विवेकानंद जी की भविष्यवाणी - सुदर्शन जी की जुबानी !




1894 – 95 में स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरू भाईयों को लिखे पत्र में कहा था –

1836 में जब स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ, तो एक युग परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हुई, एक स्वर्णयुग का प्रारम्भ हुआ ! युग संधि का काल 175 वर्ष का होता है ! जैसे दिन के बाद रात और रात के बाद दिन होता है, किन्तु उसके बीच का संधिकाल जैसे सांझ का समय भी होता है ! 1836 में 175 जोडिये तो 2011 आता है, अर्थात 2011 से भारत का भाग्य पूरी दुनिया में चमकना प्रारम्भ होगा !

इस भविष्यवाणी का उल्लेख किया था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक पूज्य श्री सुदर्शन जी ने ! अवसर था डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी की पुस्तक 'Hindus Under Seige' के लोकार्पण का ! 18 सितम्बर 2006 को दिया गया सुदर्शन जी का यह सम्पूर्ण भाषण सुनने और मनन करने योग्य है ! भाषण का एक प्रमुख अंश देखिये –

सन 2003 में न्यूयार्क में एक प्रथ्वी सम्मेलन हुआ ! इस अर्थ समिट में 106 देशों के लोग आये ! चार दिन का था, तीन दिन तक विचार विमर्श करते रहे ! अंत में 40 मुद्दे ऐसे उन्होंने निकाले, कि जिन पर अगर सहमति हो जाए तो पर्यावरण की रक्षा हो सकती है ! चौथे दिन इन 40 मुद्दों पर हस्ताक्षर होने थे ! भारत से जो प्रतिनिधिमंडल गया था कर्णसिंह की अध्यक्षता में, उन्होंने चौथे दिन अथर्ववेद का जो भूमि सूक्त है, उसका अंग्रेजी अनुवाद कर सबको बंटवा दिया ! उसको जब लोगों ने पढ़ा, तो कहा पहले दिन क्यों नहीं दिया ? उसमें ये चालीस मुद्दे तो थे ही, बाईस मुद्दे और थे, जैसे कि – “बसुधैव कुटुम्बकम”, “सर्वे भवन्तु सुखिनः” आदि आदि ! और अंत में भूमि सूत्र को ही उन्होंने स्वीकार कर लिया !
 
व्यष्टि धर्म, समष्टि धर्म, प्रकृति धर्म और मोक्ष धर्म, ये चारों मिलकर धर्म है ! लेकिन हम सब जो अंग्रेजी भाषा में पढ़े हैं, अपने आप को भूल गए, अपने विचार को भूल गए, अपनी पहचान को भूल गए ! दरअसल अंग्रेजों ने यह अच्छी तरह समझ लिया था कि हम मुट्ठी भर लोगों को अगर इस विशाल देश पर राज्य करना है तो जब तक इनका दिमाग खराब नहीं करते, तब तक इस देश पर राज्य नहीं कर सकते !
 
संस्कृत में एक श्लोक है, जिसमें कहा है –
 
शस्त्रेण हता हता भवन्ति,
प्रज्ञा हताश्च सुहता भवन्ति !
 
शस्त्र से मारना भी कोई मारना है, उसकी बुद्धि नष्ट करना ही सही अर्थों में मारना है !
 
तो उन्होंने हमारी बुद्धि को मारने के लिए प्रयत्न किया ! 18 अप्रैल 1866 को रॉयल सोसायटी की इंग्लेंड में एक बैठक हुई, स्ट्रोंगफील्ड उसके चेयरमेन थे ! उसमें कहा गया कि ये सब लोग ढोर चराने वाले लोग थे, वे जो गाते थे, वह वैदिक मन्त्र हो गए ! इस प्रकार हमारे अपने ही दिलो दिमाग में हीन भावना पैदा करना उन्होंने शुरू किया ! वेद तो गड़रियों के गीत है ! हमारे इतिहास के जो उजले पन्ने हैं, वे हमें नहीं बताये गए, हमारे पराभव का इतिहास पढ़ाया गया !
 
रवीन्द्र नाथ ठाकुर कहते हैं कि एक अंग्रेज बालक बचपन से ही जानता है कि उसके बाप दादाओं ने पराक्रम किये, और कुछ देशों पर अपने साम्राज्य का विस्तार किया ! इसलिए उसके मन में भी भावना जागृत होती है कि मैं भी अपने बाप दादाओं के समान रण गौरव, धन गौरव, वाणिज्य गौरव प्राप्त करूंगा ! लेकिन हमारे बच्चों को क्या सिखाया जाता है ? तुम बेबकूफ हो, तुम्हारे बाप दादे बेबकूफ थे, तुमने कभी कहीं साम्राज्य स्थापित नहीं किया ! कुछ नहीं किया, लेकिन किया क्या, यह हमको नहीं बताया जाता ! इसलिए हमारे यहाँ जो बालक पैदा होता है, वह केवल पश्चिम का अनुकरण करने को ही अहोभाग्य मानता है !
 
लेकिन आज दुनिया एक संघर्ष के कगार पर खडी हुई है ! ऐसे में हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम अपनी चीजों को सही प्रकार से समझें ! जो अपने आप को भूल जाता है, उसके साथ तो कुछ भी हो सकता है ! अगर कोई कोमा में पड़ा है, तो भले ही उसका पैर काट दो, उसे दर्द होगा ही नहीं ! कोई चार गाली सुना दे तो भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, देते रहो ! पिछले अनेक वर्षों से हमारा भारत वर्ष भी कोमा की स्थिति में है, पहले इसे जगाओ ! हमारा जीवन उद्देश्य क्या है ? दुनिया विनाश के कगार पर खडी है, ऐसे में भारतीय चिंतन ही उसे दिशा दे सकता है, इस जीवन उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही हमारी आगे की भूमिका तय करना चाहिए !

https://www.youtube.com/watch?v=8ZziFrfG5p4
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