ओशो रजनीश की मौत सामान्य या षडयंत्र ?? मुम्बई उच्च न्यायालय में दायर हुई याचिका !


आज हिंदुस्तान टाईम्स में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार, वर्तमान युग के महानतम चिंतकों में से एक ओशो रजनीश की मौत सामान्य नहीं थी ! केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा उसकी जांच की जाना चाहिए !

ओशो की मृत्यु के छब्बीस वर्ष बाद उनकी मौत को "संदिग्ध मौत" बताते हुए, उनके एक शिष्य डॉ गोकुल गोकनी की ओर से कोरेगांव पार्क निवासी योगेश ठक्कर ने मुम्बई उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है ! याचिका में कहा गया है कि 19 जनवरी 1990 को जब ओशो का निधन हुआ, तब किसी को भी उनके करीब नहीं जाने दिया गया ! एक चिकित्सक के रूप में मुझे केवल उनका मृत्यु प्रमाण पत्र जारी भर करने को कहा गया । गुरु की मौत के दिन ओशो आश्रम में उपस्थित याचिकाकर्ता द्वारा इस सम्बन्ध में एक हलफनामा भी दिया गया है।

डॉ गोकनी 1973 से ओशो के शिष्य थे ! उन्होंने 14 दिसम्बर, 2015 को दिए अपने हलफनामे में सिलसिलेबार उस समय की घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा है कि मृत्यु के पूर्व उन्हें ओशो को देखने और मिलने की अनुमति नहीं दी गई, केवल आध्यात्मिक गुरु द्वारा अंतिम सांस ली जाने के बाद उनका मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए कहा गया !

याचिका में माइकल बर्न और डॉ जॉन एंड्रयूज पर साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया गया है । साथ ही कुछ और लोगों की तरफ इशारा करते हुए कहा गया है कि कुछ लोगों ने ओशो के निधन में "एक भूमिका निभाई है"।

उन्होंने उल्लेख किया है कि जब उन्होंने ओशो के शिष्यों से जानना चाहा कि उनकी मौत का कारण क्या लिखा जाए, तो उनसे कहा गया कि ओशो का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया, यह लिखो ।

ईएनटी सर्जन डॉ गोकुल गोकनी से जब पूछा गया कि वे ओशो की मृत्यु के 25 साल बाद यह सब क्यों कह रहे हैं, तो उन्होंने उत्तर दिया कि अन्य शिष्यों से बात करने के बाद, उन्हें महसूस हुआ कि ओशो के करीबी शिष्यों में से जो उस समय शीर्ष पर थे, उनके बयानों के बीच गंभीर बिसंगति है ।

यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि ओशो गरीबी को अभिशाप मानते थे, और उनके शिष्यों में भी ज्यादातर धनपति ही थे ! उन पर आरोप भी लगता था कि उन्होंने पूंजीवाद को ही बढ़ावा दिया। आंकड़ों के अनुसार उनके पास करीब 90 रॉल्स रॉयस गाड़ियां थीं। ओशो बेहतरीन तर्कशास्त्री थे और उनमें अपने तर्कों द्वारा सही को गलत और गलत को सही करने की काबिलियत थी । 

धन और षडयंत्र एक दूसरे के पूरक हैं ही, तो उनकी अस्वाभाविक मौत में आश्चर्य क्या ?

11 दिसंबर, 1931 को मध्य प्रदेश के गांव कुछवाड़ा के एक तारनपंथी जैन परिवार में ओशो रजनीश का जन्म हुआ था। ग्यारह भाइयों में सबसे बड़े ओशो का पारिवारिक नाम रजनीश चंद्र मोहन था। 11 वर्ष की उम्र में रजनीश को अपने ननिहाल भेज दिया गया, जहां बिना किसी नियंत्रण के पूरी उन्मुक्तता के साथ उन्होंने अपना प्रारम्भिक जीवन व्यतीत किया।

जबलपुर विश्वविद्यालय से स्नातक (1953) और फिर सागर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (1957) की उपाधि ग्रहण करने के बीच रजनीश ने तारनपंथी जैन समुदाय द्वारा आयोजित अपने पहले सालाना सर्व धर्म सम्मेलन का हिस्सा बने। यहीं उन्होंने सबसे पहले सार्वजनिक भाषण दिया, जहां से उनके सार्वजनिक भाषणों का सिलसिला शुरू हुआ जो वर्ष 1951 से 1968 तक चला।

जून, 1981 में आचार्य रजनीश अमरीका गए, जहां ओरेगन सिटी में उन्होंने ‘रजनीशपुरम’ की स्थापना की। पहले यह एक आश्रम था लेकिन देखते ही देखते यह एक पूरी कॉलोनी बन गई जहां रहने वाले ओशो के अनुयायियों को ‘रजनीशीज’ कहा जाने लगा। धीरे-धीरे ओशो रजनीश के फॉलोवर्स और रजनीशपुरम में रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगी, यहाँ तक कि चर्च को भी वे ईसाईयत के लिए खतरा प्रतीत होने लगे ।

अंततः अमेरिका की सरकार ने उन पर जालसाजी करने, अमेरिका की नागरिकता हासिल करने के उद्देश्य से अपने अनुयायियों को यहां विवाह करने के लिए प्रेरित करने, जैसे करीब 35 आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें 4 लाख अमेरिकी डॉलर की पेनाल्टी भुगतनी पड़ी साथ ही साथ उन्हें देश छोड़ने और 5 साल तक वापस ना आने की भी सजा हुई।

उन्होंने ग्रीस और अन्य पश्चिमी देशों की भी यात्रा की, लेकिन किसी भी देश ने उन्हें रहने की अनुमति नहीं दी। वर्ष 1986 में ओशो रजनीश पुणे में ही बस गए, जहां रहते हुए उन्होंने अपने सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया।

19 जनवरी, वर्ष 1990 में ओशो रजनीश ने अपनी अंतिम सांस ली। जब उनकी देह का परीक्षण हुआ तो यह बात सामने आई कि अमेरिकी जेल में रहते हुए उन्हें थैलिसियम का इंजेक्शन दिया गया और उन्हें रेडियोधर्मी तरंगों से लैस चटाई पर सुलाया गया। जिसकी वजह से धीरे-धीरे ही सही वे मृत्यु के नजदीक जाते रहे। खैर इस बात का अभी तक कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं हुआ है लेकिन ओशो रजनीश के अनुयायी तत्कालीन अमेरिकी सरकार को ही उनकी मृत्यु का कारण मानते हैं।

तो यह है पश्चिमी सहिष्णुता ? एक जीनियस की हत्या ?

और शायद यही अब सामने लाने के लिए डॉ गोकुल गोकनी की ओर से मुम्बई उच्च न्यायालय में यह याचिका दायर की गई है !

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