सुब्रमण्यम स्वामी के तरकश का एक और तीर, चिदंबरम घायल गंभीर !



आज सुब्रमण्यम स्वामी ट्विटर पर फिर मुखर हुए ! देखने में तो सामान्य तौर पर लगता है कि उनके निशाने पर पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम हैं, लेकिन यह भी संभव है कि वही मिसल हो – कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना ! आप ही पढ़िए और गुनिये कि स्वामी का ट्विटर तीर किसकिसको चोटिल कर रहा है ! तो प्रस्तुत है हिन्दी रूपांतर –

पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के पुत्र कार्ति को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अब तक तीन बार सम्मन भेजकर तलब कर चुका है, किन्तु वे एक बार भी नहीं पहुंचे ! आख़िरी बार उन्हें 31 अगस्त को तलब किया गया था ! उसके बाद भी उनके न आने पर मीडिया में कार्ति की संभावित गिरफ्तारी के समाचार प्रसारित हुए ! इसके बाद श्री चिदंबरम ने एक विचित्र प्रेस विज्ञप्ति जारी कर अपने बेटे की अनुपस्थिति को बाजिब बताते हुए आरोप लगाया कि उन पर लगे सभी आरोप मनगढ़ंत और झूठे हैं तथा प्रवर्तन निदेशालय अकारण उनके परिवार को परेशान कर रहा है ।

अपनी प्रेस विज्ञप्ति में चिदंबरम ने यह भी उल्लेख किया है प्रवर्तन निदेशालय के नोटिस अस्पष्ट थे और उनमें विशिष्ट अपराध का कोई जिक्र नहीं था। प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने चिदंबरम के इन आरोपों का खंडन करते हुए मीडिया को बताया है कि पांच पृष्ठों के सम्मन में विस्तृत रूप से दिसंबर और जनवरी में कार्ति की कंपनियों पर मारे गए छापे के दौरान पाई गई वित्तीय अनियमितताओं का उल्लेख किया गया था ।

सम्मन जारी करने वाले जाँच अधिकारी राजेश्वर सिंह ने कार्ति से 2004 से लेकर 2011 तक के अपने सभी बैंक हस्तांतरण और सभी कंपनियों के अन्य अकाउंटिंग स्टेटमेंट लाने के लिए कहा था । विशेष रूप से कार्ति नियंत्रित कंपनी एडवांटेज स्ट्रेटजिक लिमिटेड और इसकी सिंगापुर शाखा के विवरण भी मांगे गए थे । प्रवर्तन निदेशालय ने कार्ति से एयरसेल के प्रमोटर शिवशंकरन की कंपनियों के साथ हुए लेनदेन पर भी सफाई मांगी थी ! स्मरणीय है कि उस अवधि में एफआईपीबी फ़ाइलें मंत्री के रूप में चिदंबरम के पास लंबित थीं ।

स्पष्टतः बात केवल कार्ति की नहीं है, चिदंबरम जानते हैं कि अगर सुब्रमण्यम स्वामी इसी प्रकार पीछे पड़े रहे तो देरसबेर प्रवर्तन निदेशालय को विवश होकर उनको भी घेरना पड़ेगा, इसीलिए चिदंबरम हिले हुए हैं, घबराये हुए हैं ! प्रवर्तन निदेशालय के जांच निष्कर्ष करोड़ों डॉलर की हेराफेरी की और इंगित कर रहे हैं ! जैसे कि सम्मन में कार्ति से पूछा गया है कि वे अपनी एक अन्य कम्पनी चेस मेनेजमेंट द्वारा मलेशिया के मेक्सिस ग्रुप की तीन कंपनियों से प्राप्त किय गए लगभग दो लाख डॉलर का ब्यौरा प्रस्तुत करें । 
 
प्रवर्तन निदेशालय को यह पक्के तौर पर ज्ञात हुआ है कि चेस मेनेजमेंट को मैक्सिस समूह की कंपनी Bumi Armada Berhad से एक लाख डॉलर से अधिक प्राप्त हुए हैं । इसके अतिरिक्त चेस मेनेजमेंट को Maxis Mobile Sdn Bhd से साठ हजार डॉलर से अधिक तथा एस्ट्रो ऑल एशिया नेटवर्क से लगभग पैंतीस हजार डॉलर भी प्राप्त हुए थे । इन दोनों कंपनियों को पहले से ही पूर्व दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन के परिवार की कंपनी सन टीवी के साथ वित्तीय हेराफेरी के आरोप में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा चार्जशीट किया गया है । प्रवर्तन निदेशालय अब घोटाले की अवधि के दौरान चिदंबरम के बेटे की कंपनियों की भी भूमिका पता लगा रही है ।

यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि ये सभी वित्तीय लेनदेन तब हुए जब चिदंबरम ने मेक्सिस को एयरसेल के अधिग्रहण की अवैध रूप से मंजूरी प्रदान कर दी । अब चिदंबरम इतने नादान भी नहीं हैं कि कार्ति को बुलाने के बाद प्रवर्तन निदेशालय के अगले लक्ष्य को न समझ पायें । मंत्री के रूप में पिता ने अवैध मंजूरी दी और बेटे की कंपनी पर रुपयों की वर्षा होने लगी, दो दूनी चार, सीधा फंदा ज़बरदस्त भ्रष्टाचार ।

मारन बंधुओं के खिलाफ सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर किये गए आरोप पत्र में पहले से ही चिदंबरम द्वारा एयरसेल के अधिग्रहण की मैक्सिस को मंजूरी देने को संदिग्ध बताया है व इसमें हुई अनियमितता की विस्तृत जानकारी दी है । सीबीआई दिसंबर 2014 में चिदंबरम से इस बाबत पूछताछ भी कर चुकी है ! किन्तु जैसा की आमतौर पर ईमानदार अधिकारियों के साथ होता है, जिस संयुक्त निदेशक अशोक तिवारी ने उन्हें तलब किया, उसे बाद में सीबीआई निदेशक अनिल सिन्हा द्वारा बाहर का रास्ता बता दिया गया । अब प्रवर्तन निदेशालय कार्ति की कंपनियों के तार भी मैक्सिस और एयरसेल दोनों कंपनियों के साथ जोड़ रही है ।

अप्रैल 2012 में सुब्रमण्यम स्वामी ने सबसे पहले एयरसेल-मैक्सिस घोटाले में चिदंबरम की भूमिका को सबके सामने लाया था और कार्ति की कम्पनी एडवांटेज स्ट्रेटजिक लिमिटेड के एयरसेल के साथ 2006 में हुए उनतालीस हजार डालर के लेनदेन को संदिग्ध बताया था, क्योंकि यह वही कालखंड था जबकि उनके पिता चिदंबरम वित्त मंत्री के रूप में एफआईपीबी फ़ाइलों पर निर्णय ले रहे थे । सारी भ्रष्ट ताकतों ने पूरा जोर लगाया कि यह मामला किसी प्रकार दब जाए, किन्तु सुब्रमण्यम स्वामी ने लगातार इसे सुप्रीम कोर्ट की 2 जी बेंच के सामने जीवित रखा । लुटियन दिल्ली की भ्रष्ट ताकतों ने भी जांच अधिकारी राजेश्वर सिंह को हटाने के लिए अपनी सभी गंदी चालें चलीं । एकबारगी तो वे हट भी गये, किन्तु सुप्रीम कोर्ट में स्वामी की याचिका के बाद उनकी पुनः नियुक्ति हुई ।

यहां सवाल यह उठता है कि आखिर लगातार तीन तीन बार सम्मन भेजने के बाद भी न आने वाले कार्ति के खिलाफ सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं ? वो कौन है, जो सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के चंगुल से चिदंबरम और उनके बेटे को बचाने की कोशिश कर रहा है ?
एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें