यात्रा प्रसंग - शिवपुरी का पर्यटन स्थल पवा

संभवतः 1979-80 का वाकया है ! मित्र-मंडली ने दुरूह वनक्षेत्र में स्थित जलप्रपात “पवा” जाने का तय किया ! पवा संभवतः अंचल का सबसे सुन्दर किन्तु दुर्गम पर्यटन स्थल है ! डकैतों का भी पर्याप्त आतंक था, जिसके कारण पवा जाना अक्सर लोग अवाईड ही करते थे ! उन दिनों आज के समान आवागमन की सुविधाएँ भी नहीं थीं ! ऊबड़खाबड़ रास्तों (गढ़वातों) पर साईकिल तो ठीक है, मोटर साईकिल सवारी तो पूरी तरह घुड़सवारी का आनंद देती थी ! 

खैर तय किया तो जाना ही था ! प्रोफेसर रामगोपाल त्रिवेदी, गोपाल डंडौतिया, गोपाल सिंघल, विमलेश गोयल, महेंद्र रावत और मैं स्वयं ! केवल डॉ. त्रिवेदी जी मोटर साईकिल पर और शेष सब साईकिल सवार ! सिरसौद गाँव तक सड़क मार्ग और उसके आगे कच्चा रास्ता सात किलोमीटर !

पवा पहुंचे, लगभग सौ, सवा सौ फीट की ऊंचाई से गिरते जल प्रपात को देखकर मन प्रसन्न हो गया ! केवल हम लोग ही वहां थे, और कोई इंसान नहीं ! प्रपात के ऊपर बने कुंड के चारों ओर बड़े बड़े सांप घूम रहे थे ! हमको देखकर वे कुंड में ही बने अपने बिलों में समा गए ! जहाँ तक नजर जाती थी घना बियाबान जंगल, हरियाली ही हरियाली ! 

ऊपर बहीं आसपास से सूखे गाय के उपले इकट्ठे किये, दाल बाटी बनाई ! पहले प्रपात में स्नान किया, फिर मस्ती से भोजन ! प्रपात में जहां पानी गिरता है, उसके ठीक पीछे एक गुफा है, जिसमें संभवतः कभी किसी साधू ने धूनी रमाई होगी, या शायद डकैतों ने रैन बसेरा किया होगा, उसके चिन्ह भी वहां थे !

खैर असली उल्लेखनीय घटना हुई हमारा वापस लौटना ! मैं गया तो था साईकिल से किन्तु लौटते समय मेरी साईकिल एक अन्य ग्रामवासी (नाम भूल रहा हूँ) लेकर रवाना हुए, और मैं तथा डंडौतिया जी त्रिवेदी जी के साथ उनकी जावा मोटरसाईकिल से चले ! 

लौटते समय सांझ हो चली थी ! मुश्किल से दो किलोमीटर चले थे, कि तभी मोटर साईकिल पंचर हो गई ! अब क्या ? मरते क्या न करते ? मिलकर उस भारीभरकम मोटर साईकिल को धक्का देते किसी तरह चले ! रात घिर आई ! हम तीनों उस बरसाती रात में रास्ता भी भटक गए ! लगभग पांच बजे चले थे, किन्तु रात के दस बज गए और हम पांच किलोमीटर का सफ़र तय कर सड़क पर नहीं पहुँच पाए ! हँसी मजाक तो चलता ही रहा, कोई भी परिस्थिति हो, स्वभाव कहाँ जाएगा ! मैंने कहा कि कहीं ऐसा न हो कि सुबह मालूम पड़े कि हम रात भर चलते चलते गुना पहुँच गए !

खैर लगभग 12 बजे हम शिवपुरी श्योपुर राजमार्ग पर पहुंचे ! राहत की सांस ली ! मोटरसाईकिल बहां सिरसौद कोतवाली में रखकर एक ट्रक में सवार होकर लगभग तीन बजे घर पहुंचे ! साईकिल मुझसे बहुत पहले वहां पहुँच चुकी थी, जिसके कारण अम्मा बाबूजी परेशान भी थे कि मुन्ना कहाँ रह गया ?

आज डॉ. रामगोपाल त्रिवेदी जी हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु उनकी जिन्दादिली, उनके तेवर क्या हम कभी भूल पायेंगे ? उनका मस्तमौला किन्तु जुझारू स्वभाव और हमें मिला अपनापन कभी नहीं भूल पायेंगे !

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