अरुण जेटली होंगे विदेश मंत्री - श्री हरिशंकर जी व्यास का अनुमान !



इस बात को आप अटकलबाजी, गपशपी भी करार दे सकते हैं। सरकार, उसका पीआईबी इसका खंडन कर सकता है जैसे पिछले सप्ताह नितिन ग़डकरी के मेरे आईटम को ले कर पीआईबी ने कहां कि यह महज सपेक्यूलेटिव याकि अटकलबाजी है। अब जिसे अटकल मानना है माने मगर 37 साल पुराने अपने इस कॉलम के जो पाठक हैं वे जानते हैं कि अपनी अटकलों का क्या मतलब होता है? सो ताजा अटकल है कि नोटबंदी के 50 दिन से पहले अरूण जेटली की वित्त मंत्रालय से छुट्टी होगी। ताकि नरेंद्र मोदी के समर्थकों को मैसेज मिले कि नोटबंदी पर खराब अमल हुआ। अरूण जेटली संभाल नहीं पाए। इसलिए उन्हें हटा दिया है। धेर्य रखे, अब अरूण जेटली को जब हटा दिया है तो अगले पचास दिन में सब दुरूस्त हो जाएगा।

हां, नरेंद्र मोदी के लिए यह बहाना जरूरी है कि उनकी कमाल की योजना का भठ्ठा वित्त मंत्री के कारण बैठा। आज जो हालात हैं उसमें या तो वे खुद जिम्मेवार बने या अरूण जेटली को बनाएं। अरूण जेटली यों भी संघ, भाजपा और मोदी समर्थकों में तमाम समस्याओं की वजह बने हुए हैं। कहने वाले कहते है कि नरेंद्र मोदी ने राम जेठमलानी, डा सुब्रहमण्यम स्वामी सहित संघ के आला लोगों को भरोसा दिया हुआ है कि वे सब जानते हैं। जरा इंतजार करे। सो इंतजार खत्म होने का वक्त 16 दिसंबर के बाद कभी भी आ सकता है। 31 दिसंबर से पहले जेटली को वित्त मंत्रालय से हटा कर विदेश मंत्रालय में शिफ्ट किया जा सकता है। नए साल से नई शुरूआत!

अब मैंने ऊपर जो ये लाईनें लिखी हैं, उसे मुझे नहीं लिखने की किसी ने सलाह दी। कहां कि आप लिखिएगा मत नहीं तो इसी बहाने अरूण जेटली दो-तीन महीने और टिक जाएंगे। आप तो चाहते हैं न कि जेटली हटे। इसलिए लिखे नहीं, उनकी छुट्टी होने दीजिए।

अपने को यह सलाह भड़का गई। इसलिए कि मैं भला क्यों चाहूंगा कि अरूण जेटली वित्त मंत्री न रहें। उन्हें तो रहना चाहिए। वे जितने दिन रहेंगे अपना और नरेंद्र मोदी का ऐसा इतिहास लिखवाएंगे कि आजाद भारत का इतिहास भी तुगलक और नीरो के किस्से लिए होगा। ढाई साल में जो हुआ है वह पूर्ण बहुमत वाले किस प्रधानमंत्री के साथ पहले हुआ है? जेटली की इस प्रतिभा के कारण ही तो अपने लिए सियासी मूर्खताओं पर लिखने का मौका है। यह बात मैं कई बार लिख चुका हूं कि अरूण जेटली से अपना कोई निज बैर नहीं है। जब अरविंद केजरीवाल ने उन पर निज तौर पर महाभ्रष्ट होने का आरोप लगाया तो उन्हें जानने के मेरे चार दशक के अनुभव पर मैंने बाकायदा इस कॉलम में लिखा कि पैसे के मामले में वे भ्रष्ट हो, यह बात अपने को नहीं जंचती। बाद में भाई लोगों ने बताया कि नहीं ऐसा है वैसा है तो अपना यही स्टेंड रहा कि जब प्रमाण कोर्ट में आएगा तब सोचेंगे।

दरअसल अरूण जेटली मेरी उस थीसिस के प्रतिनिधि हैं कि हर जनादेश, हर सरकार अपने पतन का चेहरा और चरित्र लिए होती है। उस नाते मैं अरूण जेटली को नरेंद्र मोदी के पतन की गारंटी मानता हूं। नरेंद्र मोदी ने ईश्वरीय आदेश के विपरित जाकर यह अंहकार दिखाया कि जिसे आंधी के बीच भी लोगों ने अमृतसर में नहीं चुना (दूसरा अंहकार स्मृति ईरानी का) उसे नरेंद्र मोदी ने न केवल केबिनेट में लिया बल्कि रक्षा, वित्त, सूचना–प्रसारण जैसे भारी–भरकम मंत्रालय भी दिए और उनके बौने चमचों की कैबिनेट बनवाकर मई 2016 के जनादेश को बिखराने का रोडमैप बना लिया।

सोचें, इस अहंकार का नतीजा क्या निकला? अरूण जेटली ने रिटायर सैनिकों का भारी आंदोलन खड़ा करवाया। बतौर रक्षा मंत्री वे फेल और बदनाम हुए। सरकार को भी परेशानी में डाला। सदानंद गौडा के जरिए कानून मंत्रालय व सुप्रीम कोर्ट हैंडल किया तो कार्यपालिका-न्यायपालिका के रिश्तों को पैंदे पर पहुंचाया। ऐसे ही सूचना-मंत्रालय में बैठे तो नरेंद्र मोदी को अंग्रेजीदा मीडिया याकि टाइम्स नाऊ, बडे अखबारों के फेर में फंसवा दिया। देशी, हिंदी, भाषाई छोटे राष्ट्रवादी अखबारों, मीडिया में सरकार को खलनायक बनवाया। और वित्त मंत्रालय ऐसा संभाला कि खुद उनके करीबी प्रचार कर रहे है कि नरेंद्र मोदी ने उन्हे विश्वास में नहीं लिया। सोचें, वित्त मंत्रालय का नोटबंदी का मामला और उसमें भी प्रधानमंत्री ने उनसे पूछा नहीं। (इस बात से अपन सहमत नहीं हैं) मान लें ऐसा हुआ तो 8 नवंबर के बाद नए नोट छपवाने, बंटवाने और नियम-कायदों में स्थिरता तो उनका जिम्मा था। इसमें क्या वे बुरी तरह फेल नहीं हुए?

सो अरूण जेटली आजाद भारत के इतिहास के सर्वाधिक असफल वित्त मंत्री के तौर पर बरखास्त होने की कगार पर हैं। उनकी नियति उन्हें सुषमा स्वराज के रास्ते याकि विदेश मंत्रालय में बैठाने वाली है। दोनों ब्राह्यण। दोनों डायबिटीज के भारी मरीज। दोनों ने एकसाथ दो सदनों में नेता विपक्ष का रोल अदा किया। जानकारों का मानना है कि डायबिटीज से किडनी की जो दिक्कत हुई है उससे सुषमा स्वराज जल्द सामान्य स्थिति में नहीं आ सकती। 6-8 महीने लगेंगे। इसलिए प्रधानमंत्री उन्हें बिना विभाग मंत्री रखेंगे और विदेश मंत्रालय अरूण जेटली को सुपुर्द करेंगे।

मुझे इस सबमें ईश्वरीय-प्रकृति की लीला का खेल समझ में आता है। कोई माने या न माने, भाजपा, संघ और राष्ट्रवादी पूरी जमात में अरूण जेटली को आज मोदी सरकार की असफलताओं का नंबर एक जिम्मेवार कारण माना जाता है। भाजपा-संघ के नेताओं-कार्यकर्ताओं से लेकर पूर्व सैनिकों, नोटबंदी में कराह रहे आम लोगों की बददुआ का जो व जैसा ज्वार बना है उसकी हाय अरूण जेटली का आगे क्या बनाएगी और नरेंद्र मोदी उनके साथ कैसे फंसे रहेंगे इसका सिनेरियो बूझा जा सकता है। अपना मानना है अब नरेंद्र मोदी की आगे की ब्रांडिंग का नंबर एक जरिया विश्व राजनीति से मार्केटिंग का बचता है। लेकिन तीन-चार महीने बाद अपने विदेश मंत्री अरूण जेटली के साथ जब वे दुनिया के दस नेताओं के बीच पहुंचेंगे तो हर नेता इन दोनों को देखकर मन में सोचेगा कि ये वे नेता हैं जिन्होने भागती अर्थव्यवस्था को ठहरा दिया, उसका भठ्ठा बैठा दिया।

एक अन्य आलेख में भी व्यास जी ने अरुण जेटली के हटने की संभावना कुछ इस रोचक लहजे में जताई -

कईयों का मानना है कि पिछले 11 महीनों में ऐसा कुछ हुआ है जिससे नरेंद्र मोदी और अमित शाह उखड़े हैं। ऐसे कुछ खास प्रबंधन होने थे जिसके प्रति अरूण जेटली की लापरवाही दिखलाई दी। सो तीन-चार महीनों से मामला बहुत उखड़ा हुआ है। फिर 8 नवंबर के बाद हुई राजनीति ने भी नरेंद्र मोदी को उखाड़ा होगा। देश ने पहली बार देखा कि विरोधियों ने वित्त मंत्री को नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के खिलाफ कमर कसी। मनमोहन सरकार के वक्त आर्थिकी में गड़बड़ी के लिए तब विपक्ष सीधे चिंदबरम या प्रणब मुखर्जी को निशाना बनाता था। हल्ला होता था कि सत्यानाश कर दिया। ठीक अभी राहुल गांधी हों या शरद यादव सबने अपनी तह अरूण जेटली को सर्टिफिकेट दिया, बेचारा बताया और नरेंद्र मोदी को सत्यानाशी। मजेदार बात है कि अरूण जेटली ने एक भी दफा यह प्रतिवाद नहीं किया कि यह गलत बात है। नोटबंदी वित्त मंत्रालय, रिर्जव बैंक और केबिनेट का फैसला है। उलटे उन्होंने चुपचाप नरेंद्र मोदी पर फोकस बनने दिया।

इसलिए नरेंद्र मोदी, अमित शाह को बुरी तरह उखड़ा हुआ होना चाहिए। ठीक विपरित यह भी रिपोर्ट है कि उत्तर प्रदेश की चुनावी तैयारियों की बैठक होती है तो अमित शाह तब तक इंतजार करते हैं जब तक अरूण जेटली आ नहीं जाएं। वैसे अमित शाह ने बिहार और दिल्ली के जो नए प्रदेश अध्यक्ष बनाए हैं वे जरूर अरूण जेटली की सिफारिश के विपरीत हैं। दिल्ली में मनोज तिवारी के नाम पर अरूण जेटली का वीटो था इसलिए कई महीने अटका रहा। अब यदि उन्होंने मनोज तिवारी को अध्यक्ष बनाया है तो दिल्ली भाजपा अर्से बाद पहली बार जेटली के प्रभाव से मुक्त रहेगी। 

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