क्या पाकिस्तान को जवाब देगा भारत ? क्या खत्म होगी सिन्धु जल संधि ?


भारत एक शांतिप्रिय राष्ट्र है जहाँ के लोगों को सहनशीलता एवं शांति के साथ रहना सिखाया जाता है ! भारत हमेशा से ही अपने पडोसी देशों के साथ उदारता के साथ ही पेश आया है, परन्तु पडोसी देश पकिस्तान हमारी इस उदारता को हमारी कमजोरी समझता रहा है ! पाकिस्तान को यह याद रखना चाहिए कि सहनशीलता की भी एक सीमा होती है ! 

जवाहरलाल नेहरू की तमाम मूर्खताओं में से सबसे बड़ी है, 1960 में पाकिस्तान के साथ किया गया पानी संबंधी समझौता ! उन्होंने भारत की छः नदियों का पानी पाकिस्तान को आवंटित करने को सहमति देने वाली संधि पर हस्ताक्षर किये ! दो देशों के बीच कोई संधि होती है तो आपसी हितों के आधार पर कुछ दिया जाता है, कुछ लिया जाता है, कुछ दिया जाता है ! किन्तु उक्त संधि से भारत को क्या मिला ! भारत की मूर्खता पर दुश्मन देश पाकिस्तान का सतत क्रूर अट्टहास, जिसकी गूँज उडी में सुनाई दी ! समय आ गया है जब सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) जिसमें इन छह नदियों का लगभग 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को दिया जाता है, उसे तत्काल रद्द किया जाए ! चिनाब, रावी-व्यास-सतलुज सभी नदियों का उद्गम भारत में है, लेकिन उसका पानी प्यास बुझा रहा है, पाकिस्तान की ! पानी की प्यास बुझी या नहीं, पता नहीं, उसकी खून की प्यास बढ़ती ही जा रही है !  
१९ सितम्बर १९६० को कराची में "इंडस वाटर ट्रीटी" पर भारत एवं पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु एवं अयूब खान ने इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (वर्तमान में विश्व बैंक) की मध्यस्थता में हस्ताक्षर किये ! सिन्धु जल संधि के अनुसार भारत अपनी प्रमुख छः नदियों का 80.52 प्रतिशत अर्थात 167.2 अरब घन मीटर जल प्रतिवर्ष पाकिस्तान को देता है ! जिसमे सिन्धु, झेलम व् चिनाब यह तीन नदियाँ तो पूर्ण रूप से पाकिस्तान को तोहफे के रूप में दे दी गयी है ! आधुनिक विश्व के इतिहास में यह संधि सबसे उदार जल बंटवारा है क्यूंकि यह दुनिया की एकमात्र संधि है जिसके द्वारा नदी की ऊपरी धरा वाला देश निचली धरा वाले देश के लिए अपने हितों की अनदेखी कर विगत 56 वर्षों से इस संधि को ढोता चला आ रहा है ! और अजीब बात देखिये कि हमारा पडोसी देश इस बात को जानकार भी उसी पानी को पी पी कर हम पर बार बार गुर्राता है ! यदि आज हिन्दुस्तान इस संधि को तोड़ देता है तो पाकिस्तान की क्या मजाल जो हमें आँख दिखाने की जुर्रत कर पाए , परन्तु हाय री राजनीति ?

इस संधि के कारण जम्मू कश्मीर को लगभग 6500 करोड़ रुपये की हानि हुई है ! इसके अलावा कृषि क्षेत्र के साथ साथ लगभग 2000 मेगा वाट बिजली बनाने की संभावना से भी वंचित होना पड़ा है ! बगलीहार परियोजना के लिए एक एक इंच भूमि इस्तेमाल करने की इजाजत पाने के लिए भारत को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा है और किशनगंगा, वुलर बैराज व् तुल बुल परियोजनाएं अधर में लटकी हुई है ! 

इन सबके बाद भी पाकिस्तान, हिन्दुस्तान को हमेशा धोखा देता रहा है ! सिन्धी जल संधि से लाभ लेने वाला पाकिस्तान जलदाता देश भारत के साथ दो बार (1965 एवं 1971 के भारत पाक युद्ध) घोषित तौर पर एवं एक बार (1999 का कारगिल घुसपैठ) अघोषित तौर पर युद्ध छेड़ चुका है ! इसके अलावा अपनी हरकतों से बाज न आते हुए घाटी में आतंकवादियों की घुसपैंठ करता रहता है ! हम अपनी उदारता दिखाते रहते है और पाकिस्तान जवाब में हमें आतंकवाद और मुंबई हमले जैसे जख्म देता रहता है !

वर्ष 2005 में अन्तर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान (IWMI) और टाटा जल निति (TWPP) कार्यक्रम द्वारा पूर्व में इस संधि पर प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला था कि सिन्धु घटी जल संधि को भंग करने की आवश्यकता है ! "इंडस वाटर ट्रीटी : स्क्रेप्ट ऑर अब्रोगेटेड" शीर्षक वाली रिपोर्ट के अनुसार इस संधि के चलते घाटी में बिजली पैदा करने और खेती करने की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव हो रहा है ! इसी रिपोर्ट के अनुसार घाटी में 2000 मेगावाट से भी ज्यादा बिजली पैदा करने की क्षमता है, लेकिन सिन्धु जल संधि इस राह में रुकावट बनी हुई है ! 

आज सिन्धु जल परियोजना को रद्द कर एक उदाहरण प्रस्तुत करने का समय है ! इसके लिए उस दृण इच्छाशक्ति की आवश्यकता है जो अभी तक कम से कम सिन्धु जल संधि को लेकर भारतीय नेतृत्व में अब तक नहीं दिखाई दी है ! एक बड़ा प्रश्न मन में यह भी आता है कि क्या बलूचिस्तान का मामला उठानेवाले भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सिन्धु जल संधि के मुद्दे को आतंकवाद, दाउद इब्राहीम और हाफिज सईद से जोड़ने का साहस करेंगे !

अंतर्राष्ट्रीय कानून की मान्यता है कि बदली हुई परिस्थितियों या घटनाओं के आधार पर कोई संधि भंग की जा सकती है । जिस प्रकार पाकिस्तान अपनी सीमा में भारत के खिलाफ आतंकवादी समूहों को पाल पोस रहा है, यह अपने आप में सिन्धु जलसन्धि (आईडब्ल्यूटी) भंग करने का पर्याप्त आधार है । सिंधु पाकिस्तान के गले की नस है। यदि भारत पाकिस्तान को अपने व्यवहार में सुधार लाने और आतंकवादियों का निर्यात रोकने के लिए विवश करना चाहता है तो आईडब्ल्यूटी भंग करने से अच्छा कारगर उपाय कोई नहीं !

भारत के पास इस एकतरफा लेकिन अनिश्चितकालीन संधि को भंग करने के पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय कानूनी विकल्प मौजूद है। अमेरिका और रूस के बीच हुई ऐसी ही एक अनिश्चितकालीन अवधि की एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल संधि को अमेरिका ने भी बाद में वापस लिया था।

ऐसे समय में जब दोनों देशों के पास परमाणु शस्त्र हैं, और पाकिस्तान का रक्षा मंत्री खुलकर उनके प्रयोग की धमकी देता रहता है, उडी आतंकी हमले के बाद पानी कार्ड का अस्त्र ही भारत के लिए सबसे कारगर उपाय हो सकता है ।
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