देश के तीन मूर्धन्य अर्थशास्त्रियों की नजर में विमुद्रीकरण !


काले धन के खिलाफ युद्ध: विमुद्रीकरण एक साहसी कदम है, जिसके ठोस परिणाम निकलेंगे - जगदीश एन. भगवती

परिचय - श्री भगवती देश के एक जाने माने अर्थ शास्त्री हैं ! वे कोलम्बिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और कानून के प्रोफ़ेसर हैं। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अनुसंधान के लिए जाना जाता है। वे मुक्त व्यापार के समर्थक के रूप में भी विख्यात हैं। वे न्यूयॉर्क में विदेश सम्बन्ध परिषद् में एक आवासी सदस्य (रेज़िडेंट फेलो) भी हैं।

8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु एक अप्रत्याशित निर्णय लिया ! सरकार ने घोषणा की कि उच्च मूल्य वर्ग के 500 और 1000 रुपये के नोट अब नहीं चलेंगे ! साथ ही इन नोटों को वर्ष के अंत तक बैंक खातों में जमा करने का समय तय किया गया । ख़ास बात यह थी कि कुल प्रचलित मुद्रा में ये नोट 85% से अधिक हैं !

यह एक साहसी और मौलिक आर्थिक सुधार है ! निश्चय ही इस महत्वपूर्ण परिवर्तन पर लागत भी लगेगी, किन्तु भविष्य में इससे पर्याप्त लाभ होने की संभावना है ।

मोटे तौर पर भारत एक नकद चालित अर्थव्यवस्था है, हालांकि जनसंख्या का एक बड़ा भाग तेजी से तकनीक प्रेमी भी होता जा रहा है, और ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है । देश में एक समानांतर अर्थव्यवस्था ने गहरी जड़ें जमा ली हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर हवाला लेनदेन, कर अपवंचन, बेनामी अचल संपत्ति खरीद और सोने की तस्करी जैसी अवैध गतिविधि होती रही हैं । जाली भारतीय मुद्रा द्वारा आतंकवादी गतिविधियों का वित्त पोषण भी चिंता का एक महत्वपूर्ण विषय है।

यह सब जानते और मानते हैं कि देश में काले धन की समानांतर अर्थव्यवस्था चल रही है, और बड़े पैमाने पर कर अपवंचन भी होता है, किन्तु अभी तक इसकी रोकथाम के लिए कोई ठोस कार्रवाई की नीति नहीं बनी थी । उच्च मूल्य वर्ग के नोट, इस काली अर्थव्यवस्था का मुख्य कारक हैं, जिन्हें रद्द करने का क्रांतिकारी कदम मोदी ने उठाया है, यह एक साहस पूर्ण निर्णय है ।

आर्थिक और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली केन्द्रों की इस छाया अर्थव्यवस्था में काफी अहम हिस्सेदारी होती है, जिसका अब खात्मा होगा । भविष्य के दीर्घकालिक और निरंतर लाभ के लिए संक्रमित अर्थव्यवस्था के सुधार की नींव रखना और उसके लिए कीमत चुकाने का साहस होना, यही तो एक राजनेता से अपेक्षा की जा सकती है ।

कुछ अर्थशास्त्री इस निर्णय की यह कहकर आलोचना कर रहे हैं कि इससे मुद्रा पर विश्वास कम होगा तथा यह मुद्रा के अनुबंध का उल्लंघन है । यह सही नहीं है, नियम पुराने नोटों को नए नोटों से बदलने की अनुमति देता है। हालांकि यह प्रक्रिया असुविधाजनक है, तथा कई घरों में इससे कठिनाई भी उत्पन्न हुई है, किन्तु इससे काली अर्थव्यवस्था की नकदी को बैंकिंग प्रणाली में जमा होगी, जिसके चलते पारदर्शिता बढ़ेगी, करों और अधिभार से सरकार का राजस्व बढेगा ।

इससे निश्चित रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था, आर्थिक लेनदेन के डिजिटलीकरण की दिशा में बढ़ेगी और नकद मुद्रा की भूमिका कम होगी । यह कहना कि यह नीति गरीब विरोधी है, सही प्रतीत नहीं होता, क्योंकि सुधार के फलस्वरूप, करों और अधिभार से एकत्र होने वाले धन का बड़ा भाग सामाजिक कार्यक्रमों के लिए ही आवंटित किया जा रहा है।

अंत में, तर्क दिया जा रहा है कि यह कार्रवाई निरंकुश है। इसके विपरीत, यह कार्रवाई लोकतंत्र के ढांचे के भीतर विधिवत निर्वाचित अधिकारियों द्वारा की गई है। परिस्थिति की भयावहता को देखते हुए, प्रभावी कदम अकस्मात उठाना ही आवश्यक था, तभी सुधार उम्मीद के मुताबिक संभव है ।

हाल के घटनाक्रम से आभास मिलने लगा है कि विमुद्रीकरण के अच्छे और लाभकारी परिणाम आयेंगे ।

पहला तो यह कि उच्च मूल्यवर्ग की मुद्रा का लगभग 80% अब बैंक खातों में वापस जमा किया जा चुका है। इन व्यक्तिगत जमाओं का अब टैक्स रिटर्न के साथ मिलान किया जाएगा और उसके बाद बेहिसाब जमा पर कर लगाया जाएगा, इससे होने वाले अप्रत्याशित लाभ का सरकार बड़े पैमाने पर सामाजिक कार्यों में निवेश कर सकती है ।

दूसरा यह कि हम पहले से ही डिजिटल लेनदेन में एक प्रभावशाली बढ़त देख रहे हैं । इस विमुद्रीकरण के फलस्वरूप अनिच्छुक उपभोक्ता भी ई-भुगतान को विवश होंगे, जिससे अधिक से अधिक पारदर्शिता पूर्ण उच्च और स्थायी कर आधार सुनिश्चित होगा, जो लंबी अवधि के लिए फायदेमंद सिद्ध हो सकता है।

तीसरा, सरकार की कार्रवाई से जाली नोट की समस्या पर अंकुश लगेगा । नए नोट जालसाजी से बनाने में तो समय लगेगा, जबकि सामाजिक लाभ तुरंत प्राप्त होंगे । 

भगवती के अतिरिक्त ब्रिक्स बैंक अध्यक्ष के वी कामथ का कहा गौरतलब है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी से भारत सरकार को कोई ढाई लाख करोड़ रु का फायदा होगा। मतलब इतना काला धन पकड़ा जाएगा। इसका आखिर में बड़ा असर होगा। सरकारी बैंक सेहमतंद होंगे। ब्याज दरों में भारी कमी का वक्त आएगा। भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी। करेंसी के चलन घटने और डिजिटल लेन-देन को ले कर सरकार के पास कई तुरूप कार्ड हैं। बाद में ब्याज दर और मुद्रास्फीति पर जब पूरा असर दिखाई देगा तो आर्थिकी दौड़ने लगेगी। नोटबंदी के बाद छह महीने की अवधि में ब्याज दर कम से कम 100 बेसिस पाइंट कम होनी चाहिए। मेरा विश्वास है कि इस कवायद से मरीज अच्छी हालत में निकलेगा और फिर वह लंबे समय तक बहुत अच्छा करता रहेगा।

स्वदेशी विचारक एस गुरुमूर्ति ने कहा – यह तो पोखरण जैसा वित्तिय साहसी धमाका है! इससे भारत बदल जाएगा। रियल एस्टेट की कीमते घटेगी, पारदर्शिता आएगी। देश रिबूट हो रहा है। काला धन मनोवैज्ञानिक बीमारी थी जिसे खत्म करना होगा। आगे वापिस काला धन पैदा हो सकना संभव नहीं है। सिस्टम में वापिस इतनी ब्लैक मनी जनरेट होने में दस साल लगेंगे। काला धन वापिस पैदा न हो इसके लिए सरकार निश्चित ही फोलो अप एक्सन लेगी। असंगठित क्षेत्र संगठित हो जाएगा। नोटबंदी ने काले धन पर ब्रेक लगा दिया है। नकदी की जिस सुनामी से यूपीए ने रियल एस्टेट, शेयर बाजार और सोने में उछाला बनवाया था उसे दुरूस्त किया जाना जरूरी था। नोटबंदी होनी ही थी। उसे पांच साल बाद नहीं कर सकते थे।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें