स्पार्टा के संस्मरण - हिमांशु शर्मा



सत्कर्म दूसरों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं। इसलिए ऐसी कहानियाँ अधिकतम लोगों तक पहुंचना चाहिए ! यह प्रेरक संस्मरण है मेरे एक पुराने मित्र राजकुमार शर्मा जी के सुपुत्र हिमांशु शर्मा का ! साधुवाद हिमांशु, अपनी यह वृत्ति कायम रखना, कूढ़मगज राजनीति से परे यही वास्तविक सनातन हिन्दू चिंतन है ! सर्वे भवन्तु सुखिनः और -

नत्वहम कामये राज्यं,
न स्वर्गं न च पुनर्भवं,
कामये दुःख तप्तानां,
प्राणिनाम आर्तनाशनं !!

तो प्रस्तुत है हिमांशु जी का यह संस्मरण -

जब मैने कॉलेज खोला था तब पहले ही बैच में एक लड़के ने दाखिला लिया था। नाम था राहुल बेहद ग़रीब घर से था। पिताजी टेलर थे।

लड़का पढ़ने में होशियार था 12वीं में 80% प्रतिशत थे उसके। होशंगाबाद जिले के पिपरिया से था। अपने क्षेत्र का topper था सो एक सामजिक क्लब वालों ने 50 हज़ार का चेक दिया था उसको, जिसकी दम पर उसने इंजीनियरिंग करने का सपना पाल रखा था।

खैर वो और उसके पिताजी मुझसे मिलने आये और उसका दाखिला हो गया।

पढ़ाई शुरू हुई और देखते देखते पहले सेमेस्टर के एग्जाम पास आ गए। मेरे पास सूचना आई कि उस लड़के ने अभी तक अपनी फीस जमा नहीं की है। बिना फीस के परीक्षा में बैठने दिया जाना भी संभव नहीं था। उस लड़के को कॉलेज स्टाफ द्वारा फीस भरने का अल्टीमेटम दिया गया। फीस भरने की अंतिम तारीख थी, मैं अपने कैबिन में बैठा था। मुझे बताया गया कि पिपरिया से कोई मिलने आया है।

राहुल के पिताजी थे। आते ही पैरों में गिर गए और फूट फूट के रोने लगे। ऐसे बुज़ुर्ग व्यक्ति को अपने पैरों में देख बहुत असहज हो गया मैं। उनको उठाया और साथ कुर्सी पर बैठाया, पानी पिलाया। कुछ देर में जब वे नार्मल हुए तो कुछ कागज़ मेरे सामने रख दिए कुछ बोला नहीं गया उनसे ।

उस क्लब द्वारा उनको दिया गया चेक बाउंस हो गया था। जिस व्यक्ति ने उनको चेक दिया था, वह क्लब का चुनाव हार गया था। चुनाव प्रचार के दौरान किये गए वादे, उम्मीदवार के जीतने पर ही जब पूरे नहीं किये जाते, फिर ये तो हार गए थे।

जैन साहब ने गिड़गिड़ाते हुए करबद्ध होकर कहा, कि "सर मेरे बेटे का दाखिला निरस्त कर दीजिए। मैं ग़रीब आदमी अपनी हैसियत से अधिक सपने देख बैठा"।

मेरी आँखों में आँसू थे। आज एक पिता अपने पुत्र के लिए, अपने से आधी उम्र के व्यक्ति के पैरों में गिरा था।

मैंने राहुल को बुलवाया और उसको पूरा वृत्तान्त बताया। मैंने राहुल के सामने एक प्रस्ताव रखा, कि अगर वो वचन दे कि किसी भी सेमेस्टर में 75% से कम अंक नहीं लाएगा तो मैं उसकी पूरी फ़ीस माफ़ कर दूँगा और यदि किसी भी सेमेस्टर में ये वादा टूटा तो उसे पूरे चार वर्ष की पूरी फीस जमा करनी होगी।

अब राहुल की आँखें नम थीं। मुझे मेरा जवाब मिल गया था।

मैंने राहुल के पिता से कहा आप निश्चिंत होकर घर जाइये। राहुल की पढ़ाई मैं पूरी करवाऊंगा।
अंततः राहुल ने अपना वचन निभाया और 80% की डिग्री बनाकर पास हुआ।

डिग्री करने के बाद राहुल ने नौकरी के लिए लंबा संघर्ष किया और एक वर्ष बाद IBM जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में 'सॉफ्टवेर Engineer' के पद पर नियुक्त हुआ।

कुछ दिनों पहले ही उसको नौकरी में एक वर्ष पूरा हुआ है। और आज समाचार आया कि राहुल अपनी पहली विदेश यात्रा पर जा रहा है। मन आनंद से भर गया।

हिमांशु जी आपका मन आनंद से भर गया किन्तु मेरी आँखें डबडबा आईं ! मुझे अपने भतीजे पर गर्व है ! - हरिहर शर्मा 

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