अगस्ता हेलिकॉप्टर खरीद: क्या पकडे जायेंगे रिश्वतखोर दलाल ? - प्रमोद भार्गव


अगस्ता वेस्टलैंड 12 वीवीपीआईपी हेलिकॉप्टर खरीद घूसकांड से जुड़ा एक अध्याय इटली की मिलान अपीलीय अदालत का फैसला आने के बाद जब समाप्त हो गया, तब जाकर भारत में दूसरा अध्याय पूर्व सेना अध्यक्ष शशिन्द्र पाल त्यागी की गिरफ्तारी के साथ शुरू हुआ है। पिछले हफ्ते ही सीबीआई के कार्यवाहक निदेषक का पद संभालने वाले राकेश अस्थाना ने सेना के इतने बड़े अधिकारी की गिरफ्तारी करके भ्रष्टाचारियों को यह संदेश दे दिया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। हालांकि 3600 करोड़ की खरीद के इस मामले में जो 423 करोड़ की रिश्वत लेने के सूबूत मिले हैं, उसमें अभी कई अदृष्य शक्तियों तक कानून के हाथ पहुंचना बाकी है। ये ताकतें जांच को लगातार प्रभावित कर रही थीं। इन ताकतों की ओर इशारा इटली की अदालत ने अपने फैसले में भी किया था। 

‘मिलान कोर्ट ऑफ अपील्स‘ ने 8 अप्रैल 2016 को इस मामले पर जो फैसला दिया था, उसमें अदालत ने त्यागी को तो दोषी माना ही है, साथ ही 225 पृष्ठ के इस फैसले में भारत के जिन लोगों को रिश्वत दी गई है, उनमें सिग्नोरा गांधी, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, एपी, ऑस्कर फर्नाडीस और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन के नामों का भी उल्लेख है। ये नाम दलाल क्रिश्चियन मिषेल से प्राप्त दस्तावेज के आधार पर फैसले में दर्ज हैं। इसमें सिग्नोरा गांधी से अर्थ श्रीमती सोनिया गांधी से लगाया गया है तथा एपी से अहमद पटेल । दरअसल इटली में विवाहित स्त्री को भारत में श्रीमती की तरह सिग्नोरा कहा जाता है। फैसले के पृष्ठ क्रमांक 225 में उल्लेख है कि सोनिया के राजनीतिक सचिव एपी यानी अहमद पटेल को सौदा पूरा कराने के लिए 15 से 16 यूरो मिलियन, मसलन 17-18 मिलीयन डॉलर दिए गए। अगस्ता वेस्टलैंड के प्रमुख आरोपी जिउसेपे ओरसी ने अदालत को दिए बयान में कहा था कि उसने कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को लगभग 125 करोड़ रुपए की घूस दी थी। ओरसी को अदालत ने साढ़े चार साल की सजा सुनाई थी।

यह तो स्पष्ट ही है कि कोई ऐसी अदृष्य शक्ति सप्रंग सरकार के कार्यकाल में जरूर थी, जो जांच को प्रभावित कर रही थी। क्योंकि, भारत में हेलिकॉप्टर घोटाले के संकेत 2010 में ही मिल गए थे, लेकिन केंद्र सरकार लंबी चुप्पी साधे रही। दरअसल वह लगातार घोटालों का सामना करने से बचना चाहती थी, वरना इटली की सबसे बड़ी औद्योगिक कंपनी फिनमैकनिका के सीईओ ओरसी को तो इटली पुलिस ने इसी हेलिकॉप्टर सौदे में 12 फरवरी 2010 में ही हिरासत में ले लिया था। इसी समय यह सौदा मंजूर हुआ था और इस मंजूरी के साथ ही पूर्व वायुसेना अध्यक्ष एसपी त्यागी का नाम गड़बड़ घोटाले में उछलने लगा था। सौदे में कुल कीमत की 10 फीसदी राशि दी जानी थी। जांच में सीबीआई को इटली में मौजूद बिचौलियों से जो दस्तावेज हाथ लगे थे, उन्हीं के आधार पर तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने हेलिकॉप्टर खरीद अनुबंध रद्द कर दिया गया था। यही नहीं उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह बयान भी देने का साहस किया था कि इस मामले में भ्रष्टाचार हुआ है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक “कैग” ने भी अपनी अंकेक्षण रिपोर्ट में इस सौदे में नियमों की अनदेखी करने की टीप लगाई थी। कैग ने सौदे में वास्तविक मूल्य से कहीं अधिक धनराशि भुगतान किए जाने का उल्लेख किया था। इस रिपोर्ट मे कैग ने 900 करोड़ रुपये की धांधली का अंदाजा लगाया था। लेकिन तब की मनमोहन सिंह सरकार ने इसकी अनदेखी कर दी थी। यह अनदेखी किस ताकत के इशारे पर की गई, वहां तक अभी सीबीआई की जांच नहीं पहुंची है। हालांकि सुब्रमण्यम स्वामी ने मिलान अदालत का फैसला आने के बाद संसद में कहा था कि इन अदृष्य ताकतों के रूप में खेल खेलने वाले सोनिया गांधी और अहमद पटेल के नाम सबूतों के साथ मैंने राज्यसभा में उजागार किए हैं। 

जबकि इटली पुलिस ने भारत की सीबीआई को जो जानकारी दी थी, उसके मुताबिक अगस्ता वेस्टलैंड से हेलिकॉप्टर खरीदने के लिए 3546 करोड़ रुपए के सौदे में 2004 से 2007 के बीच कार्रवाई आगे बढ़ाने की प्रक्रिया के दौरान पूर्व वायु सेना अध्यक्ष एसपी त्यागी को बतौर रिश्वत दिए गए थे। इस रिश्वत की सौदेवाजी त्यागी के चचेरे भाई संजीव कुमार त्यागी उर्फ जूली, संदीप त्यागी और डोक्सा त्यागी के माध्यम से हुई थी। ये सभी नाम इटली पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में शामिल हैं। त्यागी इन्हीं सालों में भारतीय वायुसेना के अध्यक्ष थे। हालांकि त्यागी ने इन आरोपों का खंडन इस आधार पर किया था कि ‘मैं सेनाध्यक्ष के पद से 2007 में सेवानिवृत्त हो गया था, जबकि सौदे के अनुबंध पर हस्ताक्षर 2010 में हुए हैं।‘ लेकिन यहां गौरतलब है कि उन्हें कंपनी की मंशानुसार हेलिकॉप्टर खरीद प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में दोशी पाया गया है। यदि उनकी भूमिका निर्लिप्त होती तो खरीद प्रक्रिया कंपनी की इच्छानुसार आगे नहीं बढ़ती ? बाद में सीबीआई द्वारा पूछताछ के बाद त्यागी ने इटली जाना और कंपनी के सीईओ से मुलाकत की बात स्वीकार कर ली थी। मिलान कोर्ट के जज मार्को मारिया मेगा ने भी अपने फैसले में कहा था कि ‘फैसला उन दस्तावेजों के आधार पर दिया गया है, जिनमें इस बात की संभावना नजर आ रही थी कि भारत के पूर्व वायुसेना अध्यक्ष के परिवार ने अप्रैल 2012 तक दलालों से धन प्राप्त किया है।‘ 

दरअसल हेलिकॉप्टर के तकनीकी चयन में फेरबदल करने के लिए यह रिश्वत दी गई थी। इटली पुलिस के अनुसार हेलिकॉप्टर उड़ान की अधिकतम उंचाई क्षमता को बदलवाने के लिए कथित रिश्वत दी गई। अगस्ता वेस्टलैंड द्वारा निर्मित हेलिकॉप्टरों की उड़ान क्षमता 15,000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने की है। जबकि भारत 18,000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने वाले हेलिकॉप्टर खरीदना चाहता था। जिससे हिमालय की कारगिल जैसी दुर्लभ पहाड़ियों पर पहुंचने में सुविधा हो। चूंकि अगस्ता वेस्टलैंड से कथित रुप से रिश्वत लेना तय हो गया था, इसलिए हेलिकॉप्टर द्वारा ऊंचाई पर उड़ान भरने की क्षमता तीन हजार फीट घटा दी गई थी। निविदा की शर्तों में पहले दो इंजन वाले हेलिकॉप्टर खरीदे जाने का प्रस्ताव था, किंतु अगस्ता के तीन इंजन वाले हेलिकॉप्टर थे, इसलिए शर्तों में बदलाव करते हुए तीन इंजन के हेलिकॉप्टर खरीदे जाने का प्रस्ताव रखा गया।

जब हेलिकॉप्टर खरीद का मसला मनमोहन सिंह सरकार के दौरान उछला तो केंद्र सरकार के इशारे पर रक्षा मंत्रालय ने इस घोटाले के तार पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्वर्गीय बृजेष मिश्र से भी जोड़ दिए थे। दावा किया गया था कि निविदा की शर्तों में बदलाव की पहल 2003 में बृजेष मिश्र ने की थी। मिश्र, तत्कालिन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के निकटतम थे। लेकिन बृजेष मिश्र की प्रक्रिया को न तो इटली पुलिस ने संदेह के घेरे में लिया है और न ही सीबीआई ने ? जाहिर है, सरकार की मंशा पाप का ठींकरा वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार पर फोड़ने की थी ? हालांकि यहां मौजूदा मनमोहन सरकार का दायित्व बनता था कि यदि बृजेष मिश्र ने गलत मंशा के चलते खरीद प्रक्रिया आगे बढ़ाई थी, तो वे इसे तत्काल निरस्त करते हुए नई व पारदर्षी प्रक्रिया को अंजाम देते ? ऐसा कुछ करने की बजाय, मनमोहन सरकार दोशारोपण तक सिमट कर रह गई थी। 

गौरतलब है, जब रिश्वत देने वाले की तस्दीक हो गई और उसे सजा भी मिल गई तो फिर रिश्वत लेने वाले भारतीयों को अदालत के कठघरे में क्यों नहीं खड़ा होना चाहिए ? देश यह सच केवल जानना नहीं चाहता, बल्कि अपराधियों को सींखचों के पीछे भी देखना चाहता है। फिलहाल इस मामले में एसपी त्यागी जैसी बड़ी शख्सियत की गिरफ्तारी भी कम बात नहीं है। इस गिरफ्तारी से यह उम्मीद भी बढ़ी है कि देर-सवेर अदृष्य ताकतों तक भी कानून के हाथ पहुंचेगे और अब यह मामला बोफोर्स तोप घोटाले की तरह रफा-दफा नहीं होने पाएगा। 


प्रमोद भार्गव
लेखक/पत्रकार
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
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फोन 07492 232007


लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।


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