शरीयत बैंकिंग: भारतीय रिजर्व बैंक का प्रस्ताव


इंडिया टुडे के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक देश में शरीयत के अनुरूप या ब्याज मुक्त बैंकिंग की शुरूआत करने पर विचार कर रहां है तथा पारंपरिक बैंकों में "इस्लामी खिड़की" के उद्घाटन के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहां है।

केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक लम्बे समय से बैंक में समाज उन वर्गों के वित्तीय समावेश सुनिश्चित करने के लिए प्रयत्नशील है, जो धार्मिक कारणों से अब तक इसके बाहर रहे हैं।

स्मरणीय है कि इस्लामी मान्यताओं के अनुसार ब्याज लेना और देना हराम है, इसके कारण बहुसंख्यक मुसलमान बैंक में पैसा जमा कराने अथवा बैंक से कर्ज लेने में झिझक महसूस करते हैं ! ऐसे में रिजर्व बैंक का यह प्रस्ताव “सबका साथ – सबका विकास” की घोषित मोदी सरकार की नीति की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है ! 

स्वाभाविक ही इस्लामी वित्त व्यवस्था का भारतीय बैंकों को पहले से कोई अनुभव न होने के कारण अनेक चुनौतियों और जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है, किन्तु “जहां चाह है, वहां राह है” ! हां यह अवश्य है कि इस्लामी बैंकिंग की इस योजना को आनन फानन में लागू करने के स्थान पर इसको क्रमिक तरीके से भारत में प्रारम्भ किया जा सकता है।

बैसे इस हेतु भारतीय रिजर्व बैंक ने एक तकनीकी विश्लेषण रिपोर्ट तैयार कर वित्त मंत्रालय को भेज दी है। इस कार्य योजना संबंधी पहला पत्र पिछले वर्ष दिसंबर में तथा विस्तृत रिपोर्ट फरवरी में भेजी गई है ।

वर्ष 2015-16 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट में भी केंद्रीय बैंक ने यह उल्लेख किया था कि भारतीय समाज के कुछ वर्ग धार्मिक कारण से बैंक सुविधा का लाभ नहीं उठाते हैं, इसके कारण उनका आर्थिक विकास भी प्रभावित होता है । समाज के इन वर्गों को मुख्यधारा में सम्मिलित करने के लिए सरकार के साथ विचार-विमर्श कर ब्याज मुक्त बैंकिंग प्रणाली विकसित करने के तौर-तरीकों का पता लगाने का प्रस्ताव है ।

इस हेतु भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की अध्यक्षता में गठित समिति ने सुझाव भी दिए थे, किन्तु अपने देश में सब कुछ आसानी से कहाँ होता है ? शरीयत बैंक की योजना को लेकर भी कुछ राजनीतिक और गैर राजनीतिक समूहों द्वारा आपत्ति दर्ज कराई गई है ।

भारतीय मुद्रा बदलने के बाद सरकार का यह एक कदम भारतीय अर्थ व्यवस्था को और मजबूती दे सकता है ! पर यह कदम कब उठता है, यह देखने वाली बात है !

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