आगे आगे देखिये होता है क्या ?



दुनिया के अग्रणी अर्थशास्त्री भी प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नवीनतम दांव से हतप्रभ है ! केनेथ रोगोफ्फ़ हार्वर्ड विश्वविद्यालय में सार्वजनिक नीति और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं, और उनकी 2016 में ही प्रकाशित पुस्तक “The Curse of Cash” अर्थात नगद का अभिशाप काफी चर्चित हुई है ! उक्त पुस्तक में कागज़ की मुद्रा को क्रमशः समाप्त करने की वकालत की गई है !

रोगोफ्फ़ की पुस्तक में जो विचार व्यक्त किये गए थे, लगभग उन्हीं तर्कों को मोदी सरकार भी दोहरा रही है, मसलन बड़े नोटों के माध्यम से भूमिगत समानांतर अर्थव्यवस्था का संचालन होता है, जिससे देश में टेक्स चोरी और सभी प्रकार के अपराधों को बढ़ावा मिलता है।

उसी तर्ज पर कई अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि इस योजना के बड़े सकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं, लेकिन तुरत फुरत नहीं, उसमें समय भी लगेगा और सफलता योजना के क्रियान्वयन पर भी निर्भर होगी ! भ्रष्टाचार, कर चोरी और अपराधों की जुगलबंदी ने लंबे समय से देश को अपंग बनाया हुआ है। किन्तु सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि प्रशासनिक मशीनरी, जिस पर योजना के सफल क्रियान्वयन का दायित्व है, जिसकी रगों में खून की जगह भ्रष्टाचार दौड़ रहा है, क्या वह कभी भ्रष्टाचार मुक्त भारत देखना चाहेगी ? मोदी जी का यह अभूतपूर्व कदम इतिहास में कैसे दर्ज होगा, किस रूप में याद किया जाएगा, यह तो समय ही बताएगा ।

500 और 1000 के बड़े नोट बंद कर, 2000 का और बड़ा नोट लाने का भी कई लोग मजाक बना रहे हैं, किन्तु एक भारतीय अर्थ शास्त्री के अनुसार मोदी सरकार का यह निर्णय सड़क निर्माण के दौरान मार्ग अवरुद्ध होने पर बनाए जाने वाले बाईपास जैसा है ! जैसे ही स्थिति सामान्य होगी, दो हजार के नोट भी हटा दिए जायेंगे ! फिर प्रचलन में या तो छोटी मुद्रा रहेगी, अथवा लोगों की स्वहस्ताक्षरित मुद्रा अर्थात चेक !

विपक्ष की ओर से सर्वाधिक जहरीला प्रचार दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल कर रहे हैं ! उनका कहना है कि भाजपा ने कालाधन वापिसी का जो वायदा विगत चुनाव के दौरान किया था, उसे पूरा करने के स्थान पर देश में अफरातफरी पैदा करदी गई है ! 

इसी तारतम्य में सुब्रमण्यम स्वामी ने पिछले दिनों हांगकांग में कहा कि मुझे पूरा भरोसा है कि मोदी जी का अगला कदम विदेशी बेंकों से काला धन वापस लाना होगा ! उसे लाने के लिए पार्लियामेंट एक क़ानून बनाकर इस घोटालों के पैसे को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करे | तो स्विस बेंक उसे वापस करने को बाध्य होंगी, क्योंकि उनके क़ानून के अनुसार व संयुक्त राष्ट्र के फैसले के अनुसार वे केवल प्राईवेट प्रोपर्टी रख सकते हैं, नॅशनल प्रोपर्टी नहीं | उनके इस कानून का फ़ायदा हमको उठाना चाहिए | उनको बताया जाए कि ये भ्रष्ट नेताओं के बाप का पैसा नहीं, देश की गरीब जनता के खून पसीने की कमाई का पैसा है, जो यहाँ से लूट कर ले जाया गया है |

कल मंगलवार को केजरीवाल को मुंह तोड़ जबाब देने वाला एक बड़ा क्रांतिकारी घटनाचक्र भी घटित हुआ, जब अवैध काले धन को छिपाने के विकल्प और ज्यादा सिकुड़ गए ! भारत और स्विटजरलैंड ने दोनों देशों के बीच वित्तीय जानकारी के 2019 से, स्वत: आदान प्रदान को स्वीकृति देने वाले एक करार पर हस्ताक्षर किये ! स्वाभाविक ही इसके चलते 2019 से स्विस बैंक की गोपनीयता के युग का समापन हो जाएगा ।

स्मरणीय है कि इस साल के शुरू में अपनी स्विट्जरलैंड यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्विस राष्ट्रपति जोहान श्नाइडर-अम्मान के साथ भेंट में इसी प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया था ।
माना जा रहा है कि मोदी सरकार द्वारा 8 नवंबर को 1,000 और 500 रुपये की मुद्राओं को बदले जाने के बाद का यह अगला कदम है । 

इसके साथ ही इसी महीने बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम की अधिसूचना भी जारी होने जा रही है, जिसके बाद चल-अचल संपत्ति , दोनों प्रकार की बेनामी संपत्ति धारकों के खिलाफ सरकार को पर्याप्त गोला बारूद मिल जाएगा ! और जैसा कि प्रधान मंत्री ने कर चोरी करने वालों को पूर्व में सचेत किया था, अंतिम मोहलत दी थी, अब अपने बेहिसाब धन का इस्तेमाल कर फर्जी नामों के तहत संपत्ति खरीदने वालों के भी बुरे दिन आने वाले हैं । यह दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ़ पढ़ा जा सकता है, देखा जा सकता है !

साभार आधार - http://www.msn.com/en-in/money/topstories/swiss-window-for-black-money-shuts/ar-AAkCnOK?li=AAggbRN
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