तत्व चिन्तक मुख्यमंत्री - शिवराजसिंह चौहान !
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भोपाल में आयोजित हुए तीन दिवसीय लोक मंथन में मुख्यमंत्री शिवराज जी द्वारा दिया गया धाराप्रवाह भाषण, जिसने श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर दिया -
आज जिस भूमंडलीकरण और
उदारवाद की बात हो रही है, वह तो भारत की रगरग में है ! हमारे यहाँ कहा गया –
“वसुधैव कुटुम्बकम”, यह भूमंडलीकरण नहीं तो क्या है ? “एकं सद्विप्रा बहुधा बदंति”
सत्य एक ही है, कहने के तरीके भिन्न भिन्न है, इससे अधिक उदारवाद क्या होगा !
विचार स्वातंत्र की बात करें तो “यावदजीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत,
भस्मी भूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः” – जब तक जिओ सुख से जिओ, उधार लेकर घी पिओ,
मरने के बाद पुनर्जन्म नहीं “ कहने वाले चार्वाक को भी ऋषि कहा गया, सम्मान दिया
गया !
पश्चिम में पोप के विरोध
में राजतंत्र आया, राजतन्त्र के विरोध में प्रजातंत्र आया, प्रतिनिधि व्यवस्था
बनी, फिर औद्योगिकीकरण, फेक्टरियों के कारण लोग बेरोजगार होने लगे, शोषण की चक्की
में पिसने लगे, तब कार्ल मार्क्स सामने आये ! नारा दिया – दुनिया के मजदूरो एक हो
जाओ, तुम्हारे पास खोने को कुछ नहीं, केवल जंजीरें हैं ! नतीजतन सर्वहारा की
तानाशाही आई, एक पार्टी का शासन, असहमति को स्थान नहीं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
समाप्त !
अभिव्यक्ति की आजादी का
पैरोकार अमरीका, जहाँ वैभव के असीम साधन होने के बाद भी वहां के निवासियों को सुख
मिला क्या ? दुनिया में सारी कवायद सुख की खोज की है ! यह सुख क्या है ? पद
प्रतिष्ठा में सुख नहीं है ! दौलत के अकूत भण्डार रखने वालों की तुलना में मंडला
या झाबुआ में रहने वाला वनवासी आनंद में दिखता है, मस्ती से नाचता है, गाता है !
कम्यूनिज्म और पूंजीवाद
दोनों की असफलता के बाद प. दीनदयाल जी का विचार प्रासंगिक है ! उन्होंने कहा
मनुष्य दो ही चीजें चाहता है – खूब जीना, नाती पोतों के साथ सुख से जीना ! अगर
जीवन में भयानक कष्ट हों तो कहने लगता है, भगवान अब तो उठा ले !
पश्चिम का मानना हैकि
मनुष्य शरीर है अतः आहार, निद्रा और मैथुन में सुख मानता है ! भारत में शरीर को को
माध्यम माना गया – शरीर माध्यम, खलु धर्म साधनं ! धर्म के पालन का शरीर साधन है,
किन्तु साथ ही कहा गया –उत्तम सुख निरोगी काया ! माना गया कि शरीर के सुख के साथ
मन के सुख की भी खोज करनी होगी ! अब यह मन का सुख क्या है ? वर्षों के बाद बिछुड़ा
मित्र मिला, गले लगा लिया, तोतली आवाज में बोलते बच्चे को देखा, आनंद हुआ, उठाकर
गोद में ले लिया, सुन्दर रंगोली देखी, मन मुग्ध हो गया, यह हुआ मन का सुख !
इस मन के सुख के साथ बुद्धि
का सुख भी है ! कौन बनेगा करोडपति में हॉट शीट पर बैठे व्यक्ति से सवाल पूछा गया,
टीव्ही देखते हमने भी जबाब दे दिया, वह सही निकला, पत्नी की तरफ देखकर मुस्कुराये,
बोले देखा ? न्यूटन ने देखा हवा चली, पेड़ हिला, फल टूटा, जमीन पर गिरा – देखकर
गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज के बाद उसे जो सुख मिला, वह है बुद्धि का सुख !
शरीर का सुख, मन का सुख,
बुद्धि के सुख से भी बड़ा है, आत्मा का सुख ! नर्मदा किनारे का मेरा गाँव, वारिश
में बाढ़ देखने गए, तो देखा एक बच्ची का पैर फिसला, वह धार में बहने लगी, सब
चिल्लाने लगे, पर बचाने जाने की किसी की हिम्मत नहीं हुई ! तभी दूर से यह दृश्य
देखने वाला एक व्यक्ति दौड़कर आया, और नदी में कूदकर तैरता हुआ उस बच्ची तक पहुंचा
और जान जोखिम में डालकर बच्ची को बचा लाया ! उस व्यक्ति का नाम मुझे आज भी स्मरण
है ! वह था एक चोर “गुलाब” जिसे सब गाँव बाले आम बोलचाल की भाषा में “गुलबा भड़या”
कहते थे ! लोगों ने पूछा कि तूने इतनी हिम्मत कैसे दिखाई ? उसने जबाब दिया – आया
तो था सेंध लगाने की जगह तलाश करने, किन्तु डूबती बच्ची को देखकर आत्मा नहीं मानी
! यह आत्मा जो चोर के अन्दर भी है, साहूकार के अन्दर भी, आपके अन्दर भी है, मेरे
अन्दर भी, इसके सुख की खोज ही मुख्य है ! शरीर, मन, बुद्धि, आत्मा, इन सबका सुख ही
सच्चा सुख है !
मनुष्य केवल व्यक्ति नही,
समाज भी है ! समाज का भी शरीर, मन, बुद्धि, आत्मा है ! उसके सुख का भी विचार करना
होगा ! यही बात देश की भी है ! देश का परिक्षेत्र उसका शरीर है, देशवासियों की
इच्छा आकांक्षा उसका मन है, संविधान उसकी बुद्धि है, देश का लक्ष्य, जिसे दीनदयाल
जी ने चिति कहा, वह उसकी आत्मा है ! अब सवाल उठता हैकि यह लक्ष्य क्या है ?
मनुष्य और समाज, जड़ और
चेतन, कीट-पतंगे, पेड़-पौधे, सबमें क ही चेतना विद्यमान है ! हमारे अवतारों में भी
प्रारम्भिक तीन अवतार पशु रूप में थे, चौथा नृसिंह अवतार आधा पशु आधा मनुष्य था !
दुर्गा जी की सवारी सिंह, लक्ष्मी का वाहन उल्लू, भगवान विष्णु का वाहन गरुड़, गणेश
जी का चूहा, गाय में ३३ करोड़ देवताओं का वास मानना, तात्पर्य यह कि प्राणीमात्र के
साथ आत्म भाव ! पेड़ों में भी वट, आंवला, केला, तुलसी की पूजा की जाती है, उनके साथ
भी आत्म भाव !
हजारों साल पहले से प्रकृति का शोषण नहीं दोहन ! वृक्ष से फल तोड़कर
खाना दोहन, कुल्हाड़ी से पेड़ काटना शोषण ! नदियों को भी पूज्य माना गया – गंगा च
यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी, सिन्धु सभी की वंदना से स्तोत्र हैं ! सम्पूर्ण
ब्रह्माण्ड में उसी चेतना के दर्शन, सूर्य, चन्द्रमा, नवग्रह की पूजा का विधान !
जो सबमें है, वही मुझमें भी है – सोऽहं ! एक ही कामना सब सुखी हों – सर्वे भवन्तु
सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयः ! हर धार्मिक क्रिया के बाद समवेत स्वर से बोला जाता
है, धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण
हो ! भूमंडलीकरण और उदारीकरण का और क्या आदर्श होगा ! अंततः भारतीय चिंतन ही विश्व
को राह दिखाएगा ! हमारे यहाँ राष्ट्रीयता और भूमंडलीकरण विरोधी नहीं है !
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