथ भी झुलस गया, किन्तु उसने तीलियाँ तब तक हाथ से नहीं छोडीं, जब तक कि वे पूरी तरह जल नहीं गईं ! तीलियाँ जल जाने के बाद वह अपने साथी से मुखातिब हुआ और बोला – देखा, मेरा हाथ जल गया, पर मैंने तीलियाँ नहीं फेंकीं !

सब दोस्तों ने देखा कि चंद्रशेखर का हाथ जल गया था और उस पर फफोले पड़ गए थे ! कुछ बच्चे दौड़कर उसके घर गए और उसके माता पिता को घटना की जानकारी दी ! माँ तो घर के काम में व्यस्त थीं, अतः पिता पंडित सीताराम तिवारी दौड़कर उस जगह पहुंचे ! पिता को आते देखकर बालक चंद्रशेखर जंगल में भाग गया ! तीन दिन तक वह जंगल में ही रहा ! अंत में उसकी माँ उसे ढूंढकर घर लाईं!

चंद्रशेखर का जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ ! उनके पिताजी उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के बंदरका गाँव के रहने वाले थे ! भीषण अकाल के कारण उन्हें अपना पैतृक गाँव छोड़ना पड़ा ! उनके एक रिश्तेदार ने मदद की और वे अलीराजपुर रियासत के गाँव भावरा आये ! आजकल यह गाँव मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में है !

कुछ बड़े होने के बाद चंद्रशेखर बनारस पहुंचे तथा अपने चाचा पंडित शिव विनायक मिश्रा की मदद तथा कुछ स्वयं के प्रयत्नों से उन्होंने संस्कृत महाविद्यालय में प्रवेश ले लिया ! वह असहयोग आन्दोलन का ज़माना था ! विदेशी वस्तुओं की एक दूकान के सामने विरोध प्रदर्शन करते युवा चन्द्रशेखर भी पकडे गए ! खरेघाट के पारसी मजिस्ट्रेट से हुआ उनका रोचक संवाद, हममें से अधिकाँश को ज्ञात ही है !

उसने पूछा – तुम्हारा नाम !
मेरा नाम है आजाद !
तुम्हारे पिता का नाम ?
आजादी !
रहते कहाँ हो ?
जेल मेरा घर !

झल्लाकर मजिस्ट्रेट ने पंद्रह बेंतों की सजा सुना दी ! नंगी पीठ पर जैसे ही बेंत पड़ती, शरीर की कुछ चमड़ी भी उधड जाती, किन्तु चौदह वर्षीय चन्द्रशेखर के मुंह से कराह की जगह भारत माता की जय निकलती ! सजा के बाद नियमानुसार जेलर ने उनके हाथ पर तीन आने रखे, जिसे जेलर के मुंह पर फेंककर चन्द्रशेखर भाग आये ! पूरे ज्ञानवापी परिसर में चन्द्रशेखर प्रसिद्ध हो गए और लोग उन्हें आजाद नाम से जानने लगे !

किन्तु यहाँ से ही चंद्रशेखर का मस्तिष्क बदला और उन्हें लगा कि अहिंसा की दम पर देश स्वतंत्र नहीं हो सकता और वे धीरे धीरे सशस्त्र क्रान्ति की तरफ मुड़ने लगे ! बनारस उन दिनों क्रांतिकारियों का प्रमुख केंद्र भी था ! जल्द ही चन्द्रशेखर का संपर्क मन्मथनाथ गुप्त तथा प्रणवेश चटर्जी से हुआ और वे “हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ” नामक क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गए !

चन्द्रशेखर आजाद का पहला बड़ा अभियान था – काकोरी लूट ! इस अभियान का नेतृत्व कर रहे थे राम प्रसाद बिस्मिल ! युवा चन्द्रशेखर के चुलबुले स्वभाव के कारण बिस्मिल उन्हें “पारा” कहकर पुकारते थे ! 9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने सहारनपुर से लखनऊ जा रही पैसिंजर ट्रेन को रोककर ब्रिटिश ट्रेजरी के बक्से लूट लिए ! बाद में आजाद को छोड़कर सारे क्रांतिकारी एक के बाद एक पकड़ लिए गए और उन्हें या तो फांसी दे दी गई या लम्बी लम्बी सजाएं !

पुलिस से बचने के लिए आजाद झांसी आ गए ! झांसी में इन्हें एक अन्य क्रांतिकारी साथी मास्टर रूद्रनारायण सिंह का संरक्षण प्राप्त हुआ तथा सदाशिवराव मलकापुरकर, भगवानदास माहौर और विश्वनाथ वैशम्पायन जैसे सहयोगी भी मिले ! कुछ समय इन्होने बुंदेलखंड मोटर कम्पनी में मोटर मेकेनिक के रूप में काम किया तथा ड्राईविंग सीखी ! और हद तो देखिये कि कुछ समय पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट की कार भी चलाई !

झांसी की कुछ घटनाएँ बहुत रोचक हैं और चंद्रशेखर आजाद की महान शख्सियत को दर्शाती हैं ! झांसी में ये जिस मकान में रहते थे, उसके नजदीक ही एक दूसरा ड्राईवर रामदयाल भी अपने परिवार के साथ रहता था ! वह अक्सर रात को शराब के नशे में अपनी पत्नी को पीटता और गालियाँ देता था ! पडौस के अन्य लोग घरेलू मामला मानकर चुप ही रहते ! झिकझिक से परेशान तो होते किन्तु झगडालू शराबी से कौन पंगा ले, सोचकर रह जाते ! 

एक दिन रामदयाल ने खुद होकर अपनी क़ज़ा बुला ली और आजाद से भिड बैठा ! हुआ कुछ यूं कि उसने आजाद से कहा कि तुम रात को बहुत खटरपटर करते हो, जिससे मुझे डिस्टर्ब होता है !

आजाद झगडा झंझट नहीं चाहते थे, फिर भी उन्होंने शान्ति से कहा कि भाई मैं तो केवल छेनी हथौडे से काम करता हूँ, किन्तु तुम जो शराब पीकर अपनी भली पत्नी को गालियाँ देते और पीटते हो, उससे तो पूरा मोहल्ला परेशान होता है !

रामदयाल भड़क गया और बोला कि तुम कौन होते हो हमारे मामले में बोलने वाले और मेरी पत्नी का पक्ष लेने वाले ? मैं तो उसे और मारूंगा, देखता हूँ कौन साला मुझे रोकता है !

आजाद शान्ति से बोले – देखो भाई तुमने मुझे अभी अभी “साला” बोला है, इसका मतलब हुआ कि तुम्हारी पत्नी अब मेरी बहिन हुई ! अब अगर तुमने उसे शराब पीकर मारपीट की तो मैं उसे बचाऊंगा !

रामदयाल यह चुनौती सुनकर गुस्से से लालपीला हो गया और बोला – रात गई चूल्हें में और नशा गया भाड़ में, बिना पिए मैं अभी दिन में ही, उसकी यहीं बीच सड़क पर ठुकाई लगाता हूँ, देखता हूँ कौन उसे बचता है !

यह कहकर रामदयाल दौड़ता हुआ अपने घर में गया और अपनी पत्नी को बाल पकड़कर खींचता हुआ बाहर लाया, किन्तु जैसे ही उसने उसे मारने को हाथ उठाया, आजाद के एक ही घूंसे ने उसे चित्त कर दिया ! उसका चेहरा सूज गया और वह दोनों हाथों से अपना सिर पकड़कर बैठा रह गया ! तब तक अन्य पडौस के लोग भी दौड़कर आये और आजाद को उनके कमरे में ले गए ! 

इसके बाद कुछ समय तक रामदयाल और आजाद की बोलचाल बंद रही, किन्तु फिर आजाद ने ही पहल कर उसे जीजाजी कहकर पुकारना शुरू किया और सम्बन्ध सामान्य किये ! कहने की आवश्यकता नहीं कि उस दिन के बाद रामदयाल द्वारा पत्नी से की जाने वाली मारपीट तो बंद हो ही गई !

इस प्रसंग से तो चंद्रशेखर केवल मोहल्ले पडौस में ही मशहूर हुए, किन्तु एक अन्य घटना ने तो उन्हें पूरी झांसी में शोहरत दिला दी !

कॉलोनी के कुछ मजदूर आर्थिक तंगी में फंसने पर एक काबुली पठान से कर्जा लेते थे, जो देता तो आसानी से था, किन्तु व्याज बसूलने में पूरा कसाई था ! एक दिन जब आजाद अपने कमरे में कुछ काम कर रहे थे, उनके कानों में पडौसी धनीराम की आवाजें सुनाई दीं ! वह कह रहा था – खान बाबा बस दस दिन की मोहलत और दे दो, मैं तुम्हारी पाई पाई चुका दूंगा ! बीमार हो जाने के कारण मैं काम पर नहीं जा पाया, इसलिए आपका ब्याज समय पर नहीं दे पाया, किन्तु अब मैंने आज से ही फैक्ट्री जाना शुरू कर दिया है, और ठीक दस दिन बाद मैं सूद समेत पैसा चुका दूंगा ! 

खान ने उसे फटकारते हुए कहा कि तुम किसी काम के नहीं हो, जब तुम मेरा ब्याज भी नहीं चुका सकते तो कर्जा लिया ही क्यों था ? अब मेरा पैसा वापस होने तक अपने बीबी बच्चों को मेरे पास गिरवी रखो, मैं यहाँ से खाली हाथ जाने वाला नहीं हूँ !

धनीराम ने हाथ जोड़कर उससे बार बार विनती की कि दस दिन बाद आये, किन्तु खान टस से मस नहीं हुआ और उसने आगे बढ़कर धनीराम के औजारों का थैला उठा लिया ! धनीराम गिडगिडाया – खान बाबा औजार ही नहीं रहेंगे तो मैं काम कैसे करूंगा और आपका पैसा कैसे चुकाऊँगा ? मुझ पर रहम करो !

किन्तु खान उसका थैला लेकर जाने लगा ! यह नजारा देखते आजाद अब बीच में आये और खान से बोले - खान बाबा धनीराम कह तो सही रहा है, अगर उसके औजार ही नहीं रहंगे तो वह काम कैसे करेगा और तुम्हारा पैसा भी तुम्हें कहाँ से वापस करेगा ?

पठान गुस्से में चिल्लाया – तुम कौन होते हो बीच में बोलने वाले ? अगर मुझसे उलझोगे तो जमीन में ज़िंदा गाड दूंगा !

अब आजाद की बारी थी ! उन्होंने गरज कर कहा कि बस कर पठान अगर मेरा एक झापड़ पड़ गया तो पानी पीने को मोहताज हो जाओगे ! 

पर पठान कहाँ मानने वाला था वह आजाद पर झपटने की गलती कर बैठा और अगले ही क्षण आजाद के एक थप्पड़ ने उसे चकरघिन्नी कर दिया ! उसकी पगड़ी कहीं, डंडा कहीं और धनीराम का थैला कहीं ! उसके बाद उसकी एक मिनिट रुकने की हिम्मत नहीं हुई और वह अपनी पगड़ी संभालता भागता नजर आया !

उसके बाद तो अडौस पडौस के बच्चे भी उन्हें “शेर” कहने लगे ! किन्तु इससे आजाद पुलिस की नज़रों में भी आने लगे ! और उन्होंने झांसी छोड़कर ओरछा में वेतवा के किनारे झोंपड़ी बनाकर एक ब्रह्मचारी के वेश में रहना शुरू किया ! जल्द ही उन्होंने एक नया क्रांतिकारी संगठन बनाया और उसका नाम रखा – हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सेना” ! उनके साथियों ने उन्हें इस संगठन का कमांडर-इन-चीफ घोषित किया ! भगतसिंह भी उनके साथ आ जुड़े और उत्तरप्रदेश से लेकर पंजाब तक उनका कार्यक्षेत्र फ़ैल गया !

उन्हीं दिनों ब्रिटिश सरकार ने भारत को कुछ राजनैतिक अधिकार की खैरात देने के लिए साईमन कमीशन का गठन किया ! आजादी से कम कुछ मंजूर नहीं की भावना से उसका व्यापक विरोध हुआ ! साईमन गो बेक के नारों से देश का आसमान गूँज उठा ! ऐसे ही एक प्रदर्शन के दौरान पंजाब के लोकप्रिय नायक लाला लाजपत राय पुलिस के लाठी चार्ज में घायल होकर शहीद हो गए ! 

चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारी साथियों ने लाठी चार्ज का आदेश देने वाले एसपी सांडर्स को मारने का निश्चय किया ! 17 दिसंबर 1928 को जैसे ही जे.पी. सांडर्स अपने ऑफिस से बाहर निकलकर अपनी मोटरसाईकिल पर बैठा, राजगुरू ने उस पर गोली चला दी, जो उसके माथे पर लगी और वह मोटर साईकिल से नीचे गिर पड़ा ! भगतसिंह दौड़कर वहां पहुंचे और चार गोलियां और दागकर उसकी मौत सुनिश्चित कर दी ! इस बीच सांडर्स को बचाने के लिए आगे बढ़ते उसके बॉडीगार्ड का कामतमाम आजाद ने कर दिया ! सारे लाहौर में पोस्टर चिपका दिए गए कि लाला लाजपतराय की मौत का प्रतिशोध ले लिया गया है ! पूरे देश में क्रांतिकारियों की जयजयकार होने लगी !

आगे की घटनाएं तो सर्व विदित ही हैं ! 8 अप्रैल 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेन्ट्रल असेम्बली में धुएँ का बम फोड़ा और जन जागृति की खातिर आत्मसमर्पण किया ताकि न्यायालय का उपयोग कर सारे देश में आजादी की अलख जगाई जा सके ! 

27 फरवरी 1931 को एक जयचंद की सूचना पर इलाहाबाद के अल्फेड पार्क में चन्द्रशेखर आजाद को पुलिस ने घेर लिया और जब तक गोली रहीं आजाद ने संघर्ष किया ! अंत में आख़िरी गोली से स्वयं को मातृभूमि पर उत्सर्ग कर दिया ! स्वतंत्रता के इस अनोखे और अद्वितीय नायक को कोटिशः नमन !

आधार श्री कृष्ण सरल जी की अमर कृति Indian Revolutionaries: A comprehensive study 1757-1961, Volume 3 chandra shekhar azad

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