कोड़े खाती जनता की दरख्वास्त - बढ़ाये जाएँ कोड़े मारने वाले सिपाही - बृजेश तोमर (व्यंग लेख)



अंधेर नगरी के एक राजा ने भूख,प्यास,रोजगार, बिजली,सड़क, से बुरी तरह से जूझ रही आवाम के काम पर जाने के मुख्य रास्ते पर जनता के' सब्र की इंतहा 'जानने के लिए कोड़े मारने बाले पहरेदार बिठा दिए, और शिकायत दर्ज कराने के लिए एक "शिकायत पेटी" लटकवा दी।

काम पर जाने बाले नगरबासी प्रतिदिन सुबह उस मार्ग से निकलते थे, तो टेक्स स्वरुप राजा के पहरेदार हर एक को पांच कोड़े मारते थे।

जब जनता का कुछ दिन कोई विद्रोह सामने नही आया तो शिकायत पेटी खुलवाई गयी।ढेर सारी शिकायते निकली लेकिन दुर्भाग्य, सभी ने एक जैसी शिकायत की थी- " महाराज, कोड़े मारने बाले सेनिको की संख्या कम होने के कारण समय बहुत लग रहा है,जिससे काम पर जाने में देर हो जाती है। कृपया, कोड़े मारने बाले सेनिको की संख्या बढ़ाई जाए.......।"

उफ़.......!!

यकीनन, यही हालात "लावारिस शहर" शिवपुरी के नज़र आते है।पता नही क्यों चांदपाठे का पानी पीने से कौन सी नपुंसकता आ गयी जो विरोध करने की क्षमता ही ख़त्म हो गयी।(शोधकर्ताओं को इस पानी की जाँच अवश्य करनी चाहिए).

मड़ीखेड़ा के पानी की बाट जोहते जोहते आँखे पथरा गयी,सीवेज की खुदाई ने साल भर से नाक में दम कर दिया,सड़क कभी होने के अवशेष तक मिट गए, गैरजिम्मेदाराना तरीके से चली अतिक्रमण विरोधी मुहिम ने मुख्य पृष्ठ पर खंडहरों का नक्शा सजा दिया,बिजली कंपनी बिल दिखाकर रुला रही है,जिला भृष्ट नोकरशाही की खुली चारागाह बन गया है, नगर पालिका, नरक पालिका बनकर राम नाम की लूट में जुटी है,तहसील कार्यालय सहित आम जन से सीधे जुड़े दफ्तरों को भृष्टाआचार की दीमक चाट गयी है, खैराती अस्पताल में मरीज डॉक्टर को भगबान मानने की गलती का खामियाजा भुगत रहा है,आला अफसर आँखे मूंदे मलाई चाट रहे हे,अंचल के मुखिया, हुक्मरान परिवार की आपसी खीचतान को सड़को पर जगजाहिर कर सिर्फ खुद के महिमा मंडन में जुटे हे, 5 साल का मालिकाना हक़् लेकर बत्ती बाली गाड़ी में आये अस्थायी दरबारी बातों के बताशे खिलाते हुए महज़ खानापूर्ति में लगे है और लावारिश शहर की आवाम...........?????

और आवाम, हमेशा की तरह चुप...!

बिलकुल चुप....!!

सब कुछ सहकर भी और अधिक सहने को तैयार.......!!!

समझ नही आता, कि दोषी कौन.....?

वो हुक्मरान, जिन पर "गुप्-चुप,चोरी-छुपे,गाहे-बजाहे "चाहे जब हम हर बात का ठीकरा फोड़ते रहते है.....?

वह नोकरशाही जो चंद समय के लिए इस चारागाह में सिर्फ चरने ही आई है.......?

अंतगाव की वह निर्माण एजेंसियां जो सिर्फ धन समेटने आई है......?

आकाओं के सामने हमारा प्रतिनिधित्व करने का भरम पैदा करने और अपना उल्लूसीधा करने बाले माननीय जनप्रतिनिधि गण( परिधि में आने या न आने के आत्मविश्लेषण का अधिकार स्वतंत्र)

या फिर....

इस "लावारिस शहर" की

"लावारिस आवाम "

यानी कि

"आप और हम..."

दुष्यंत का शेर याद आता है कि-

"यहाँ तो सिर्फ अंधे और बहरे ही लोग बसते हे...
खुदा जाने किस हाल में जलसा हुआ होगा...!"
खैर......!

पर्यटक नगरी पर,
खुदा, खैर करे....!!
✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍
--नाचीज-बृजेश तोमर--
✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍
(नोट- लेखक मंदबुद्धि होकर बैठी भैसों में लट्ठ लगाने हेतु मूर्खतारत हैं....पाठक माई -बाप माफ़ करे..।)

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