छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय युवा संन्यासी - स्वामी राम शंकर – द्वारा मुकेश मिश्र "अवनीश "



एक समय था जब भारत में युद्धक्षेत्र – कुरुक्षेत्र से भी गीता ज्ञान का अमृत रस प्रवाहित हुआ था, जबकि आज उसके विपरीत धर्म का क्षेत्र भी अर्थार्जन का, कमाई का सबसे आसान जरिया बन गया है ! मण्डलेश्वर महामंडलेश्वर बनने को जिस प्रकार के घात, प्रतिघात होते हैं, उनकी चटपटी खबरें आये दिन समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बनती ही हैं, हम लोग पढ़ते ही हैं ! इस क्षेत्र की व्यवसायिक सम्भावनाओ को देखते हुये पूजीपति वर्ग के कुछ लोग बडी चालाकी से धार्मिक क्षेत्र में इन्वेस्टमेंट भी करते हैं, अपने हित साधन के लिए संत महंतों को प्रमोट करते हैं ! टीवी चेनलों पर मीठी सुरीली बोली से सम्पन्न कथावाचक जब बोलते दिखाई देते हैं, तो उनमें से कई की व्यवस्था किसी न किसी अर्थ कीट के द्वारा की गई होती है । 

ऐसे अनास्था के वातावरण में अगर कोई युवा सन्यासी किसी संगीत महाविद्यालय में संगीत की शिक्षा लेता दिखाई दे, या किन्ही आर्थिक रूप से विपन्न विद्यार्थियों की पढाई का खर्चा उठाता दिखाई दे तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है ! 

जी हाँ, पिछले दिनों मेरी मुलाकात एक सामान्य सा दिखने वाले असामान्य युवा संन्यासी से हुई ! थोड़ी देर की बातचीत से ही समझ में आ गया कि यह व्यक्ति किसी अलग ही मिट्टी का बना हुआ है ! उनसे हुई बातचीत में उनकी अब तक की जीवन यात्रा की जानकारी मिली –

१ नवम्बर १९८७ को देवरिया जिले के ग्राम खजुरी भट्ट में जन्मे स्वामी राम शंकर की प्राथमिक शिक्षा गाँव में ही हुई ! बाद में गोरखपुर के महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज गोलघर से १२ तक की पढ़ाई संपन्न की ! बाद में पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से बी काम करते समय ही सांसारिक जीवन से विरक्ति हुई और स्वामी जी एक नवम्बर 2008 को अलसुबह 4 बजे घर को अलविदा कह रेलवे स्टेशन जा पहुंचे और 7 बजे वाली पैसेनजर रेलगाड़ी पकड़ कर गोरखपुर से अयोध्या के लोमश ऋषि आश्रम पहुच गए ! वहां 10 दिन रहने के पश्चात 11 नवम्बर को वैष्णव परम्परानुसार उनका दीक्षा संस्कार हुआ, साथ ही शुरू हुआ संन्यासी जीवन का सफर । 

जीवन सार्थक तभी है, जब जीवन का उपयोग कर परम् लक्ष्य को पा सके। सन्यासी बनने का कारण था ज्ञान पिपासा और तत्व की खोज ! सो गुजरात स्थित आर्य समाज के ''गुरुकुल वानप्रस्थ साधक ग्राम आश्रम '' रोजड़ में रह कर इन्होने योग दर्शन की पढ़ाई व साधना की l इसके बाद कुछ समय हरियाणा के जींद में स्थापित गुरुकुल कालवा में रह कर संस्कृत व्याकरण की पढ़ाई की ! यह वही स्थान है, जहां प्रख्यात योग गुरु स्वामी राम देव जी भी अपना बाल्यकॉल व्यतीत कर चुके है l तत्पश्चात सितम्बर 2009 को हिमाचल के कांगड़ा जिला में स्थित चिन्मय मिशन के द्वारा संचालित गुरुकुल '' संदीपनी हिमालय'' में प्रवेश प्राप्त कर गुरुकुल आचार्य स्वामी गंगेशानन्द सरस्वती जी के निर्देशन में तीन वर्ष तक रह कर वेदांत उपनिषद्, भगवद्गीता ,रामायण आदि सनातन धर्म के शास्त्रो का अध्ययन संपन्न कर 15 अगस्त 2012 को शास्त्र में स्नातक की योग्यता प्राप्त की l 

किन्तु अभी भी अंतस की योग पिपासा शांत नहीं हो पायी थी, अतः योग को समझने के लिये योग के प्रसिद्ध केंद्र '' बिहार स्कूल ऑफ़ योगा'' मुंगेर ( रिखिआ पीठ ) में फरवरी 2013 से मई 2013 तक साधना की और उसके बाद विश्व प्रसिद्ध ''कैवल्य धाम'' योग विद्यालय लोनावला पुणे,महाराष्ट्र में जुलाई 2013 से अप्रैल 2014 तक डिप्लोमा इन योग के पाठ्यक्रम में रह कर योग से सम्बंधित पतंजलि योग सूत्र , हठप्रदीपिका , घेरण्ड संहिता आदि प्रमुख शास्त्रो का अध्ययन मनन किया ! 

तदुपरांत जीवन लक्ष्य बनाया - नयी पीढ़ी को रामकथा सुनाकर राम जैसा पुत्र, राम जैसा भाई, राम जैसा मानव बनने हेतु प्रेरित करना ! ताकि वर्तमान युवापीढ़ी में मजबूती से जीवन मूल्यों की स्थापना हो सके। इस हेतु स्वान्तःसुखाय अपनी समस्त अनुभव राशी को रामकथा में समाहित कर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के चरित्र को रोचकता के साथ संगीतमय प्रस्तुति कर समाज के नागरिको को सत्यनिष्ठ, सदाचारी बनने की प्रेरणा वे लगातार प्रदान कर रहे हैं । 

संत समाज की दशा से स्वामी जी कुछ क्षुब्ध भी हैं, उनका कहना है कि मेरी तो आश्रम मठ मंदिर भी बनाने की इच्छा नहीं है, ये सब उपक्रम हमारे समय को बर्बाद करते हैं, यह सन्यासियों को शोभा नहीं देता ! मैं नहीं चाहता कि जिस प्रकार तमाम नामी बाबा लोग अपने व्यवहार व व्यावसायिक वृत्ति के कारण, समाज के लोगो द्वारा कटघरे खड़े किये जाते है, वैसे मुझे भी होना पड़े। मुझे ऐसा नही बनना । मैं तो मैं एक परिंदे सा संसार में एक जगह से दूसरे जगह जा जा कर केवल मानवता, सद्गुण, सुविचार को फ़ैलाने की चाहत रखता हूँ और यही जीवन भर करता रहूँगा ! इस कार्य से मुझे जो दान मिलता है, उसका कुछ हिस्सा अपनी जरुरत के लिये रख कर, बाकी गरीब छात्रों को दान कर देता हूँ, जिससे उनकी पढाई लिखाई सुचारू रूप से चलती रहे। 

स्वामी राम शंकर के अन्दर आज भी सीखने की विद्यार्थी वृत्ति जीवित है ! वे आजकल छत्तीसगढ़ के इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में संगीत सीख रहे है । संभवतः विश्वविद्यालय के इतिहास में यह पहला अवसर है, जब कोई संन्यासी यहाँ दाखिला ले कर संगीत सीखने आया है। इस विषय में स्वामी राम शंकर कहते है कि संगीत सीखने का मुख्य उद्देश्य युवा पीढ़ी के बीच रह कर उनके मनोदशा को करीब से समझना है । 

स्वामी राम शंकर महाराज अभी तक देश के १२ राज्यों में संगीतमय श्री राम कथा का प्रवचन कर चुके है,इस कार्य को प्रभु की सेवा मानकर करते है। 

स्वामी जी की रामकथा यूट्यूब लिंक –
https://www.youtube.com/watch?v=iwG3zpwk01c

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